मुंहतोड़ जवाब, भारत की कूटनीति और आर्थिक नीति के सामने नाजी जर्मनी जैसा कम्युनिस्ट चीन ने टेके घुटने

प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार दोहराया है कि हम पर बुरी नजर डालने वालों के साथ मेलजोल की जरूरत नहीं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 11 Jul 2020 12:10 AM (IST) Updated:Sat, 11 Jul 2020 12:10 AM (IST)
मुंहतोड़ जवाब, भारत की कूटनीति और आर्थिक नीति के सामने नाजी जर्मनी जैसा कम्युनिस्ट चीन ने टेके घुटने
मुंहतोड़ जवाब, भारत की कूटनीति और आर्थिक नीति के सामने नाजी जर्मनी जैसा कम्युनिस्ट चीन ने टेके घुटने

[ ए. सूर्यप्रकाश ]: चीनी करतूतों की सूची बहुत लंबी है और पिछले महीने गलवन में सीमा की मर्यादा से छेड़छाड़ बस ताजा मिसाल भर है। अच्छी बात यह रही कि भारतीय सेना के बहादुर सैनिकों ने चीनी सेना को ललकार कर सही सबक सिखाया, मगर अफसोस कि भारतीय नेताओं ने साहस और विश्वास का परिचय नहीं दिया। यह रीत जवाहरलाल नेहरू के जमाने से चली आ रही है। चीन के साथ मित्रता को लेकर नेहरू ने भारी मुगालता पाला हुआ था जो सोच अव्यावहारिक होने के साथ ही यथार्थ से परे थी। उनकी यह धारणा थी कि समय के साथ दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत होते जाएंगे। चीनियों को साधने के लिए नेहरू किसी भी हद तक चले गए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन को जगह दिलाने की उनकी उत्कंठा भी यही जाहिर करती है।

भारत चीन को दुलारता रहा, वह हमें दुत्कारता ही रहा

इधर भारत चीन को दुलारता रहा, उधर वह हमें दुत्कारता ही रहा। चीन ने कभी मित्रवत व्यवहार नहीं किया। उसने सीमा संबंधी मुद्दों को सुलझाने की कोई इच्छा नहीं दिखाई। इसके बजाय वह वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी को नियमित सीमा मानता रहा। इसके पीछे भी उसकी खराब नीयत रही। यदि वह सीमांकन के लिए तैयार हो जाता तो अस्पष्ट सीमा रेखा के कारण जमीन हड़पने की उसकी नापाक मंशा पर पानी फिरता। इसीलिए उसने दशकों से सीमा को अंगार की तरह सुलगाए रखा। इतनी ही नहीं, उसने पाकिस्तान से दोस्ती और गहरी की। उसे न केवल हथियार दिए, बल्कि परमाणु शस्त्र हासिल करने में भी मदद की।

भारत के खिलाफ पाकिस्तानी आतंकवाद पर चीन ने आंखें मूंद रखीं

भारत के खिलाफ पाकिस्तानी आतंकवाद पर भी उसने आंखें मूंदें रखीं। इन सभी का क्या आशय है? यही कि चीन एक दुश्मन देश है और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी एक शत्रु संगठन जैसा वकील महेश जेठमलानी ने कहा।

पीएम मोदी का लेह से चीन को दो टूक, चीनी एप्स पर प्रतिबंध से चीन को लगा तगड़ा झटका 

प्रधानमंत्री मोदी का लद्दाख से दो-टूक संदेश और सरकार द्वारा चीनी एप्स पर प्रतिबंध के अलावा कई अहम परियोजनाओं से चीनी कंपनियों की छुट्टी करना निश्चित रूप से इस निरंकुश पड़ोसी के लिए तगड़ा झटका है। इतिहास में इससे पहले कभी किसी भारतीय नेता ने न तो ऐसी भाषा बोली और न ही ऐसी कोई कार्रवाई की। मोदी का यह कहना कि विस्तारवाद के दिन लद गए हैं, चीन के लिए यह स्पष्ट संदेश है कि उसे अपनी रीती-नीति बदलनी होगी। प्रधानमंत्री ने चीन और समग्र संसार को स्मरण कराया कि विस्तारवादी नीतियां मानवता को नष्ट करने के साथ ही विश्व शांति के लिए एक बड़ा खतरा होती हैं।

हिटलर की विस्तारवादी नीति जब फ्रांस और रूस से टकराई तो अपमानित होकर मुंह की खानी पड़ी

