Ayodhya Ram Temple News: अयोध्या आंदोलन, युगांत और युगारंभ

Ayodhya Ram Temple News युगारंभ के साथ ही आसुरी शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए उन पर कड़ी नजर रखने की आवश्यकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 04 Aug 2020 09:59 AM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 11:02 AM (IST)
Ayodhya Ram Temple News: अयोध्या आंदोलन, युगांत और युगारंभ
Ayodhya Ram Temple News: अयोध्या आंदोलन, युगांत और युगारंभ

हरेंद्र प्रताप। Ayodhya Ram Temple News विदेशी और वामपंथी इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को पराजय का इतिहास लिखा, शक, कुषाण, हूण, अरब, तुर्क, मुगल तथा अंग्रेजों ने जब आक्रमण किया तो देश हार गया। हार की हीन भावना से ग्रसित देश के युगांत की शुरुआत होती है अयोध्या आंदोलन से। 1989 में शिलान्यास तय किया गया-शिलान्यास हुआ, 1990 में अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता, किंतु तमाम रोक और दमन के बाद भी हजारों कार सेवक अयोध्या पहुंच गए। छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहाने का कार्यक्रम तय किया गया, जिसे अंजाम भी दिया गया।

अयोध्या आंदोलन राष्ट्रीय अस्मिता की स्वाभाविक अभिव्यक्ति थी, अत: इसे एक नए युग का आरंभ युगारंभ कहा गया। अयोध्या आंदोलन को अयोध्या में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण तक ही सीमित समझने की भूल न करें। श्रीराम के साथ रामराज जुड़ा हुआ है। रामराज की पहली शर्त है राष्ट्र की बाह्य आसुरी शक्तियों से सुरक्षा। आज विश्वपटल पर भारत की एक अलग छवि उभर रही है। देश ने एक लकीर खींच दी है। रावण को उसके घर मे ही घुसकर सर्जकिल स्ट्राइक करके मारा जाएगा।

भारत एक निर्यातक देश था। विश्व व्यापार में हमारी व्यापक हिस्सेदारी थी। व्यापार की आड़ में आए विदेशी व्यापारियों ने हमारी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त किया। विदेशी व्यापार कंपनी यानी इंगलैंड की ईस्ट इंडिया कंपनी, यह अर्ध-सत्य है। अंग्रेजों के पहले डच आए और डच के पहले पुर्तगाली। धीरे-धीरे यह देश निर्यातक के बदले आयातक बन गया। इस देश का न तो भूतकाल अच्छा था और ना ही भविष्य अच्छा होगा, निराशा की इसी मानसिकता में पला-बढ़ा यहां का युवा विदेशों में पलायन के अवसर की ताक में रहता था। हीनभाव से ग्रसित इस देश में अब आशा का संचार हुआ है।

प्राकृतिक संसाधन, जैव विविधता और प्राचीन ज्ञान हमारी विरासत हैं। कोरोना काल में आयुर्वेद, योग, प्राणायाम, घरेलू नुस्खे यथा काढ़ा आदि का महत्व भारत ही नहीं, पूरी दुनिया ने समझा। समय आ गया है कि प्रति व्यक्ति आय के साथ-साथ व्यक्ति के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि को भी विकास का मानक बनाना होगा। महामारी में अपनी जड़ों की तलाश में विदेशों से देश में तथा शहरों से गांवों में हुए पलायन ने वर्तमान आíथक संरचना के बदलने की चेतावनी दे दी है। प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत का नारा देते हुए लोकल के लिए वोकल होने का आग्रह किया है। लोकल का अर्थ समझने के लिए सब्जी विक्रेता और किराना दुकान पर जाना होगा। सब्जी विक्रेता कहता है कि यह लोकल है और यह बाहरी है। किराना दुकानदार कहता है कि यह कोल्हू का तेल है और यह बाहर से बन कर आया है।

जन्मभूमि के प्रति लगाव हमारे संस्कार में है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि के लिए गांवों से शहरों में पलायन हुआ था। जन्मभूमि के प्रति लगाव के कारण संकट काल में लोगों को गांव ही याद आया। अगर उसे अपने गांव में उपरोक्त व्यवस्थाएं नहीं मिलीं, तो वह फिर से पलायन को बाध्य होगा। समय आ गया है कि विकास के मानकों को समयानुसार बदला जाए। मानव आधारित विकास के बजाय प्रकृति आधारित विकास को प्राथमिकता दी जाए। समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए यह आवश्यक है। युगारंभ के साथ ही आसुरी शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए उन पर कड़ी नजर रखने की आवश्यकता है।

[पूर्व सदस्य, बिहार विधान परिषद]

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