किसान और बुजुर्गों को मिले प्राथमिकता, देश के एक बड़े वर्ग को आगामी बजट से राहत की उम्मीद
कोरोना संकट के दौरान कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का तारणहार बना रहा। अगर इस क्षेत्र को और मजबूत बनाया जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत और सुधर सकती है। ऐसे में बजट का महत्व और बढ़ गया है।
[सतीश सिंह]। कोरोना संकट के दौरान कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का तारणहार बना रहा। अगर इस क्षेत्र को और मजबूत बनाया जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत और सुधर सकती है। आज कुल कृषि ऋण का 60 प्रतिशत हिस्सा किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) का है। इस उत्पाद से छोटे एवं सीमांत किसान लाभान्वित भी हो रहे हैं। यदि केसीसी ऋण देने की शर्तो को और भी सरल व आसान बनाया जाता है तो और अधिक किसान इस ऋण को लेने के लिए प्रेरित होंगे। तीन लाख रुपये की ऋण सीमा तक वाले केसीसी खाताधारकों के खातों को सिर्फ ब्याज का भुगतान करने पर उनके ऋण खाते का नवीनीकरण कर दिया जाए तो छोटे एवं सीमांत किसानों को बड़ी राहत मिलेगी, क्योंकि मौजूदा समय में बड़ी संख्या में केसीसी खाते समय पर नवीनीकृत नहीं होने के कारण गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) में तब्दील हो रहे हैं। ऐसा करने से किसानों व बैंकों दोनों को फायदा होगा।
किसानों को उनकी उपज की सही कीमत मिलना आवश्यक है। इसलिए राज्यों में होने वाली फसल के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की जगह राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) में चुनिंदा फसलों की उपज के नीलामी की संभावना तलाश की जानी चाहिए। ई-नाम के जरिये किसानों को अपने फसल की उपज बेचने में आसानी होगी। अनुबंध कृषि को नियंत्रित करने के लिए एक नियामक भी होना चाहिए, ताकि छोटे एवं सीमांत किसान बड़े खरीदारों से मोलभाव करके सौदा कर सकें। आमतौर पर बड़े खरीदार छोटे एवं सीमांत किसानों की फसलों को शुरू में तो अधिक कीमत पर खरीदते हैं, लेकिन बाद में वे सही कीमत नहीं देते हैं।
कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए अगर कुल ऋण का एक निश्चित प्रतिशत ऋण बैंकों द्वारा वितरित नहीं किया जाता है, तो दंड स्वरूप उन्हें कुछ राशि रूरल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (आरआइडीएफ) में जमा करना पड़ता है, जिस पर उन्हें ब्याज नहीं मिलता है। प्राथमिकता क्षेत्र में निर्धारित ऋण राशि वितरित नहीं किए जाने के कारण बैंकों को आरआइडीएफ में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश करना पड़ा है। हालांकि, यह राशि एक निश्चित समय के बाद बैंकों को वापस की जाती है। फिर भी, इसमें से कुछ राशि का उपयोग छोटे और सीमांत किसानों को ऋण देने में किया जा सकता है।
ऋण को आवश्यक रूप से स्वीकृत करने की व्यवस्था करनी चाहिए
एमएसएमइ के अंतर्गत दिए जाने वाले दो करोड़ रुपये तक के ऋण को आवश्यक रूप से स्वीकृत करने की व्यवस्था भी करनी चाहिए, ताकि ऋण के एनपीए होने पर बैंक पर अनावश्यक वित्तीय भार नहीं पड़े। वैसे एमएसएमई जिसके कुल टर्नओवर में 70 प्रतिशत हिस्सा निर्यात का हो, उन्हें विशेष दर्जा देने की जरूरत है, ताकि उन्हें निर्यात जोन में सस्ती जमीन, सस्ती ब्याज दर पर ऋण की सुविधा, निर्यात नियमों में राहत आदि का लाभ मिल सके।
बुढ़ापे में ब्याज से प्राप्त आय बुजुर्गो के जीवनयापन का बड़ा सहारा
वरिष्ठ नागरिक बचत खाता योजना की सुविधा बैंक बुजुर्गो को दे रहे हैं। इस योजना के तहत वे 15 लाख रुपये जमा कर सकते हैं, जिन पर उन्हें आकर्षक ब्याज मिलता है, लेकिन ब्याज के करमुक्त नहीं होने के कारण अधिकांश बुजुर्ग इस योजना में अपनी जिंदगी भर की कमाई जमा करने से परहेज करते हैं। अगर इस खाते में जमा राशि पर मिलने वाले ब्याज को करमुक्त कर दिया जाए तो बुजुर्गो को आर्थिक राहत तो मिलेगी ही, बैंकों को भी सस्ती पूंजी मिल सकेगी। वर्तमान में 80 टीटीबी के तहत जमा खाते में मिलने वाले 50 हजार रुपये तक के ब्याज को आयकर से मुक्त रखा गया है। यदि इसे बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दिया जाए तो बुजुर्गो को बड़ी राहत मिलेगी, क्योंकि बुढ़ापे में ब्याज से प्राप्त आय बुजुर्गो के जीवनयापन का बड़ा सहारा होता है।
[ लेखक- आर्थिक मामलों के जानकार हैं]