पीएम मोदी की जनसंख्या नियंत्रण पर साहसिक पहल, जनसंख्या वृद्धि देश के लिए मुख्य चुनौती

सभी सांस्कृतिक सामाजिक राजनीतिक संगठनों को जनसंख्या नियंत्रण की पहल का स्वागत करना चाहिए। यह राष्ट्रीय समृद्धि का प्रश्न है। इस पर कारगर राष्ट्रीय नीति जरूरी है।he eksnh dh

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 20 Aug 2019 01:16 AM (IST) Updated:Tue, 20 Aug 2019 01:18 AM (IST)
पीएम मोदी की जनसंख्या नियंत्रण पर साहसिक पहल, जनसंख्या वृद्धि देश के लिए मुख्य चुनौती
पीएम मोदी की जनसंख्या नियंत्रण पर साहसिक पहल, जनसंख्या वृद्धि देश के लिए मुख्य चुनौती

[ हृदयनारायण दीक्षित ]: मनुष्य जीवन स्वतंत्र निरपेक्ष नहीं है। जीवन प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित है। संसाधन सीमित हैं। उनकी सीमा है, लेकिन जनसंख्या का विस्फोट है। सो भारत में समेकित विकास के सभी उपाय अपेक्षित परिणाम नहीं दे रहे हैं। महानगरों में रोड जाम हैं, फ्लाईओवर बनते हैं। कुछ दिन बाद उन पर भी भारी भीड़। अस्पतालों की संख्या बढ़ती है, लेकिन मरीज कम नहीं होते। शिक्षा केंद्रों में बढ़ती जनसंख्या के कारण लाखों छात्र दाखिला नहीं पाते। मेडिकल कालेज बढ़ रहे हैं, लेकिन बढ़ती जनसंख्या के लिए नकाफी हैं। बढ़ती आबादी के कारण महानगर दैत्याकार फैल रहे हैं। नागरिक सुविधाएं और संसाधन अस्त-व्यस्त हो रहे हैं। गांव भी फैल रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या की गति तेज रफ्तार है। बढ़ते संसाधन भी अपर्याप्त हैं। कृषि क्षेत्र भी घटा है। जनसंख्या वृद्धि भारत की मुख्य चुनौती है।

पीएम मोदी की जनसंख्या नियंत्रण पर मार्मिक अपील

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसंख्या नियंत्रण की मार्मिक अपील की है। उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण को उचित ही देशभक्ति की संज्ञा दी है। देशभक्ति कोई साधारण कर्मकांड नहीं है। राष्ट्र के प्रति जरूरी दायित्वों का निर्वहन देशभक्ति है। जनसंख्या वृद्धि देश की चुनौती है। इसका नियंत्रण प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है, लेकिन कतिपय टिप्पणीकारों ने इस अपील को भी राजनीतिक संदेश बताया है, लेकिन सच यह नहीं है। सभी अभिभावक अपनी संतति का जीवन सुखमय चाहते हैं। प्रधानमंत्री ने इसी स्वाभाविक वृत्ति का उल्लेख किया है।

मोदी ने बच्चे के जन्म के पहले ही चिंता करने की बात कही

अभिभावक अमूमन शिशु जन्म के बाद बच्चे के भविष्य की चिंता आरंभ करते हैं। मोदी ने बच्चे के जन्म के पहले ही चिंता करने की बात कही है। जनसंख्या और उपलब्ध संसाधनों के अंतर्संबंधों का अध्ययन कई विचारकों ने किया है। ब्रिटिश अर्थशास्त्री माल्थस ने ‘प्रिंसपल ऑफ पॉपुलेशन’ में जनसंख्या वृद्धि और इसके प्रभावों की व्याख्या की थी। उनके अनुसार ‘जनसंख्या दूनी रफ्तार 1, 2, 4, 8, 16, 32 से बढ़ती है, लेकिन जीवन के संसाधन सामान्य गणित 1, 2, 3, 4, 5 की रफ्तार से बढ़ते हैं। प्रत्येक 25 वर्ष बाद जनसंख्या दोगुनी हो जाती है। ऐसे में भुखमरी और कुपोषण होंगे ही।’

जनसंख्या की समस्या

माल्थस की गणना पूरी तरह सही नहीं है, लेकिन मूलभूत चिंता सही है। जनसंख्या और संसाधनों के समन्वय पर थामस सैडलर, हरबर्ट स्पेंसर, भूमिकर सिद्धांत के जन्मदाता डेविड रिकार्डो आदि ने भी गंभीर विचार किया था। भारी जनसंख्या और कम संसाधनों का प्रभाव मनुष्य जीवन की गुणवत्ता पर भी पड़ता है। बहुधा भारी भीड़ के बीच रहने का प्रभाव मस्तिष्क पर भी पड़ता है। अपर्याप्त भूमि में भारी जनसंख्या का निवास सभ्यता और संस्कृति को भी प्रभावित करता है। प्राचीन भारत में कम जनसंख्या के लिए अधिक भूमि थी। उस समय की दार्शनिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियां बड़ी हैं। इतिहास के मध्यकाल से लेकर अंग्रेजी राज के आने तक जनसंख्या की समस्या नहीं थी। भारत में समुन्नत कृषि, उद्योग और स्वस्थ मानव संसाधन की स्थिति संतोषजनक थी। फिर जनसंख्या बढ़ी, जनसंख्या का दबाव भी बढ़ा। स्वतंत्र भारत ने ही दुनिया में सबसे पहले 1951 में जनसंख्या नियंत्रण का राजकीय अभियान चलाया था।

