खूबसूरती का आधार नहीं है रंग, लोगों की काबिलियत गोरे रंग से नहीं काम से होती है तय

विज्ञापनों में गोरे रंग को ही सुंदरता का पैमाना माना जाता है। इसकी वजह से जिन लोगों का रंग काला होता है वे अपने अच्छे गुणों को पहचान पाने के बजाय हीन भावना के शिकार हो जाते हैं।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Thu, 17 Jun 2021 11:06 AM (IST) Updated:Thu, 17 Jun 2021 11:06 AM (IST)
खूबसूरती का आधार नहीं है रंग, लोगों की काबिलियत गोरे रंग से नहीं काम से होती है तय
यह सर्वविदित है कि रंगभेद बाजारवाद से गहरा प्रभावित है।

[सुनीता मिश्र] टीवी शो ‘बालिका वधू’ में आनंदी का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री अविका गौर ने हाल ही में रंगभेद को बढ़ावा देने वाली तीन फेयरनेस क्रीम का ऑफर ठुकरा दिया। इस तरह के विज्ञापन लोगों और खासकर महिलाओं को गलत संदेश देते हैं। दरअसल बाजार में काले या सांवले इंसान को गोरा बनाने का दावा करने वाली तमाम चीजें बिक रही हैं। हालांकि गोरा होने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन हमारे समाज द्वारा खूबसूरती को गोरे रंग से आंकना गलत है। ऐसे में इस तरह के विज्ञापन आग में घी डालने का काम करते हैं।

यह सर्वविदित है कि रंगभेद बाजारवाद से गहरा प्रभावित है। इसलिए विज्ञापनों में गोरे रंग को ही सुंदरता का पैमाना माना जाता है। इसकी वजह से जिन लोगों का रंग काला होता है वे अपने अच्छे गुणों को पहचान पाने के बजाय हीन भावना के शिकार हो जाते हैं। इससे कहीं न कहीं उनका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है। वे अपने आपको कोसते हैं कि उन्हें गोरा रंग क्यों नहीं मिला, ताकि समाज में सिर उठाकर जी सकें।

देश में भगवान राम से लेकर कृष्ण और शिव से लेकर माता काली सभी का श्याम वर्ण है और श्रद्धालु भी इन्हें पूरी श्रद्धा के साथ पूजते हैं। इसके बावजूद हमारे समाज में रंग को लेकर खासतौर पर महिलाओं के साथ काफी भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया जाता है। समाचार पत्रों में छपने वाले वैवाहिक विज्ञापनों, वेबसाइट्स और पंजीकृत विवाह संस्थाओं में भी लड़की के रंग के बारे में विशेष तौर पर पूछा जाता है। कई बार तो लड़की का रंग सांवला होने की वजह से लड़के पक्ष वाले उसकी प्रतिभा, डिग्री को दरकिनार कर उसे मना करने में एक मिनट भी नहीं लगाते हैं। काले रंग की वजह से कई शादीशुदा महिलाओं को प्रताड़ित भी किया जाता रहा है।

यह पूरी तरह से गलत है कि गोरा रंग हमारा आत्मविश्वास बढ़ाता है। आत्मविश्वास तो हमारे काम की नैतिकता और ज्ञान से आता है। ऐसी सोच समाज पर बुरा प्रभाव डालते हैं। सौंदर्य का रंग से कोई सरोकार नहीं होता है। यह तो हर देश की जलवायु और वहां के खान-पान पर निर्भर करता है। जैसे अफ्रीका की जलवायु के अनुसार वहां काले रंग के लोग होते हैं, वहीं ब्रिटेन और अमेरिका में गोरे रंग के लोग होते हैं। एक समाज के तौर पर हम एक ही रंग को आदर्श नहीं मान सकते हैं, इसमें बदलाव होना चाहिए। इसके अलावा जो काले और श्याम वर्ण के लोग हैं, उन्हें भी गोरा होने की कोई जरूरत नहीं है।

सबको अपने रंग पर गर्व होना चाहिए, क्योंकि काबिलियत रंग से नहीं काम से तय होती है। आज के युग में रंगभेद एक मानसिक समस्या है, जिससे मुक्ति के बिना समाज का समग्र विकास संभव नहीं है। इसके साथ ही विभिन्न उत्पादों के माध्यम से बाजार के जरिये लोगों का आर्थिक दोहन किया जा रहा है, इससे भी भारतीय समाज को बाहर आना होगा।(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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