दिल्ली समेत देश के अन्य कई क्षेत्रों को रेगिस्तान बनने से बचाने में अरावली पर्वत की अहम भूमिका
यह बेहद चिंताजनक तथ्य है कि पिछली सदी के अंत में अरावली के करीब 80 प्रतिशत हिस्से पर हरियाली थी जो आज मुश्किल से सात प्रतिशत रह गई है। हरियाली खत्म हुई तो वन्य प्राणी पहाड़ों की सरिताएं और छोटे झरने भी लुप्त हो गए।
पंकज चतुर्वेदी। पिछले सप्ताह उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के बाद फरीदाबाद नगर निगम क्षेत्र में सूरजकुंड से सटे खोरी गांव की करीब 60 हजार आबादी चिंता में है। मानवीय नजरिए से भले ही यह बहुत मार्मिक लगे कि एक झटके में 80 एकड़ में फैले शहरी गांव के करीब दस हजार मकान तोड़े जाने हैं, लेकिन यह भी कड़वा सच है कि राजस्थान के बड़े हिस्से, हरियाणा, दिल्ली और पंजाब को सदियों से रेगिस्तान बनने से रोकने वाले अरावली पर्वत को बचाने को यदि अदालत सख्त नहीं हो तो नेता-अफसर और जमीन माफिया अब तक समूचे पहाड़ को ही चट कर गया होता।
कैसी विडंबना है कि जिस पहाड़ के कारण हजारों किमी में भारत का अस्तित्व बचा हुआ है, उसे बचाने के लिए अदालत को बार-बार आदेश देने होते हैं। वर्ष 2016 में ही पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट अरावली पर अवैध कब्जा कर बनाई गई कालोनियों को ध्वस्त करने के आदेश दे चुका था, उसके बाद फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उस आदेश पर मोहर लगाई थी।
अरावली पर कब्जे हटाने के लिए राज्य सरकारों की कभी ईमानदार मंशा नहीं रही, तभी हरियाणा सरकार ने तीन मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दे कर पर्यावरणीय मंजूरी सहित सभी वैधानिक अनुमति के अनुपालन के साथ अरावली पर्वतमाला में खनन फिर से शुरू करने की मांग की थी। सनद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 में अरावली में खनन कार्य पर प्रतिबंध लगा दिया था। तब से हरियाणा से लगते अरावली क्षेत्र में खनन कार्य पूरी तरह बंद है। उसके बाद 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने इको सेंसिटिव क्षेत्र में सभी प्रमुख और मामूली खनन पर पूरी तरह रोक लगा दी थी। जान लें कि दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान का अस्तित्व ही अरावली पर टिका है और यदि इससे जुड़े संरक्षण के कानूनों में थोड़ी भी ढील दी गई तो भले ही सरकारी खजाने में कुछ धन आ जाए, लेकिन हजारों हेक्टेयर का कृषि और हरियाली क्षेत्र रेगिस्तान में बदल जाएगा। यह भी याद करना जरूरी है कि वर्ष 2019 के 27 फरवरी को हरियाणा विधानसभा में जो हुआ था उसने अरावली के प्रति सरकारों की संवेदनहीनता जाहिर कर दी थी। बहाना था कि महानगरों का विकास करना है, इसलिए लाखों वर्ष पुरानी ऐसी संरचना जो कि रेगिस्तान के विस्तार को रोकने से लेकर जैवविविधता संरक्षण तक के लिए अनिवार्य है, उसे कंक्रीट का जंगल बनने के लिए छोड़ दिया गया।