संतानोत्पत्ति की ‘मूल कामना’ 

भारतीय परंपरा में संतानोत्पत्ति की ‘मूल कामना’ की चर्चा भी संकोच का विषय रही है। बावजूद इसके 1975 तक जनसंख्या नियंत्रण पर खासा विमर्श चला, लेकिन आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार ने इस राष्ट्रीय अभियान को पलीता लगा दिया। तब जबरन नसबंदी का कार्यक्रम चला। अविवाहित नवयुवकों की भी नसबंदी हुई। इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। सत्तारूढ़ कांग्र्रेस का सफाया हुआ। फिर दलतंत्र जनसंख्या नियंत्रण के नाम से ही डर गया। अब मोदी ने सार्थक पहल की है। इस पर जन-जागरूकता जरूरी है। शिक्षित और जागरूक परिवार जनसंख्या नियंत्रण के पक्ष में हैं।

समृद्ध परिवारों की प्रजनन दर कम

समृद्ध परिवारों की प्रजनन दर गरीब परिवारों की प्रजनन दर से कम है। जनसामान्य में जागरूकता पैदा करना श्रमसाध्य है। चीन इसमें सफल हुआ है, पर चीन और भारत की जनभावना में आधारभूत अंतर है। चीन की आम जनता शासन प्रायोजित कार्यक्रमों को सहज रूप में स्वीकार करती है, लेकिन भारत की जनता पहले ऐसे कार्यक्रमों का विवेचन करती है। यहां जनहितकारी कार्यक्रमों की भी आलोचना होती है। भारतीय जनतंत्र निराला है। प्रधानमंत्री ने सरल ढंग से इस विषय का महत्व रखा है। यहां कोई बाध्यकारी निर्देश नहीं हैं, लेकिन ओवैसी जैसे लोग जंग के मैदान में हैं।

जनसंख्या वृद्धि के आंकड़े खतरनाक

देश की जनसंख्या 1951 में 361088400 थी जो 1961 में 439235720 हो गई। यानी 10 साल के भीतर ही सात करोड़ की वृद्धि हुई। 1951 से 2011 के बीच 60 वर्ष का अंतर है। 1951 की जनसंख्या 36 करोड़ 10 लाख थी, लेकिन 2011 में 1 अरब 21 करोड़ 1 लाख 93 हजार 422 हो गई। अर्थात 60 वर्ष के भीतर लगभग 85 करोड़ की वृद्धि इुई। अनुमान है कि 2021 तक यह लगभग 1 अरब 30 करोड़ होगी। जनसंख्या वृद्धि के ये आंकड़े खतरनाक हैं। दक्षिण भारतीय राज्यों की प्रजनन दर का संतोषजनक स्तर 1.5 है। नेशनल फेमिली सर्वे 2015-16 के अनुसार उत्तर प्रदेश की प्रजनन दर 2.74 और बिहार की 3.41 है।

देशव्यापी जन जागरण

देश की बढ़ती जनसंख्या राष्ट्रीय चिंता है। जन जागरूकता के प्रभाव सीमित हैं। मोटे तौर पर तीन उपाय ही शेष हैं। पहला उपाय है-जनसंख्या वृद्धि का हतोत्साहन। दूसरा जनसंख्या संयमी लोगों को प्रोत्साहन और तीसरा बिना जाति पंथ या मजहब देखे देश के प्रत्येक नागरिक पर जनसंख्या सीमित करने वाली विधि का अध्यारोपण। इसमें जनसंख्या संयमी परिवारों को प्रोत्साहन की नीति दोहरे लाभ देगी। तमाम परिवार प्रोत्साहन के आकर्षण में जनसंख्या नियंत्रण के राष्ट्रधर्म को समझेंगे। इससे जन जागरण भी होगा। तब जन जागरण के प्रभाव देशव्यापी होंगे।

जनसंख्या नियंत्रण की प्रोत्साहन नीति

जनसंख्या नियंत्रण की प्रोत्साहन नीति में विशेष सुविधाओं वाला ग्रीन कार्ड जारी किया जा सकता है। बिजली बिल या सार्वजनिक सेवाओं में छूट, अतिरिक्त राशन, नि:शुल्क शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं आदि सम्मिलित की जा सकती हैं। गरीबी और अशिक्षा वाले क्षेत्रों में जनसंख्या नियंत्रण के वैज्ञानिक उपाय प्राय: नहीं अपनाए जाते। दक्षिण भारत के राज्यों की प्रतिव्यक्ति आय उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में अधिक है। दक्षिण की प्रजनन दर उत्तरी राज्यों की तुलना में कम है।

जनसंख्या नियंत्रण पर राष्ट्रीय नीति जरूरी

जनसंख्या के आधार पर बजट आवंटन पर दक्षिण के राजनेता टिप्पणी करते रहे हैं। कई सुविधाओं के कारण मृत्यु दर घटी है। वृद्धों की संख्या भी बढ़ रही है। जापानी जनसंख्या की समस्या ऐसी ही है। जनसंख्या नियंत्रण के मोर्चे पर पहले ही काफी देर हो चुकी है। आपातकाल के बाद जनसंख्या नियंत्रण पर बोलने का साहस भी समाप्त हो गया था। मोदी जी ने साहसिक पहल की है। सभी सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक संगठनों को इस पहल का स्वागत करना चाहिए। यह राष्ट्रीय समृद्धि का प्रश्न है। इस पर कारगर राष्ट्रीय नीति जरूरी है।

( लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं )

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