संभावनाओं भरी सर्वदलीय बैठक: यदि गुपकार गठबंधन सकारात्मक रुख का परिचय नहीं देते तो खुद को करेंगे अप्रासंगिक

इस बैठक से पाकिस्तान द्वारा किए जाने वाले दुष्प्रचार को कुंद करके अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी एक सकारात्मक और सार्थक संदेश भी दिया जा सकेगा। अगर गुपकार गठजोड़ बैठक में सकारात्मक रुख का परिचय नहीं देंगे तो अप्रासंगिक हो जाएंगे

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 04:24 AM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 08:26 AM (IST)
संभावनाओं भरी सर्वदलीय बैठक: यदि गुपकार गठबंधन सकारात्मक रुख का परिचय नहीं देते तो खुद को करेंगे अप्रासंगिक
सर्वदलीय बैठक में विस चुनाव कराने, पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली पर चर्चा होने की संभावना

[ रसाल सिंह ]: जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आज होने वाली बैठक का एजेंडा राज्य के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य पर व्यापक चर्चा बताया जा रहा है, लेकिन इस बैठक में जम्मू-कश्मीर के भविष्य को लेकर भी विचार-विमर्श संभव है। यह बैठक जम्मू-कश्मीर में विकास योजनाओं के कार्यान्वयन, राजनीतिक-प्रक्रिया शुरू करने और उसके पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली में मील का पत्थर साबित हो सकती है। इसके लिए परिसीमन प्रक्रिया को पूर्ण करने के अलावा यथाशीघ्र विधानसभा चुनाव कराने पर भी बातचीत संभव है। फरवरी 2020 में केंद्र सरकार ने जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग का गठन किया था, लेकिन गुपकार गठजोड़ के नेता इस प्रक्रिया में भागीदारी नहीं कर रहे थे। हाल में नेशनल कांफ्रेंस ने अपने रुख में बदलाव करते हुए परिसीमन प्रक्रिया में भागीदारी का निर्णय लिया। उम्मीद है कि इस बैठक के बाद अन्य दल भी इस प्रकिया में शामिल होकर इसे सर्वस्वीकृत एवं औचित्यपूर्ण बनाने में सहयोग करेंगे। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में कुल 111 सीटें थीं, जिनमें से 87 सीटें जम्मू-कश्मीर प्रदेश (जम्मू-37, कश्मीर-46, लदाख-4) के लिए और 24 सीटें गुलाम कश्मीर के लिए थीं। नए परिसीमन के बाद लद्दाख की 4 सीटें कम होने और जम्मू क्षेत्र की 7 सीटें बढ़ने के बाद केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 90 सीटें हो जाएंगी। इससे लंबे समय से भेदभाव के शिकार रहे जम्मू क्षेत्र के साथ न्याय होगा और अभी तक कश्मीर केंद्रित रही राज्य की राजनीति कुछ हद तक संतुलित हो जाएगी।

सर्वदलीय बैठक में विस चुनाव कराने, पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली पर चर्चा होने की संभावना

उल्लेखनीय है कि पंडित प्रेमनाथ डोगरा और प्रजा परिषद ने जम्मू क्षेत्र की उपेक्षा और भेदभाव का विरोध करते हुए उसके साथ बराबरी और न्याय सुनिश्चित करने के लिए लंबा संघर्ष किया था। संभवत: परिसीमन आयोग उनके संघर्ष को निष्फल नहीं जाने देगा। सर्वदलीय बैठक में विधानसभा चुनाव कराने के साथ ही उसके पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली पर भी चर्चा होने की संभावना है। पिछले दिनों मीडिया और इंटरनेट मीडिया में जम्मू-कश्मीर के विभाजन की खबरें दिखाई दीं। इन खबरों में जम्मू को एक पृथक पूर्ण राज्य और कश्मीर को एक या दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने की बात की गई थी, लेकिन इन खबरों में कोई दम नहीं दिखता। पाकिस्तान जब भी कश्मीर समस्या के अंतरराष्ट्रीयकरण की कोशिश करता है, उसमें जम्मू क्षेत्र बहुत बड़ी रुकावट बनता है। इसी प्रकार उसके द्वारा छेड़े जाने वाले जनमत संग्रह के शिगूफे की काट भी जम्मू क्षेत्र ही है। आतंकवाद और अलगाववाद का भी जम्मू क्षेत्र ही प्रतिकार करता है। इसलिए जम्मू-कश्मीर के विभाजन का विचार ख्याली पुलाव से अधिक नहीं है। 5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार द्वारा लिए गए ऐतिहासिक निर्णय के बाद 31 अक्टूबर, 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक द्वारा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, दो केंद्रशासित प्रदेश बना दिए गए। इस महत्वपूर्ण संवैधानिक परिवर्तन के बाद कश्मीर केंद्रित छह दलों ने केंद्र के इस निर्णय के विरोध में पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन का गठन किया था। इस अवसरवादी गठजोड़ को राजनीतिक गलियारों में गुपकार गैंग की संज्ञा दी गई।

