हिंदुओं-सिखों को बांटने की कोशिश, ऐसे में महत्वपूर्ण हो जाती है गुरु नानक जी की शिक्षाएं

गुरु नानक जी ने जिस ‘इक ओंकार’ के बारे में जागरूकता फैलाई ऋग्वेद में उसे ‘एकम् सत विप्रा बहुधा वदंति’ कहा गया है। उन्होंने सभी संप्रदायों के साथ हिंदुओं को एकजुट किया। उनके मूल-मंत्र ने सर्वशक्तिमान को सरलतम रूपों में परिभाषित किया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 26 Feb 2021 09:33 AM (IST) Updated:Fri, 26 Feb 2021 09:33 AM (IST)
हिंदुओं-सिखों को बांटने की कोशिश, ऐसे में महत्वपूर्ण हो जाती है गुरु नानक जी की शिक्षाएं
गुरु ग्रंथ साहिब पंजाब के लिए भारत का उपहार कहा जाता है

हरिंदर सिक्का। हिंदू-सिखों को बांटने से किसे फायदा? इस प्रश्न का उत्तर आसान है, लेकिन इसे समझने की परवाह नहीं की जाती। आज जब हिंदू-सिखों के बीच दूरियां बढ़ाने की कोशिश हो रही है, तब फिर गुरु नानक जी की शिक्षाओं और हिंदू दर्शन की तुलना महत्वपूर्ण हो जाती है। दोनों ही प्रेम, विश्वास और एक ईश्वर को मूल आधार मानते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब में भारत भर के 25 कवियों द्वारा लिखी गई बाणियां हैं, जिनमें से 15 गुरु नानक जी के समय के भक्तिमार्ग के कवियों की हैं। इसीलिए गुरु ग्रंथ साहिब पंजाब के लिए भारत का उपहार कहा जाता है और ऋग्वेद को भारत को पंजाब का उपहार। दोनों में अद्वितीय समानता है।

ऋग्वेद छंद के रूप में है तो गुरु ग्रंथ साहिब रागों के रूप में। एक उस समय के ऋषियों के ज्ञान का संग्रह है तो दूसरा हाल के विचारकों का। यदि किसी को शास्त्र और वेदों का ज्ञान हो तो वह गुरु ग्रंथ साहिब को बेहतर ढंग से समझ सकता है। गुरु नानक जी ने जिस ‘इक ओंकार (ईश्वर एक है) के बारे में जागरूकता फैलाई, ऋग्वेद में उसे ‘एकम् सत विप्रा बहुधा वदंति’ कहा गया। गुरु नानक जी भक्ति मार्ग के कवि थे, जिन्होंने सरल भाषा और रागों में शिक्षित-अशिक्षित, उच्च-निम्न जाति के लोगों, सभी को साथ लाने का प्रयत्न किया। उन्होंने उपदेश दिया ‘एकस के हम बारिक’ (हम एक भगवान की संतान हैं)। उनके दर्शन में घृणा, द्वेष और भेदभाव के लिए कोई गुंजाइश नहीं।

सभी सिख गुरु हिंदू परिवारों में पैदा हुए और गुरु नानक जी के दिखाए रास्ते पर चले। इस प्रक्रिया में उन्होंने अपना और अपने परिवार का बलिदान दिया, लेकिन सच्चाई और आस्था के मार्ग से नहीं हटे। नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर को हिंदू-की-चादर के नाम से भी जाना जाता है। वह तब भी अपनी आस्था से नहीं डिगे, जब औरंगजेब उनका सिर कलम कर रहा था। उनके सर्वोच्च बलिदान ने कश्मीरी पंडितों को जबरन धर्म परिवर्तन और संहार से बचाया। दसवें गुरु गुरु गो¨बद सिंह जी एक संत, विद्वान, योद्धा और कवि थे। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। उनके दर्शन को समझने के लिए ‘विचित्तर नाटक’ पढ़ना चाहिए। यह उन लोगों की आंखें खोल देगा, जो यह सोचते हैं कि हिंदू और सिख अलग-अलग हैं। उन्होंने जो ‘पंज प्यारे’ चुने और जिन्हें सिख होने का आशीर्वाद दिया, वे सभी देश के विभिन्न क्षेत्रों के हिंदू थे।

लाहौर के खत्री दुकानदार दयाराम भाई दया सिंह बने। वह 47 की उम्र में शहीद हुए। मेरठ के पास के ‘जट्ट’ किसान धरम दासिन भाई धर्म सिंह बने। उन्होंने 42 साल की उम्र में बलिदान दिया। जगन्नाथ पुरी के जलवाहक हिम्मत राय दीक्षा लेकर भाई हिम्मत सिंह बने। 1705 में शहादत के समय उनकी आयु 44 वर्ष थी। द्वारका में कपड़े की छपाई करने वाले मुखम चंद भाई मोहकम सिंह बने। वह 44 वर्ष की आयु में शहीद हुए। बीदर, कर्नाटक के नाई समुदाय के साहिब चंद भाई साहिब सिंह बने। 44 साल की उम्र में गुरु और खालसा का बचाव करते हुए उन्होंने बलिदान दिया।

