लोकतंत्र में इंटरनेट मीडिया की चुनौतियां, कानूनी शिकंजा कसा जाना समय की मांग

यह भी स्पष्ट है कि ये कंपनियां लाभ के उद्देश्य से काम करती हैं और अपने शेयर होल्डरों के लिए अधिकतम लाभ कमाने के लिए अग्रसर रहती हैं। लिहाजा इन पर कानूनी शिकंजा कसा जाना समय की मांग है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 19 Jan 2021 02:30 PM (IST) Updated:Tue, 19 Jan 2021 02:31 PM (IST)
लोकतंत्र में इंटरनेट मीडिया की चुनौतियां, कानूनी शिकंजा कसा जाना समय की मांग
गौरतलब है कि इन कंपनियों की गतिविधियों में पारदर्शिता का पूर्णतया अभाव है।

डॉ. अश्विनी महाजन। हाल ही में यह प्रकाश में आया है कि कैंब्रिज एनालेटिका नामक एक कंपनी ने 8.7 करोड़ लोगों के फेसबुक डाटा के आधार पर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के चुनाव अभियान में काम किया और ट्रंप की जीत में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। प्रश्न यह है कि इस कंपनी को फेसबुक का डाटा कहां से मिला, तो यह बात स्पष्ट है कि वो फेसबुक से ही प्राप्त किया गया। वर्ष 2018 में यह बात सामने आई थी कि इसी कैंब्रिज एनालेटिका ने भारत की कांग्रेस पार्टी के लिए फेसबुक और ट्विटर के डाटा का उपयोग कर 2019 के चुनावों के लिए मतदाताओं के रुझान को बदलने के लिए कार्य करने का प्रस्ताव रखा।

राजनीतिक दलों के लिए चुनावों की दृष्टि से इंटरनेट मीडिया कंपनियों के डाटा का दुरुपयोग एक सामान्य बात मानी जाने लगी है। लेकिन हालिया अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में इन कंपनियों का दखल बढ़ गया है। ट्रंप की लगभग सभी ट्वीट पर ट्विटर कंपनी की टिप्पणी आ रही थी। ट्रंप के सभी बयानों को संदेहास्पद बनाने में इस कंपनी की भूमिका रही। अमेरिका में हुए हालिया हिंसक प्रदर्शनों के बाद ट्रंप का ट्विटर एकाउंट सस्पेंड करने के कारण यह कंपनी विवाद का केंद्र बन गई है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि इन कंपनियों के पास इन प्लेटफार्म्स को इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों की निजी जानकारियां बड़ी मात्र में होती हैं। ये कंपनियां उनके सामाजिक रिश्तों, जात-बिरादरी, आर्थिक स्थिति, उनकी आवाजाही व खरीदारियों समेत तमाम प्रकार के डाटा पर अधिकार रखती हैं और इसका उपयोग वे राजनीतिक दलों के हितसाधन में भी कर सकती हैं। ऐसे में वे प्रजातंत्र को गलत तरीके से प्रभावित कर सकती हैं। हालांकि इंटरनेट मीडिया का उपयोग ईमानदारी से किया जाए तो उसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन यदि ये राजनीति को प्रभावित करने का व्यवसाय करने लगें, तो लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं ही नहीं, बल्कि सामाजिक तानाबाना भी खतरे में पड़ जाएगा।

गौरतलब है कि अकेले भारत में ही फेसबुक के 33.6 करोड़ से ज्यादा खाते हैं, जबकि इस कंपनी द्वारा चलाई जा रही मैसेजिंग, वायस एवं वीडियो कॉल एप्स के 40 करोड़ से ज्यादा ग्राहक हैं। इसी प्रकार फेसबुक इंस्टाग्राम एप की भी मालिक है, जो फोटो और वीडियो साझा करने की एक लोकप्रिय एप्लीकेशन है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत की एक बड़ी आबादी का निजी, आर्थिक एवं सामाजिक डाटा इस कंपनी के पास है। इसी प्रकार भारत में ट्विटर के लगभग सात करोड़ और दुनिया में 33 करोड़ खाते हैं। फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर, लिंक्डइन आदि हालांकि मुफ्त में सेवाएं प्रदान करती हैं, लेकिन अपने बड़े डाटाबेस का उपयोग वे अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए करती हैं। इसी प्रकार गूगल को भी इस तरह के अनेक मामलों में दोषी पाया गया है।

आज भारत में विज्ञापन की दृष्टि से गूगल और फेसबुक सर्वाधिक आमदनी कमाने वाली कंपनियां बन चुकी हैं। इसी प्रकार अन्य कंपनियों के भी अपने-अपने बिजनेस मॉडल हैं। ये कंपनियां उपभोक्ताओं को काफी संतुष्टि भी प्रदान कर रही हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। लेकिन इनकी बढ़ती लोकप्रियता और इन पर किसी भी प्रकार के अंकुश के अभाव में इन कंपनियों से समाज के तानेबाने को बिगाड़ने और लाभ के लिए कार्य करते हुए प्रजातंत्र को प्रभावित करने की केवल आशंकाएं ही नहीं, बल्कि वास्तविक खतरे भी बढ़ते जा रहे हैं। 

[एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]

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