Bengal Politics: राजनीतिक प्रतिशोध और हिंसा के दुष्चक्र से झुलसता बंगाल

बंगाल में इस स्थिति को बुरे से बदतर होने दिया गया मौन रहकर बंगाल में राजनीति से जुड़ी हत्याओं और हिंसा करने की अनुमति दे दी गई है। यदि हम इसे समाप्त करना चाहते हैं तो इससे आतंकवाद की तरह निपटना होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 12:50 PM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 12:53 PM (IST)
Bengal Politics: राजनीतिक प्रतिशोध और हिंसा के दुष्चक्र से झुलसता बंगाल
लोकतंत्र के खिलाफ तृणमूल की साजिशों को अनदेखा करना केवल और केवल पाखंड है।

राजू बिष्ट। जब मेरे नाम की घोषणा बंगाल में दार्जिलिंग लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार के रूप में की गई थी, उस समय अपने परिवार के सदस्यों और कई करीबी दोस्तों से फोन हुई बातचीत मुझे याद है। मुझे यह अजीब लगा कि फोन करने वालों ने मुझे बधाई दी और इसके तुरंत बाद मुझे आगाह भी किया, ‘हम बहुत खुश हैं, आप दार्जिलिंग से चुनाव लड़ने वाले हैं, लेकिन कृपया सावधान रहें।’ पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने सुझाव दिया, ‘आपको बंगाल में सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ अंगरक्षकों की जरूरत होगी।’ तमाम लोगों से फोन पर हुई लगभग हर बातचीत में बंगाल में राजनीतिक हिंसा की परंपरा के बारे में सावधानी बरतने की सलाह दी जा रही थी।

उत्तर पूर्व और उत्तर बंगाल के कुछ दूरदराज के गांवों सहित पूरे भारत में काम करने का मेरे पास जो अनुभव था उसके आधार पर मुझे लगा कि जो दायित्व मुझे दिया गया है, उसमें अंगरक्षकों की क्यों आवश्यकता होगी? पर मैं गलत निकला। बंगाल में तृणमूल से जुड़े लोगों के अलावा कोई भी सुरक्षित नहीं है। आम जनता सत्ताधारी पार्टी के भय के साये में रहती है, विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी जाती है। निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी सुरक्षित नहीं हैं। पिछले कुछ वर्षों में तृणमूल के गुंडों द्वारा 150 से अधिक भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की गई है, जिनमें हेमताबाद के भाजपा विधायक भी शामिल हैं। वर्ष 2017 में बंगाल पुलिस ने 11 गोरखा युवकों की गोली मारकर हत्या कर दी। शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे निहत्थे नागरिकों पर हुई गोलीबारी की इस घटना पर एक भी जांच नहीं बिठाई गई है।

सात दिसंबर, 2020 को बंगाल पुलिस ने सिलीगुड़ी में भाजपा की एक रैली में भाग लेने आए एक कार्यकर्ता को मार दिया था। पिछले 48 घंटों में 10 से अधिक भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की गई है। जिन्होंने भाजपा के लिए स्वेच्छा से काम किया, उनके घर जला दिए गए और दुकानें लूट ली गईं। आज हर कोई राज्य भर में तृणमूल से जुड़े गुंडों द्वारा फैलाई जा रही व्यापक हिंसा का साक्षी है। हालांकि कुछ ऐसे लोग भी हैं जो हिंसा के बचाव में तमाम तरह के तर्क दे रहे हैं। वे लोग यह भी कह रहे हैं कि केंद्र सरकार बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए ऐसा कर रही है। मगर सच यह है कि पूर्वास्थली उत्तर के उम्मीदवार डॉ. गोबर्धन दास के घर पर हमला होने की खबरें आई हैं। डॉ. गोबर्धन दास जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक प्रतिष्ठित आणविक विज्ञानी हैं।

कूचबिहार में हरधन रॉय और माणिक मैत्र की हत्या कर दी गई है। दासपारा और मझियाली से लेकर चोपड़ा शहर तक में तोड़फोड़ की गई और भाजपा समर्थकों के घरों को जला दिया गया। कुछ दिनों पहले यहां के एक भाजपा कार्यकर्ता रहमान पर बम और गोलियों से हमला किया गया था जिसमें रहमान, उनकी भाभी रेबेका खातून और नुरसा खातून तथा उनके दादा तमीजुद्दीन रहमान गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इसी सप्ताह तृणमूल के गुंडों ने भारतीय जनता युवा मोर्चा के सिलीगुड़ी के जिला महासचिव सौरव बसु और दो युवा कार्यकर्ताओं की हत्या का प्रयास किया। र्दािजलिंग में तृणमूल सर्मिथत गुंडों ने कई गांवों में उपद्रव मचाया। नबाग्राम में भाजपा के एक कार्यकर्ता की मां काकली खेत्रपाल की हत्या कर दी गई। अलीपुरद्वार और कूचबिहार में भाजपा के कार्यकर्ताओं पर इसी तरह के हमले हुए हैं, जहां भाजपा विधानसभा चुनाव ने ज्यादातर सीटें जीती हैं। नानूर में भाजपा के दो पोलिंग एजेंटों के साथ दुष्कर्म किया गया। इतना ही नहीं, इस क्षेत्र में उन सभी लोगों को निशाना बनाया जा रहा है जिन्होंने तृणमूल का विरोध किया।

वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद सिंगला, दार्जिलिंग में एक सभा को संबोधित करने जाते समय हमारे काफिले को रोक तृणमूल के गुंडों ने हमला किया। उसी साल फिर से घात लगाकर मुझ पर दूसरी बार जानलेवा हमला किया गया, जब मैं कलिंपोंग के सिंजी जा रहा था। लोकतंत्र में लोगों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार है और विपक्ष को भी सरकार पर नजर रखने के लिए आम जनता ही चुनती है। राज्य में हमारे 18 सांसद और 77 विधायक हैं। जिन्होंने भाजपा को वोट दिया क्या वे बंगाल का हिस्सा नहीं हैं? क्या उन सभी को हमारे महान देश के संविधान द्वारा समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं? क्या बंगाल सिर्फ तृणमूल समर्थकों का ही है?

मुख्यमंत्री की नाक के नीचे तृणमूल सर्मिथत गुंडे भाजपा को वोट देने वालों को दंडित करने पर आमादा हैं। इन घटनाओं पर चुप रहकर, तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी हिंसा के अपने कुकृत्यों को मौन समर्थन प्रदान कर रही हैं। मुझे डर है कि अगर वह जल्द ही हिंसा फैलाने वालों पर नियंत्रण नहीं करती हैं, तो वह पार्टी के इन गुंडों पर से पूरी तरह से अपनी पकड़ खो देंगी। बंगाल में जो हो रहा है वह भारत में कहीं और नहीं होता है। परिणाम घोषित होने के बाद असम में कितने विपक्षी नेताओं और समर्थकों की हत्या की गई? एक भी नहीं। बंगाल में इस स्थिति को बुरे से बदतर होने दिया गया, मौन रहकर बंगाल में राजनीति से जुड़ी हत्याओं और हिंसा करने की अनुमति दे दी गई है। यदि हम इसे समाप्त करना चाहते हैं तो इससे आतंकवाद की तरह निपटना होगा। जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे, यह सिलसिला जारी रहेगा।

[सदस्य, लोकसभा (भाजपा), दार्जिलिंग]

chat bot
आपका साथी