शांति और विकास ही जम्मू-कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय का आधार

आतंकवाद की समाप्ति, लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली, तमाम विकास योजनाओं के जमीनी कार्यान्वयन द्वारा जनता का विश्वास जीतकर ही जम्मू-कश्मीर में शांति, विकास और बदलाव सुनिश्चित किया जा सकता है। यह शांति और विकास ही जम्मू-कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय का आधार है। इसी से कश्मीर घाटी के विस्थापित हिंदुओं की घर वापसी का रास्ता भी खुलेगा। यथाशीघ्र ऐसा करके ही पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के हिस्से यानी गुलाम कश्मीर-पीओजेके की प्राप्ति की ओर भी ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। सर्वदलीय बैठक में एक राज्यसभा सदस्य पीओजेके से नामित करने के प्रस्ताव पर भी चर्चा करनी चाहिए। इससे पीओजेके पर भारत का दावा और मजबूत होगा।

28 वर्ष से लंबित 73वां संविधान संशोधन जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह लागू

जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली का काम पिछले साल के अंत में जिला विकास परिषद चुनावों के सफल और शांतिपूर्ण आयोजन के साथ ही शुरू हो गया था। केंद्र सरकार ने पिछले साल पंचायती राज से संबंधित 73वें संविधान संशोधन को जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह लागू कर दिया था, जो यहां 28 वर्ष से लंबित था। पहले गुपकार गठजोड़ इस चुनाव का बहिष्कार करना चाहता था, लेकिन जनता का मन और माहौल देखकर उसने गठबंधन बनाकर यह चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा के सबसे बड़े दल के रूप में उभार ने उसे जोरदार झटका दिया। इसके नेता अपने विभाजनकारी और स्वायतत्तावादी एजेंडे को जनसमर्थन न मिलने से निराश और हताश हैं। ये नेता अपने अस्तित्व-संकट से जूझ रहे हैं। पीडीपी जैसे दलों में टूट-फूट जारी है। घाटी में आतंकवाद और अलगाववाद वेंटिलेटर पर हैं।

अगर गुपकार गठजोड़ बैठक में सकारात्मक रुख का परिचय नहीं देंगे तो अप्रासंगिक हो जाएंगे

इस पृष्ठभूमि में उनके पास इस बैठक में शामिल होने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। अगर वे बैठक में शामिल होकर सकारात्मक रुख का परिचय नहीं देंगे तो अप्रासंगिक हो जाएंगे। वैसे भी जिला विकास परिषद चुनाव के बाद नेताओं की नई पौध तैयार हो गई है। पिछले दिनों केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की नई अधिवास नीति, मीडिया नीति, भूमि स्वामित्व नीति, भाषा नीति और औद्योगिक नीति में बदलाव करते हुए शेष भारत से उसकी दूरी और अलगाव को खत्म किया गया है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दल महत्वपूर्ण हिस्से होते हैं। जम्मू-कश्मीर के प्रमुख राजनीतिक दलों को बातचीत के लिए आमंत्रित करके केंद्र सरकार ने लोकतांत्रिक व्यवस्था और प्रक्रियाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का परिचय दिया है। इस बैठक से पाकिस्तान द्वारा किए जाने वाले दुष्प्रचार को कुंद करके अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी एक सकारात्मक और सार्थक संदेश भी दिया जा सकेगा।

( लेखक जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं )

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