सिख इतिहास को आकार देने और सिख धर्म को परिभाषित करने का काम करने वाले गुरु गोबिंद सिंह का नारा था-सवा लाख से एक लड़ाऊं। उनके विचार ‘देह शिवा बर मोहे ईहे, शुभ कर्मन ते कभुं न टरूं’ (मुङो शिव आशीर्वाद दें कि मैं अच्छे कर्म करने से कभी न डरूं) से प्रेरणा पाकर उनके शिष्य शक्तिशाली मुल्लों के खिलाफ निर्भीकता से डटे रहे। उन सभी ने अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन युद्ध के मैदान में दुश्मन को पीठ नहीं दिखाई। यह सिख और हिंदू ही थे, जिन्होंने जबरन मतांतरण के खिलाफ मिलकर लड़ाई लड़ी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने चार बेटों का बलिदान दिया, लेकिन अत्याचारी औरंगजेब का अंत सुनिश्चित किया। गुरु साहिब की शिक्षाओं का पालन करते हुए महाराजा रणजीत सिंह ने बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर में सोने का गुंबद दान किया, जो आज भी चमक रहा है। उन्होंने पुरी के जगन्नाथ मंदिर को कोहिनूर हीरा देने की इच्छा जताई।

स्पष्ट है कि उन्होंने कभी भी हिंदू-सिखों को अलग-अलग नहीं देखा। आज न जाने कैसे तथाकथित विद्वान यह दावा करते हैं कि हिंदू और सिख अलग-अलग थे। सच तो यह है कि प्रत्येक हिंदू परिवार ने एक बेटे को सिख बनाने के लिए दिया ताकि मुगल आक्रांताओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सके। दुर्भाग्यवश आज बरगलाने वाले जीत रहे हैं और हिंदू एवं सिख अपने गुरुओं के दिखाए गए मार्ग से विचलित हो रहे हैं। पंजाब में गुरुद्वारों द्वारा चलाए जा रहे स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और अन्य धर्मार्थ मिशन अपेक्षित उन्नति नहीं कर सके हैं। शिक्षकों और कर्मचारियों को वर्षो से नियमित वेतन नहीं दिया गया है, लेकिन गुरुद्वारों के पैसों का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है।

एक राजनीतिक परिवार खास तौर पर गुरुद्वारों के धन का दुरुपयोग कर रहा है। उसकी संपत्ति कई गुना बढ़ गई है। फूट डालो और राज करो, उसका परखा हुआ फार्मूला है। यह एक प्रभावी उपकरण सिद्ध हुआ है। इस पर यकीन करने वाले चुनाव जीतने के लिए बाबा राम-रहीम जैसे लोगों के सामने भी नतमस्तक होते रहे हैं। सदियों से लोगों को नए धर्मो को मानने के लिए मजबूर किया गया है, जो हर युग में उभरते हैं। अपने हितों की रक्षा के लिए कट्टरपंथियों द्वारा उन पर धाíमकता की मुहर भी लगाई जाती है। नानक जी कर्मकांड के खिलाफ थे। उन्होंने ‘माथे तिलक, हाथ में माला पाना, लोगन राम खिलौना जाना’ गाकर अपने विचार लोगों तक पहुंचाए। उन्होंने लोगों को एक किया और भगवान को सरलतम रूपों में वíणत किया। तब सिख नहीं थे। 

दुनिया में एक हजार वर्षो में जितना परिवर्तन आया है, उससे अधिक पिछले दस वर्षो में आया है। डिजिटल क्रांति के इस दौर में दुनिया तेजी से निर्णय लेने की प्रक्रिया पर जोर दे रही है, पर जल्दबाजी में लिए गए निर्णय पश्चाताप का कारण बन सकते हैं। गति, प्रगति और संतुलन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि देश की युवा पीढ़ी को कीचड़ के बीच कमल की तरह विकसित होना सिखाया जाए। उन्हें देश को विभाजित करने वाली नफरत के दूरगामी परिणामों को समझने में सक्षम बनाने के साथ यह भी बार-बार याद दिलाया जाए कि हर सकारात्मक सोच अपने आप में एक मौन प्रार्थना है।

(स्तंभकार पूर्व सैन्य अफसर, फिल्म निर्माता एवं चर्चित पुस्तक ‘कॉलिंग सहमत’ के लेखक हैं)

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