Agriculture Reforms Bill 2020: यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से मिले किसान को भाया कानून

सीएम योगी ने पत्रकारों के लिए दो बड़ी और बहुप्रतीक्षित घोषणाएं कीं। उन्हें पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर दिया और यह घोषणा भी की कि कोरोना से मृत्यु होने पर पत्रकार के परिवार को दस लाख रुपये सहायता दी जाएगी। कलम के सिपाहियों को ये बड़ी राहत है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 28 Sep 2020 11:41 AM (IST) Updated:Mon, 28 Sep 2020 11:42 AM (IST)
Agriculture Reforms Bill 2020: यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से मिले किसान को भाया कानून
लखनऊ में सीएम योगी से उनके सरकारी आवास पर बाराबंकी के कृषक रामसरन ने भेंट की। फोटो सौजन्य: सूचना विभाग

लखनऊ, आशुतोष शुक्ल। बाराबंकी के एक किसान हैं रामसरन वर्मा। प्रगतिशील हैं और पद्मश्री भी। पिछले वर्ष उन्होंने केले और टमाटर पर लगभग तीन लाख रुपये का तो केवल मंडी शुल्क दिया था। अब खुश हैं कि इस बार उनकी यह रकम बच जाएगी। जिन किसान विधेयकों (जो अब कानून बन चुके हैं) पर विपक्षी उबल रहे हैं और जिनके विरोध में शुक्रवार को देश भर में प्रदर्शन किए गए, रामसरन वर्मा उनके समर्थन में हैं। कहते हैं, अब तो किसान के सामने सारा देश है। मंडी की बंदिशों से वह मुक्त है और जहां चाहे अपनी उपज बेच सकता है। बुधवार को वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने गए तो अपनी ये भावनाएं भी उनसे साझा कर आए।

रामसरन वर्मा जैसे किसानों की राय इस मामले में विपक्षियों से अलग है। उनको जानने वाले जानते हैं कि वह विशुद्ध किसान हैं और अपने परिश्रम व नवोन्मेषी प्रवृत्ति से आगे बढ़े। यूं तो मुख्यमंत्री योगी से उनकी सामान्य शिष्टाचार भेंट थी लेकिन, जब खेती किसानी की बातें चल निकलीं तो योगी ने भी उन्हें बिठा लिया। एक मुख्यमंत्री और एक किसान का यह संवाद रोचक था। रामसरन वर्मा ने खुलकर कृषि कानूनों का समर्थन किया। बोले, मंडी खत्म तो की नहीं गई हैं, फिर बवेला किस बात का मचा है। खेती को लाभ का उपक्रम बनाकर दिखाने वाले रामसरन जैसे किसानों की यह बेबाक राय विरोधी दलों को भी ध्यान से देखनी चाहिए। बहुत दिन नहीं बीते जब योगी ने दंगाइयों के नाम और फोटो के पोस्टर बनवाकर सड़कों पर लगवा दिए थे।

बात अदालत और शास्त्रार्थ तक गई लेकिन, लखनऊ के प्रमुख चौराहों पर काफी दिनों तक वे पोस्टर लगे रहे। गुरुवार को फिर वैसा ही कुछ हुआ जब मुख्यमंत्री ने महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने वालों के पोस्टर सार्वजनिक स्थलों पर लगाने के आदेश दे दिए। इसी निमित्त राज्य सरकार जल्द ही आपरेशन दुराचारी भी आरंभ करने वाली है। जिस दिन पहला पोस्टर लगेगा तो वह शायद अपनी तरह का देश में ऐसा पहला उदाहरण होगा। तय है कि ये अभियान और पोस्टर देशव्यापी बहस का नया दौर शुरू करेंगे।

कानून के रखवालों पर सवाल : महोबा क्रशर कारोबारी इंद्रकांत त्रिपाठी की हत्या में एक पुलिस अधीक्षक का नाम आना कानून के रखवालों पर सवाल तो है ही लेकिन, उससे भी घातक है एसपी को दोषमुक्त घोषित करने के लिए पुलिस की शुक्रवार रात दस बजे बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस। अपर पुलिस महानिदेशक प्रेम प्रकाश ने दो तरह की बातें कीं। उन्होंने यह तो कहा कि व्यापारी को उसकी ही पिस्टल से गोली लगी थी, परंतु यह नहीं कहा कि व्यापारी ने खुद को गोली मारी है। एसपी मणिलाल पाटीदार निलंबित किए जा चुके हैं, उन पर दर्ज हत्या का मुकदमा अब आत्महत्या के लिए उकसाने की धाराओं में लिखने की तैयारी है लेकिन, उन्हेंं आज तक तलाशा नहीं जा सका है। एक व्यापारी की हत्या की आंच महोबा से बाहर निकलकर लखनऊ के राजनीतिक गलियारों तक आ पहुंची है।

समय होत बलवान : अब्दुल्ला आजम की बात किए बिना यह चर्चा अधूरी रह जाएगी। मनुज बली नहीं होत है, समय होत बलवान...। महज चार वर्ष पहले जिन आजम खां की तूती बोलती थी, जो अफसरों को सार्वजनिक मंचों पर अच्छी बुरी सुना देते थे, जिनके नाम से नवाबों का रामपुर जाना जाने लगा था, उन्हीं के विधायक बेटे अब्दुल्ला को छह वर्ष के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। गुरुवार को विधानसभा सचिवालय ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अब्दुल्ला को भ्रष्टाचरण का दोषी बताया और लोक प्रतिनिधत्व अधिनियम 1951 की धारा आठ-क के तहत चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध की सिफारिश कर दी। उन पर अपनी जन्मतिथि गलत बताने का आरोप है। उन्हें हाईकोर्ट ने दोषी माना था। राष्ट्रपति की अनुमति अब औपचारिकता मात्र है। यह मामला समर्थ लोगों द्वारा कानून की अवहेलना का उदाहरण है। सरकार सपा की रही होती तो अब्दुल्ला को उपलब्ध राजनीतिक कवच उन्हें सुरक्षित रखता।

पत्रकारों को स्वास्थ्य बीमा : शुक्रवार को ही मुख्यमंत्री ने पत्रकारों के लिए दो बड़ी और बहुप्रतीक्षित घोषणाएं कीं। उन्हें पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर दिया और यह घोषणा भी की कि कोरोना से मृत्यु होने पर पत्रकार के परिवार को दस लाख रुपये सहायता दी जाएगी। कलम के सिपाहियों को ये बड़ी राहत है।

[संपादक, उत्तर प्रदेश]

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