बीमारी की तरह नहीं निपट सकते महामारी से: कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए लेने होंगे कारगर त्वरित फैसले

कोरोना संक्रमण की इस दूसरी लहर ने हमें एक सबक यह भी सिखाया है कि बीमारी किसी को भी शिकार बना सकती है। अब किसी भी रूप में ऑक्सीजन का संकट नहीं होना चाहिए। भारत को स्पष्ट लक्ष्य तय करने होंगे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 05 May 2021 03:14 AM (IST) Updated:Wed, 05 May 2021 07:14 AM (IST)
बीमारी की तरह नहीं निपट सकते महामारी से: कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए लेने होंगे कारगर त्वरित फैसले
कोविड महामारी से दूसरी बीमारी की तरह नहीं निपट सकते, इससे युद्ध लड़ना होगा।

[ सृजन पाल सिंह ]: अप्रैल की शुरुआत तक भारत कोरोना वायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई को लेकर आश्वस्त था। कई विदेशी जानकारों ने भी बताया था कि कैसे सितंबर-अक्टूबर, 2020 की दूसरी लहर में भारत ने अपने आप को सुरक्षित रखा, मगर लगता है कि हमने चीन से निकले इस कोरोना वायरस की परिस्थितियों के अनुसार म्यूटेशन की क्षमता को नजरअंदाज कर दिया। ब्रिटिश स्ट्रेन और कैलिफोर्निया स्ट्रेन को मिलाकर डबल म्यूटेशन का जन्म हुआ और यही भारतीय म्यूटेंट है, जो देश को तेजी से अपनी चपेट में ले रहा है। यह म्यूटेशन अब तक ज्ञात किसी भी म्यूटेशन से सबसे तेजी से फैलने वाला है। इसने हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की क्षमता, हमारे प्रशासन और कम समय में निर्णायक कदम उठाने के हमारे संकल्प की कड़ी परीक्षा ली है। आज भारत कोरोना वायरस से निपटने की एक मिसाल वाले देश से अब इसके गंभीर रूप का ज्वलंत उदाहरण बन गया है।

पहली लहर में प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक तस्वीरें दिखी थीं अब दिल को चीर देने वाले तमाम वीडियो

संक्रमण की पहली लहर में जहां प्रवासी मजदूरों के पैदल घर जाने की दर्दनाक तस्वीरें दिखी थीं, वहीं अब दिल को चीर देने वाले तमाम वीडियो दिख रहे हैं, जिनमें लोग अपने प्रियजनों के लिए ऑक्सीजन और दवाइयों की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि अधिकांश बड़े देशों में संक्रमण की लहर दो बार आ चुकी है। उदाहरण के लिए अमेरिका में पहली लहर जुलाई-अगस्त, 2020 में आई तो दूसरी दिसंबर में आई। ब्रिटेन में नवंबर में और फिर जनवरी 2021 में। भारत को इस दूसरी लहर के वेग का अंदाजा नहीं था। अब सवाल यह है कि इस नए परिदृश्य में भारत को कोरोना पर विजय प्राप्त करने की क्या राह लेनी चाहिए?

कोरोना की दूसरी लहर में एक दिन की देरी का मतलब सैकड़ों जिंदगियां गंवा देना

सबसे पहले, हमें कोविड संक्रमण के डाटा आधारित निर्णय लेने पर भारी निवेश करना होगा। हमें तेजी के साथ भारत के कोने-कोने से डाटा जुटाने होंगे और डाटा के ट्रेंड के आधार पर सही निर्णय लेने होंगे। आज लोग दवाइयां और उपकरण कहां मिलेंगे, इसकी जानकारी प्राप्त करने के लिए इंटरनेट मीडिया का प्रयोग कर रहे हैं। यह कारगर तरीका नहीं है। इससे अफरातफरी मच रही है। ऐसी सूचना सरकार के जरिये मिलनी चाहिए। हमें अपने निर्णयों में आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस से मदद लेनी होगी, ताकि मानवीय तत्वों के कारण उत्पन्न त्रुटियों और देरी को समाप्त किया जा सके। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने हमें सिखाया है कि एक-एक घंटा मायने रखता है और एक दिन की देरी का मतलब है सैकड़ों जिंदगियां गंवा देना।

ऐसी दवाओं का निर्माण करना होगा जो संक्रमण को तेजी से फैलने से रोक सकती

दूसरा, हमने देखा है कि कैसे टीकाकरण के अच्छे-खासे लक्ष्य को हासिल करने के बाद इजरायल और अमेरिका ने मास्क और शारीरिक दूरी के दिशा-निर्देशों में छूट दी। अप्रैल 2021 के आखिरी हफ्ते में इजरायल ने एक दिन में कोरोना से शून्य मौत का लक्ष्य भी हासिल किया। यह दिखाता है कि टीके कारगर हैं, लेकिन तभी जब आबादी के एक बड़े हिस्से को लग जाएं। भारत को भी टीकाकरण के लिए एक बेहतर खाका तैयार करना होगा। इसमें उसे अपनी सेना और सेवानिवृत्त डॉक्टरों को शामिल करना चाहिए। हमें ऐसी दवाओं के निर्माण पर भी नजर रखनी चाहिए, जो संक्रमण को तेजी से फैलने से रोक सकती हैं। भारत की अपनी कंपनियां कई नई वैक्सीन और दवाइयों पर काम कर रही हैं। उन्हें सरकार से मदद की जरूरत है।

कोविड महामारी से दूसरी बीमारी की तरह नहीं निपट सकते, इससे युद्ध लड़ना होगा

कई अमीर देशों के विपरीत भारत ने शुरुआत में वैक्सीन शोध में निवेश न कर चूक कर दी। अब हमें अपने निवेश को इस प्रकार करना होगा कि हमें नए शोध का फायदा जल्द मिल सके। तीसरा, हम कोविड सरीखी महामारी से किसी दूसरी बीमारी की तरह नहीं निपट सकते। इससे निपटना युद्ध लड़ने जैसा होता है, जिसके लिए जबरदस्त तेजी और समन्वय की जरूरत होती है। भारत को संक्रामक रोगों से निपटने के लिए मिशन मोड वाला एक अलग विभाग बनाना होगा। यह महज स्वास्थ्य मंत्रालय तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि इसमें रक्षा, वाणिज्य और गृह मंत्रालय को भी शामिल करना होगा। इसके पास सेना को तेजी से इकट्ठा करने, आपातकालीन धन देने, आंकड़ों तक पहुंच, जिला अधिकारियों पर नियंत्रण, पुलिस व्यवस्था, खरीद और सामान की आर्पूित की शक्ति होनी चाहिए। चौथा, इस विभाग का नियंत्रण प्रधानमंत्री के पास होना चाहिए। इसकी कमान नौकरशाहों के बजाय तकनीकी रूप से दक्ष और अपने-अपने क्षेत्रों के जानकार संभालें।

त्वरित फैसले तभी संभव जब सर्वोच्च नेतृत्व को महामारी से निपटने के विज्ञान की समझ हो

त्वरित फैसले तभी संभव हैं जब सर्वोच्च नेतृत्व को महामारी से निपटने के विज्ञान की समझ हो। निर्णय लेने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की ही होनी चाहिए। वह राज्यों को नहीं सौंपी जा सकती। यही बड़ा अंतर है कि हमने पहली लहर को कैसे संभाला और दूसरी में विफल हो गए। पांचवां, एक वैश्विक महामारी पूरी मानवता की समस्या है। इसमें किसी एक देश को अलग नहीं रखा जा सकता। चीन के वुहान शहर में जो हुआ, वह दो महीने के भीतर सभी देशों तक पहुंच गया।

दीवाली तक 50 फीसद आबादी का पूर्ण टीकाकरण करना होगा

अब जो भारत में हो रहा है, उसे यदि रोका नहीं गया तो वह भी पूरी दुनिया में फैल जाएगा। भारत एक वैश्विक शक्ति है। हम वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली इंटरनेशनल का नेतृत्व करते हैं। किसी के भी मुकाबले ज्यादा वैक्सीन बनाते हैं और इस कारण दुनिया की कूटनीति पर हमारा दबदबा है। भारत को डाटा शेयरिंग, शोध में सहयोग और अलग-अलग देशों के बीच लोगों की सहायता वाला एक वैश्विक सहयोग नेटवर्क बनाना चाहिए। इसके साथ ही भारत को स्पष्ट लक्ष्य तय करने होंगे। दीवाली तक 50 प्रतिशत आबादी का पूर्ण टीकाकरण करना होगा। इसका मतलब होगा, हर महीने 20 करोड़ डोज और अभी के मुकाबले 2.5 गुना अधिक रफ्तार से। हम ऐसा कर सकते हैं। हमें मेडिकल सप्लाई का महत्वपूर्ण स्टॉक भी बनाना चाहिए।

ऑक्सीजन का संकट नहीं होना चाहिए

अब किसी भी रूप में ऑक्सीजन का संकट नहीं होना चाहिए। हमें और अधिक डॉक्टरों और नर्सों पर निवेश करना चाहिए, जो इस लहर में तनाव के भार के तले दब गए हैं। कोरोना संक्रमण की इस दूसरी लहर ने हमें एक सबक यह भी सिखाया है कि बीमारी किसी को भी शिकार बना सकती है। भारत में जब परिवारों के सदस्य शोक मना रहे हैं तब इस देश को दो सबसे बड़े शत्रुओं को पहचान लेना चाहिए-गरीबी और बीमारी। चलिए इस दशक में हम इनके खिलाफ जंग लड़ें।

( पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सलाहकार रहे लेखक कलाम सेंटर के सीईओ है )

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