बीते दिनों हरियाणा विधानसभा ने संबंधित एक्ट में ऐसा बदलाव किया कि अरावली पर्वतमाला की लगभग 60 हजार एकड़ जमीन शहरीकरण के लिए मुक्त कर दी गई। इसमें 16,930 एकड़ गुरुग्राम में और 10,445 एकड़ जमीन फरीदाबाद में आती है। अरावली की जमीन पर बिल्डरों की शुरू से ही गिद्ध दृष्टि रही है। हालांकि एक मार्च को पंजाब भूमि संरक्षण (हरियाणा संशोधन) अधिनियम-2019 पर दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए हरियाणा विधानसभा के प्रस्ताव के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चेता दिया था कि यदि अरावली से छेड़छाड़ हुई तो खैर नहीं। ऐसा लगता है कि अरावली का अस्तित्व अदालत के बदौलत ही बचा है। राजस्थान सरकार भी अरावली क्षेत्र में अवैध खनन रोकने को लेकर अदालत में बचती दिखी है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के लगभग 100 देशों में हरियाली वाली जमीन रेत के ढेर से ढक रही है। उल्लेखनीय है कि यह खतरा पहले से रेगिस्तान वाले इलाकों से इतर है। धीमी गति से विस्तार पा रहे रेगिस्तान का सबसे ज्यादा असर एशिया में ही है। इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का एक शोध बताता है कि थार रेगिस्तान अब राजस्थान से बाहर निकल कर कई राज्यों में जड़ जमा रहा है। इस बात पर बहुत कम लोग ध्यान देते हैं कि भारत के राजस्थान से सुदूर पाकिस्तान व उससे आगे तक फैले भीषण रेगिस्तान से हर दिन लाखों टन रेत उड़ती है और यह हरियाली वाले इलाकों तक नहीं पहुंचे इसकी सुरक्षा का काम अरावली पर्वतमाला सदियों से करती रही है। विडंबना है कि बीते चार दशकों में यहां मानवीय हस्तक्षेप और खनन इतना बढ़ा कि कई स्थानों पर पहाड़ की जगह गहरी खाई हो गई और एक बड़ा कारण यह भी है कि अब उपजाऊ जमीन पर रेत की परत का विस्तार हो रहा है।
गुजरात के खेड़ से आरंभ होकर करीब 692 किमी तक फैली अरावली पर्वतमाला का विसर्जन देश के सबसे ताकतवर स्थान रायसीना हिल्स पर होता है जहां राष्ट्रपति भवन स्थित है। अरावली पर्वतमाला को दुनिया के सबसे प्राचीन पहाड़ों में गिना गया है। ऐसी महत्वपूर्ण प्राकृतिक संरचना का बड़ा हिस्सा बीते चार दशकों में पूरी तरह न केवल नदारद हुआ, बल्कि कई जगह गहरी खाई हो गई। अरावली की प्राकृतिक संरचना नष्ट होने की ही त्रसदी है कि वहां से गुजरने वाली साहिबी, कृष्णावति, दोहन जैसी नदियां लुप्त हो रही हैं। विश्व वन्य संस्थान की एक रिपोर्ट बताती है कि 1980 में अरावली क्षेत्र के 247 वर्ग किमी पर आबादी थी, आज यह 638 वर्ग किमी हो गई है। इसके 47 वर्ग किमी क्षेत्र में कारखाने भी हैं।
वैसे तो भूमाफिया की नजर दक्षिण हरियाणा की पूरी अरावली पर्वत श्रेणी पर है, लेकिन सबसे अधिक नजर गुरुग्राम, फरीदाबाद एवं नूंह इलाके पर है। अधिकतर भूभाग भूमाफिया वर्षो पहले ही खरीद चुके हैं। वन संरक्षण कानून के कमजोर होते ही सभी अपनी जमीन पर गैर वानिकी कार्य शुरू कर देंगे। फिलहाल वे गैर वानिकी कार्य नहीं कर सकते। जहां पर वन संरक्षण कानून लागू होता है, वहां पर सरकार से संबंधित विकास कार्य ही केवल किए जा सकते हैं। ऐसे में अरावली के पर्यावरणीय महत्व को देखते हुए हमें इसके पर्याप्त संरक्षण के पुख्ता उपायों को अमल में लाना होगा।
रेगिस्तान की रेत को रोकने के अलावा अरावली मिट्टी के क्षरण, भूजल का स्तर बनाए रखने और जमीन की नमी बरकरार रखने वाली कई जोहड़ व नदियों को आसरा देती रही है। लिहाजा अदालत के आदेशों का पालन अनिवार्य करते हुए अरावली को हर हाल में बचाया जाना चाहिए।
[पर्यावरण मामलों के जानकार]