विस्तारवाद और उसके हानिकारक प्रभावों से जुड़ा मोदी का यह संदेश हमें द्वितीय विश्व युद्ध की कटु स्मृतियों की ओर ले जाता है। चीन का नाम लिए बिना ही मोदी दुनिया को बता रहे थे कि वह देश यानी नाजियों के समय का जर्मनी भी तमाम मुल्कों के खिलाफ मोर्चा खोलकर बहुत उन्मादी व्यवहार कर रहा था। हिटलर की विस्तारवादी नीतियों ने जर्मनों को भरोसा दिला दिया था कि वे अपराजित हैं और सभी पड़ोसी देशों पर कब्जा करने के साथ ही अमेरिकी सरपरस्ती वाले ब्रिटेन और रूस को तबाह कर सकते हैं। ऑस्ट्रिया, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया में घुसपैठ कर हिटलर ने अपने अभियान का आगाज किया। फिर उसने नॉर्वे, डेनमार्क, बेल्जियम, यूगोस्लाविया और ग्रीस के बाद लक्जमबर्ग और नीदरलैंड को हड़प लिया। जब उसने फ्रांस और फिर रूस में घुसपैठ की तो उसे अपमानित होकर मुंह की ही खानी पड़ी। उसने जितना हड़पा उसे भी पचा नहीं सका। इसे अति-आत्मविश्वास के शिकार नेता और एक देश के मूर्खतापूर्ण उन्माद की मिसाल ही कहा जाएगा।

भारत द्वारा चीन के खिलाफ बिगुल बजाने के बाद कई देशों ने भारत के सुर में सुर मिलाया

चीन का हाल भी कमोबेश ऐसा ही है। वह एलएसी पर हरकतें करने के साथ ही जापान, ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और तमाम अन्य देशों के सामुद्रिक एवं संप्रभु अधिकारों को चुनौती दे रहा है। फिलहाल 23 देशों के साथ उसका विवाद चल रहा है। उसने हांगकांग और ताइवान के साथ भी वादाखिलाफी की है। यह सब दुनिया को 80 साल पहले के निरंकुश नाजी दौर की याद दिला रहा है। इस पर अंकुश लगाना होगा। हाल में भारत द्वारा चीन के खिलाफ बिगुल बजाने के बाद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, फ्रांस और आसियान के तमाम सदस्य देशों ने भी चीन को आड़े हाथों लेकर भारत के सुर में सुर मिलाया है।

मोदी के दो कड़े संदेश के बाद चीन ने कहा- यह सीमा पर तनाव बढ़ाने का समय नहीं है

प्रधानमंत्री ने लद्दाख से दो महत्वपूर्ण संदेश दिए। एक शक्ति और शांति के संदर्भ में और दूसरा एलएसी पर बुनियादी संरचना के निर्माण के सिलसिले को तेज करने को लेकर। इस मिथ्या धारणा की हमेशा के लिए हवा निकालनी होगी कि चीन शालीनता और सौहार्द से काम करेगा। मोदी के बयान पर चीनी प्रतिक्रिया हास्यास्पद रही। महीनों तक मोर्चेबंदी की तैयारी के बाद चीन ने कहा कि यह सीमा पर तनाव बढ़ाने का समय नहीं है।

भारतीय सैनिकों ने गलवन में चीनी दुस्साहस को दिया मुंहतोड़ जवाब, चीन को लगा बड़ा झटका

दरअसल भारतीय सैनिकों ने गलवन में चीनी दुस्साहस का जिस तरह मुंहतोड़ जवाब दिया उससे चीन को बड़ा झटका लगा है। चीन ने आज तक चुप्पी साधी हुई है कि गलवन में उसके कितने सैनिक हताहत हुए। यह उस देश की आंतरिक शक्ति की पोल खोलता है जो दर्जनों अन्य देशों को तंग किए हुए है। प्रत्येक राष्ट्र के जीवन में एक पड़ाव आता है जब उसे लगे कि बस अब बहुत हो चुका। चीन के मामले में भारत उस बिंदु तक पहुंच गया है। उसे हकीकत से सामना करना ही होगा। सीमा पर हमारा एक नहीं, बल्कि पाकिस्तान और चीन जैसे दो दुश्मन हैं। भारतीयों को यह वास्तविकता स्वीकार करनी होगी कि आजादी के बाद से ही चीन हमें अनगिनत घाव देता आया है। जब यह समझ आ जाएगा तब बाकी काम आसान हो जाएगा। यह पंचशील और हिंदी-चीनी भाई-भाई को भुला देने का समय है। प्रधानमंत्री ने बार-बार दोहराया है कि हम पर बुरी नजर डालने वालों के साथ मेलजोल की जरूरत नहीं। वैसे भी शांति भीरुता दिखाने से नहीं, सामर्थ्य से आती है। 

[ लेखक लोकतांत्रिक विषयों के जानकार एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं ]

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