फर्जी खबरें फैलाने का धंधा: गाजियाबाद की साधारण घटना में जय श्रीराम के नारे को दिया गया बड़े मामले का आकार
क्या यह जानबूझकर की गई शरारत नहीं कि ट्विटर दिल्ली पुलिस की जांच के पहले ही यह जान जाता है कि टूलकिट के पीछे कांग्रेस का हाथ नहीं लेकिन गाजियाबाद पुलिस की जांच के बाद भी यह नहीं समझ पाता कि मुस्लिम बुजुर्ग की पिटाई सांप्रदायिक मामला नहीं?
[ राजीव सचान ]: चुनाव करीब आते देखकर केवल राजनीतिक दल ही नहीं, शरारती तत्व, फर्जी फैक्ट चेकर और तथाकथित बुद्धिजीवी भी खासे सक्रिय हो जाते हैं, इसका पता चलता है गाजियाबाद के लोनी इलाके की उस घटना से, जिसमें एक मुस्लिम बुजुर्ग की पिटाई को सांप्रदायिक रंग दिया गया। जैसे ही यह कथित सूचना आई कि लोनी में बुलंदशहर के एक मुस्लिम बुजुर्ग अब्दुल समद की पिटाई की गई और पीटने वालों ने उनकी दाढ़ी काटने के साथ उनसे जबरन जयश्री राम कहने को भी कहा, विपक्षी नेताओं के साथ लिबरल-सेक्युलर तत्व और मीडिया का एक हिस्सा बिना कुछ सोचे-विचारे सक्रिय हो गया। इन सबने योगी सरकार को कठघरे में खड़ा करना और यह प्रतीति कराना शुरू कर दिया कि उत्तर प्रदेश में सरकार के संरक्षण-समर्थन में सांप्रदायिक तत्व बेलगाम हो गए हैं। चूंकि मुस्लिम बुजुर्ग से कथित तौर पर जय श्रीराम बोलने को कहा गया, इसलिए फौरन ही इस नतीजे पर पहुंच जाया गया कि बुजुर्ग की पिटाई इसलिए की गई, क्योंकि वह मुस्लिम थे। लिबरल-सेक्युलर तत्वों के दुर्भाग्य से यह सच नहीं था। सच यह था कि बुजुर्ग की पिटाई इसलिए हुई, क्योंकि उनके दिए हुए ताबीज ने कथित तौर पर उलटा असर किया। उसे लेने वाले प्रवेश गुर्जर को उससे फायदा होने के बजाय नुकसान हो गया। इससे कुपित होकर ही उसने अब्दुल समद को पीट दिया। उनकी पिटाई में उसका साथ दिया आदिल, इंतजार, सद्दाम वगैरह ने।
आपसी विवाद में मारपीट की घटना को राष्ट्रीय खबर का स्वरूप दिया गया
गाजियाबाद पुलिस जब तक यह बताती कि अब्दुल समद की पिटाई में कई मुस्लिम युवक शामिल थे और पिटाई के दौरान जिस वीडियो के जरिये यह साबित करने की कोशिश की गई कि उनसे जबरन जय श्रीराम कहलवाया गया, वह फर्जी था और उसे एक सपा नेता उम्मेद पहलवान ने अपनी नेतागीरी चमकाने के लिए तैयार किया था, तब तक आपसी विवाद में मारपीट की इस घटना को राष्ट्रीय खबर का स्वरूप दिया जा चुका था। यह तो गनीमत रही कि गाजियाबाद पुलिस ने तत्काल सक्रिय होकर सच्चाई बयान कर दी, अन्यथा यह खबर अंतरराष्ट्रीय मीडिया का भी हिस्सा बन जाती। इस मामले को सनसनीखेज रूप देने में बड़े नेताओं का भी योगदान रहा। राहुल गांधी भी इस मामले में कूदे, जो एक अर्से से अपनी राजनीति ट्विटर के माध्यम से ही चला रहे हैं और कांग्रेस के एक बड़े नेता के बजाय एक ट्रोल की तरह अधिक व्यवहार कर रहे हैं। उन्होंने ज्ञान दिया कि वह यह मानने को तैयार नहीं कि श्रीराम के सच्चे भक्त ऐसा कर सकते हैं। इस घटना को सांप्रदायिक स्वरूप देने का काम तथाकथित पत्रकारों और तथ्यों की जांच-परख का दिखावा करने यानी फैक्ट चेक का फर्जी धंधा करने वालों ने भी किया। इन सभी ने उस फर्जी वीडियो को ऐसा कुछ कहते हुए ट्वीट और रीट्वीट किया कि आखिर वे योगी के शासन में और कुछ होने की अपेक्षा कर भी कैसे सकते हैं? जब पुलिस की जांच सामने आई, तब इनमें से कई ने अपने ट्वीट डिलीट किए, लेकिन उनके ऐसा करने से यह छिप नहीं सका कि वे सब ऐसी ही घटनाओं की ताक में रहते हैं और उनकी तह में जाए बिना कौआ कान ले गया की तर्ज पर शोर मचाने लगाते हैं। इससे यह भी जाहिर हुआ कि तथाकथित फैक्ट चेकर वास्तव में फैक्ट चेक का काम करने के बजाय फर्जी खबरें फैलाते हैं।
योगी सरकार को बदनाम करने की साजिश
क्या यह आवश्यक नहीं था कि फैक्ट चेक करने वाले पहले यह जांच लेते कि जिस वीडियो में कथित तौर पर यह दिखाया जा रहा कि मुस्लिम बुजुर्ग से जबरन जय श्रीराम बुलवाया जा रहा, वह फर्जी है? यह आवश्यक तो था, लेकिन उसकी जरूरत इसलिए नहीं समझी गई, क्योंकि मामला भाजपा शासित उत्तर प्रदेश का था और इस मामले से योगी सरकार को बदनाम करने में आसानी हो रही थी। हैरत नहीं कि आने वाले दिनों में इस तरह की और घटनाएं सामने आएं, क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में ज्यादा देर नहीं है। आने वाले दिनों में ऐसी घटनाओं के सामने आने की आशंका अधिक है, जिनके केंद्र में या तो जय श्रीराम का नारा होगा या फिर गाय। लोनी की घटना साधारण थी, लेकिन उसमें जय श्रीराम का नारा नत्थी कर उसे बड़ी घटना का आकार दे दिया गया। वास्तव में निशाने पर योगी सरकार अथवा उत्तर प्रदेश की कानून एवं व्यवस्था कम, जय श्रीराम का नारा अधिक था। उम्मेद पहलवान और उसके जैसे लोगों को यह पता था कि जय श्रीराम का नारा जोड़ देने से मामला सनसनीखेज बन जाएगा।
ट्विटर ने गाजियाबाद पुलिस की जांच के बाद भी फर्जी वीडियो को नहीं हटाया
इस पूरे मामले में सबसे शातिर भूमिका निभाई ट्विटर ने। उसने गाजियाबाद पुलिस की जांच के बाद भी उस फर्जी वीडियो को नहीं हटाया, जिसमें अब्दुल समद से कथित तौर पर जय श्रीराम कहलवाया जा रहा था। ट्विटर या ऐसी ही अन्य सोशल नेटवर्क साइट भले ही फर्जी खबरों से लड़ने का दावा करती हों, लेकिन वास्तव में वे ऐसी खबरों को गढ़ने और फैलाने वालों को संरक्षण देती हैं। वे मुश्किल से ही फर्जी खबरें फैलाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई करती हैं। यह एक तथ्य है कि जबसे सोशल नेटवर्क साइट्स की पहुंच बढ़ी है, तब से फर्जी खबरों का फैलाव बढ़ा है। गाजियाबाद की घटना और खासकर उससे जुड़े फर्जी वीडियो पर ट्विटर का कहना है कि वह हर ट्वीट की सत्यता की परख करने में समर्थ नहीं, लेकिन इसी ट्विटर ने इस बात की परख फौरन कर ली थी कि जिस ट्वीट के जरिये टूलकिट को कांग्रेस की कारस्तानी बताया गया था, वह मैनीपुलेटेड था यानी उसे तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। क्या यह जानबूझकर की गई शरारत नहीं कि ट्विटर दिल्ली पुलिस की जांच के पहले ही यह जान जाता है कि टूलकिट के पीछे कांग्रेस का हाथ नहीं, लेकिन गाजियाबाद पुलिस की जांच के बाद भी यह नहीं समझ पाता कि मुस्लिम बुजुर्ग की पिटाई सांप्रदायिक मामला नहीं?
( लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं )