सुलह की राह पर अमेरिका-रूस: जेनेवा सम्मेलन ने अमेरिका और रूस के तनाव को समाप्त तो नहीं किया, पर रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाया अवश्य

रूस और अमेरिका के बीच के तनाव से भारत को सामरिक और आर्थिक तौर पर काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। अमेरिका और रूस के तनाव को जेनेवा शिखर सम्मेलन ने समाप्त तो नहीं किया है पर रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलने की प्रक्रिया तेज अवश्य हुई।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 04:23 AM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 04:23 AM (IST)
सुलह की राह पर अमेरिका-रूस: जेनेवा सम्मेलन ने अमेरिका और रूस के तनाव को समाप्त तो नहीं किया, पर रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाया अवश्य
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने की अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन की तारीफ

[ डॉ. सुधीर सिंह ]: बीते दिनों जेनेवा में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच तीन घंटे चली शिखर बैठक ने सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। इस बैठक में कई ऐसे निर्णय लिए गए, जिनसे यह संकेत मिला कि दोनों देश अपने मतभेद खत्म करने को तैयार हैं। अब दोनों देश एक-दूसरे के राजनयिकों को अपनी-अपनी राजधानियों में लौटने देंगे। उक्त बैठक में दोनों राष्ट्रपतियों के बीच यूक्रेन के नाटो में लौटने पर सार्थक चर्चा हुई। साइबर हमले पर संयुक्त प्रयास की सहमति बनी। इसके साथ ही परमाणु स्थिरता को लेकर चर्चा जारी रखने पर भी सहमति बनी। वहीं मानवाधिकार सहित कई मामलों पर असहमति भी रही। रूसी विपक्षी नेता एलेक्स नवेलनी के बारे में चर्चा तो हुई, लेकिन दोनों के बीच इस पर मतैक्य नहीं रहा।

रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने की अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन की तारीफ

अपनी प्रेस कांफ्रेंस की शुरुआत करते हुए राष्ट्रपति पुतिन ने अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन की तारीफ की। उन्हें एक अनुभवी राजनेता बताया और कहा कि बाइडन डोनाल्ड ट्रंप से काफी अलग हैं। उन्होंने कहा कि बातचीत बेहद रचनात्मक रही और उन्हें नहीं लगता कि इसमें कहीं कोई शत्रुता की भावना थी। राष्ट्रपति बाइडन ने भी अपनी प्रेस वार्ता में कहा कि बैठक रचनात्मक रही। उनके मुताबिक वह आशान्वित हैं कि रूस-अमेरिका संबंध वापस पटरी पर लौटेंगे। हालांकि दोनों विश्व नेताओं ने न ही भोज सत्र में हिस्सा लिया और न ही संयुक्त प्रेस वार्ता की। इससे दोनों वैश्विक शक्तियों के बीच चल रहे तनाव का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

शिखर बैठक में तनाव के बावजूद बाइडन और पुतिन में काफी सकारात्मकता थी

शिखर बैठक में तनाव के बावजूद दोनों नेताओं में काफी सकारात्मकता थी। यह सच है कि रूस और अमेरिका के बीच पिछले एक दशक से काफी तनाव चल रहा है, लेकिन इस बैठक ने इस तनाव को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है। अमेरिका अभी भी वैश्विक महाशक्ति है और रूस भी अपनी कमजोर आर्थिक शक्ति के बावजूद सामरिक तौर पर एक महत्वपूर्ण वैश्विक शक्ति है। पिछले एक दशक से अमेरिका-रूस तनाव ने वैश्विक राजनीति को काफी प्रभावित किया है। इसका परोक्ष फायदा चीन को मिला है। पश्चिम की ओर से चौतरफा हमले से घिर चुके पुतिन ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए ही चीन से हाथ मिलाया है। हालांकि पुतिन को पता है कि रूस और चीन के बीच दीर्घकालीन दोस्ती संभव नहीं है। रूसी सामरिक विशेषज्ञ रूसी प्रशासन को चेतावनी दे चुके हैं कि सुदूर पूर्व रूस के साइबेरिया क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी नीति अभी भी जारी है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में एक करोड़ से कम जनसंख्या है, जबकि इससे लगते चीनी क्षेत्रों में 15 करोड़ से अधिक जनसंख्या है। इस क्षेत्र को लेकर चीन का ऐतिहासिक दावा रहा है। हालांकि वर्ष 2005 में चीन ने रूस के साथ इस क्षेत्र में सीमा समझौता कर लिया था।

राष्ट्रपति पुतिन रूस की विशाल भौगोलिक एकता को अक्षुण्ण रखने में सफल

राष्ट्रपति पुतिन पिछले दो दशकों से अपने विभिन्न रूपों में रूस पर शासन कर रहे हैं। तमाम आंतरिक और बाहरी विरोधों के बाद भी उनका शासन इसलिए चल रहा है, क्योंकि वह रूस की विशाल भौगोलिक एकता को अक्षुण्ण रखने में सफल रहे हैं। वह चीन के संभावित विस्तारवाद से साइबेरिया के विशाल भू-भाग पर उभर रहे खतरे को महसूस कर रहे हैं। रूस चीन के अधीनस्थ नहीं रह सकता, जैसा कि परिदृश्य तेजी से उभर रहा है।

वैश्विक राजनीति में पुतिन रूस की नंबर दो की स्थिति को बनाए रखना चाहते हैं

वैश्विक राजनीति में पुतिन रूस की नंबर दो की स्थिति को बनाए रखना चाहते हैं। वह ऐसा मानते हैं कि रूस की भौगोलिक एकता को बनाए रखने और वैश्विक राजनीति में अपनी भूमिका को निभाने के लिए रूस को वैश्विक राजनीति में नंबर दो पर होना ही चाहिए। जेनेवा शिखर सम्मेलन रूस को इस स्थिति की ओर लौटाने का एक कदम है। पिछले कई वर्षों में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन का दबदबा बढ़ा है और रूस चीन के अधीनस्थ की भूमिका में दिखने लगा है। ऐसा न तो रूस के हित में है और न ही अमेरिका के हित में है।

चीन का आर्थिक और सामरिक तौर पर उभरना अमेरिका के लिए खतरा

चीन का लगातार आर्थिक और सामरिक तौर पर उभरना अमेरिका के वैश्विक शक्ति के स्वरूप के लिए खतरा है, जिसे अमेरिका बखूबी समझता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसी पृष्ठभूमि से रूस की नब्ज टटोलने के लिए जेनेवा शिखर सम्मेलन किया। जहां बाइडन चाहेंगे कि रूस से संबंध सुधार कर वह अपना सारा ध्यान चीन से निपटने पर लगाएं वहीं चीन किसी भी तरह नहीं चाहेगा कि रूस और अमेरिका का वर्तमान गतिरोध समाप्त हो। ज्ञात हो कि एशिया-प्रशांत नीति ओबामा प्रशासन के साथ ही प्रारंभ हुई थी, जिसमें बाइडन उप राष्ट्रपति थे। अब इस नीति को बाइडन प्रशासन ने मजबूत करने का संकल्प लिया है। क्वाड के संकल्प को मार्च 2021 में वर्चुअल शिखर सम्मेलन कर राष्ट्रपति बाइडन ने गंभीरता से आगे बढ़ाया है। अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया इसके सदस्य हैं। इसकी सदस्यता का विस्तार भी प्रस्तावित है।

भारत के लिए जेनेवा शिखर सम्मेलन काफी सकारात्मक

भारत के लिए जेनेवा शिखर सम्मेलन काफी सकारात्मक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफल कूटनीति के कारण आज अमेरिका और रूस दोनों भारत के करीबी मित्र हैं। रूस और अमेरिका के बीच के तनाव से भारत को सामरिक और आर्थिक तौर पर काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। अमेरिका और रूस के तनाव को जेनेवा शिखर सम्मेलन ने समाप्त तो नहीं किया है, पर रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलने की प्रक्रिया को तेज अवश्य किया है। जाहिर है कि इससे चीन पर रूस की बढ़ती निर्भरता तेजी से कम होगी। रूस के भारत के साथ संबंधों में और मधुरता आएगी और चीन की वैश्विक राजनीति में बढ़ती धमक पर भी लगाम लगेगी। जेनेवा शिखर सम्मेलन विश्व-शांति के साथ-साथ भारत के लिए भी अच्छी खबर लेकर आया है। इससे भारत के समक्ष वह दुविधा की स्थिति दूर होगी, जो अक्सर दोनों देशों को लेकर उत्पन्न हो जाती है।

( लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं )

chat bot
आपका साथी