जम्मू-कश्मीर में विकास की प्रक्रिया से चिंतित अब्दुल्ला-मुफ्ती अपनी जमीन खिसकती देख बौखलाए

मौजूदा हालातों में कश्मीर घाटी एवं अन्य इलाकों में विशेषकर बहुसंख्यक मुस्लिम लोगों को विकास तथा भाई-चारे की मुहिम के साथ कैसे जोड़ा जाए? सरकार के समक्ष यह बड़ी चुनौती है। जम्मू-कश्मीर में विकास की इसी प्रक्रिया से चिंतित कश्मीरी नेता अपनी जमीन खिसकती देख बौखलाए प्रतीत हो रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 21 Oct 2020 10:53 AM (IST) Updated:Wed, 21 Oct 2020 01:16 PM (IST)
जम्मू-कश्मीर में विकास की प्रक्रिया से चिंतित अब्दुल्ला-मुफ्ती अपनी जमीन खिसकती देख बौखलाए
कश्मीरी नेता अपनी जमीन खिसकती देख बौखलाए प्रतीत हो रहे हैं।

डॉ. नरेश कुमार त्यागी। संघ शासित जम्मू-कश्मीर देश की आजादी से पूर्व एक समृद्धशाली राज्यों में गिना जाता था, लेकिन पाकिस्तान पोषित आतंकवादी घटनाओं और अलगाववादियों द्वारा कश्मीर की आजादी के नाम पर आम मुसलमानों को उकसाने जैसी गतिविधियों के चलते प्रदेश का काफी समय से सर्वागीण विकास अवरुद्ध हो गया था। अनुच्छेद-370 और 35ए हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में एक नए युग की शुरुआत हुई है। वहां खून-खराबा और भ्रष्टाचार काफी हद तक रुक गए हैं। परिणामस्वरूप नया जम्मू-कश्मीर विकास के पथ पर चल पड़ा है। अब उद्योगपति भी वहां निवेश करने में उत्सुकता दिखा रहे हैं। कई स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े समूह वहां बड़े-बड़े हॉस्पिटल खोलने का मन बना रहे हैं। इसी प्रकार निजी शैक्षिक संस्थान भी खोले जा रहे हैं। शिकारा और हाउसबोट जैसे उद्योग-धंधे पुन: फलने-फूलने लगे हैं।

‘स्पेशल मार्केट इंटरवेंशन प्राइस स्कीम’ : गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। यहां धान, गेहूं, मक्का और केसर की प्रमुख फसलें उगाई जाती हैं। कुछ भागों में जौ, बाजरा, ज्वार भी उगाए जाते हैं। कश्मीर में बागवानी व्यापक स्तर पर की जाती है। इससे 27 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है। झीलों एवं नदियों में मछलियों एवं सिंघाड़ों तथा इनके किनारों पर सब्जियों एवं फूलों की खेती की जाती है। केसर की खेती कश्मीर घाटी में विशेषकर पुलवामा जिले के पंपोर और इसके आस-पास के गांवों में की जाती है। कश्मीर में सेब की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है। घाटी से सेब के प्रतिदिन करीब 750 ट्रक देश के अन्य भागों में जाते हैं। केंद्र सरकार ने 2019 में सेब की खेती करने वाले किसानों के लिए एक नई योजना ‘स्पेशल मार्केट इंटरवेंशन प्राइस स्कीम’ लागू की है। इसके तहत नेफेड सीधे तौर पर कश्मीर के किसानों से सेब खरीदता है और इसके बाद प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के तहत रकम सीधे किसानों के खाते में भेज दी जाती है। इस योजना से प्रदेश के करीब सात लाख किसानों को लाभ हुआ है।

ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण में काफी तेजी : केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर के गांवों के विकास के लिए दिया जाने वाला पैसा अब सीधे सरपंचों के खाते में डालने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए ग्राम पंचायतों के विकास के लिए 4483 पंचायतों को 366 करोड़ रुपये की राशि दी गई है। सरकार ने 634 ग्राम पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ने का भी निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने कश्मीरी किसानों के लिए पेंशन योजना को भी लागू किया है। इसका लाभ करीब पांच करोड़ किसानों को मिला है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण में भी काफी तेजी आई है। 2019 के आंकड़ों के अनुसार इस योजना के तहत कश्मीर में करीब 11,400 सड़कों का निर्माण किया गया है, जिससे 1338 गांवों और कस्बों को जोड़ने में मदद मिली है। कश्मीर के किसानों को बाजार की सहायक सेवाएं प्रदान करने और विभिन्न बाजारों तक उचित सड़क संपर्क सुनिश्चित करने के लिए फसल विशिष्ट कृषि कलस्टरों का विकास किया जा रहा है। इसके अलावा केंद्र सरकार ने इस साल ग्रामीण विकास के लिए 25 योजनाओं को पूरा करने का लक्ष्य रखा है।

हालांकि जम्मू-कश्मीर में विकास करने के लिए सरकार के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं। मौजूदा हालातों में कश्मीर घाटी एवं अन्य इलाकों में विशेषकर बहुसंख्यक मुस्लिम लोगों को विकास तथा भाई-चारे की मुहिम के साथ कैसे जोड़ा जाए? सरकार के समक्ष यह बड़ी चुनौती है। कुल मिलाकर नव निíमत संघ शासित जम्मू-कश्मीर में विकास की इसी प्रक्रिया से चिंतित कश्मीरी नेता अपनी जमीन खिसकती देख बौखलाए प्रतीत हो रहे हैं।

[लेखक- असिस्टेंट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]

chat bot
आपका साथी