Agriculture Reforms Bill 2020: अन्नदाता को मिलेगी बिचौलियों से मुक्ति

Agriculture Reforms Bill 2020 यह विधेयक किसान को बाजार के उतार-चढ़ाव की असुरक्षा और अस्थिरता के प्रति कवच प्रदान करेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 21 Sep 2020 10:10 AM (IST) Updated:Mon, 21 Sep 2020 10:10 AM (IST)
Agriculture Reforms Bill 2020: अन्नदाता को मिलेगी बिचौलियों से मुक्ति
Agriculture Reforms Bill 2020: अन्नदाता को मिलेगी बिचौलियों से मुक्ति

प्रो. रसाल सिंह। Agriculture Reforms Bill 2020 कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सुविधाकरण) विधेयक, कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं हेतु अनुबंध विधेयक और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक नामक तीनों विधेयकों का जन्म पांच जून 2020 को अधिनियमों के रूप में हुआ था। तब से लेकर पिछले सप्ताह संसद में लाए जाने तक किसी भी राजनीतिक दल व किसान संगठन द्वारा कोई विरोध नहीं जताया गया। तमाम विपक्षी दलों की सरकारों से लेकर पंजाब की कांग्रेस सरकार और एनडीए में शामिल अकाली दल (बादल) और जननायक जनता पार्टी जैसे सहयोगी दलों तक इसके पक्ष में थे।

निहित स्वार्थ-प्रेरित आढ़तिया लॉबी द्वारा भड़काए गए किसानों के सड़क पर उतर आने के बाद अब कुछ राजनीतिक दलों में इन विधेयकों का विरोध करते हुए किसान हितैषी दिखने की होड़ मच गई है। अकेले पंजाब में 28 हजार आढ़तिया हैं। उनकी पहुंच और प्रभाव न केवल किसानों तक सीमित है, बल्कि राजनीतिक दलों में भी उनकी अच्छी पैठ है। यह आढ़तिया लॉबी द्वारा प्रायोजित और वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित विरोध है।

वास्तव में, इन तीनों विधेयकों की पूरी जानकारी किसानों तक नहीं पहुंच पाई। यह सरकार की विफलता ही मानी जाएगी कि किसानों की कल्याण-कामना से प्रेरित होकर इतने महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव वाले बदलाव करते हुए भी केंद्र सरकार वास्तविक लाभाíथयों तक समय रहते सही जानकारी नहीं पहुंचा सकी। इसीलिए विपक्ष द्वारा झूठ और भ्रम के प्रसार की गुंजाइश बनी। वास्तव में, ये विधेयक कृषि-उपज की विक्रय-व्यवस्था को व्यापारियों/ आढ़तियों से मुक्त कराने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। साथ ही, बाजार के उतार-चढ़ावों से भी किसानों को सुरक्षा-कवच प्रदान करेंगे।

इन विधेयकों में सबसे ज्यादा विरोध कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सुविधाकरण) विधेयक को लेकर किया जा रहा है। इस विधेयक के संबंध में सबसे बड़ी अफवाह यह फैलाई जा रही है कि यह किसान की उपज के लिए सरकार द्वारा साल-दर-साल घोषित होने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था और सरकारी खरीद-व्यवस्था की समाप्ति करने वाला है। जबकि इस विधेयक के माध्यम से केंद्र सरकार किसानों को बिचौलियों के चंगुल से मुक्त कराना चाहती है। ये आढ़तिया कमीशन एजेंट होते हैं। मंडी में अपने एकाधिकार का फायदा उठाकर ये कृषि उपज की बिक्री पर मोटा कमीशन खाते हैं। यह विधेयक इन बिचौलियों के शिकंजे से अन्नदाता की मुक्ति का मार्ग है।

यह विधेयक किसानों को उनकी फसल का न्यायसंगत मूल्य दिलाएगा। इससे मंडियों में व्याप्त लाइसेंस-परमिट राज समाप्त होगा और वहां व्याप्त भ्रष्टाचार से भी किसान को निजात मिलेगी। अब किसान अपनी उपज को कहीं भी, किसी को भी अच्छे दाम पर बेचने के लिए स्वतंत्र होंगे। खुले बाजार में अच्छा मूल्य न मिलने की स्थिति में वे अपनी उपज को पहले की तरह कृषि उपज विपणन समिति में बेचने के लिए भी स्वतंत्र होंगे।

कुछ राज्य सरकारें परेशान होकर इन विधेयकों का विरोध कर रही हैं, क्योंकि इससे उन्हें राजस्व की हानि होगी। दरअसल, किसान जब अपनी उपज बेचने राज्य सरकार द्वारा अधिकृत कृषि उपज विपणन समिति में जाता है, तो उसकी उपज की बिक्री में से न केवल आढ़तिया कमीशन खाता है, बल्कि राज्य सरकारें भी कमीशन खाती हैं। यह उनकी कमाई का बड़ा जरिया है।

उदाहरणस्वरूप, पंजाब जैसे कृषक प्रधान राज्य में किसान से उसके उपज-मूल्य का लगभग 8.5 प्रतिशत कमीशन वसूला जाता है, जिसमें से तीन प्रतिशत बाजार शुल्क, तीन प्रतिशत ग्रामीण विकास शुल्क और 2.5 प्रतिशत आढ़तिया विकास शुल्क होता है। नई व्यवस्था लागू होने से इस 8.5 प्रतिशत कमीशन की सीधी बचत किसान को होगी। इसके अलावा उपज की मंडी तक ढुलाई में होने वाले खर्च की भी बचत होगी। सोचने की बात यह है कि जब राज्य सरकारों को होने वाली तथाकथित राजस्व की हानि अंतत: उत्पादक किसान के हाथ में जा रही है, तो फिर किसान हितैषी होने का स्वांग भरने वाली सरकारों द्वारा इस विधेयक का विरोध क्यों किया जा रहा है?

जो लोग किसानी पृष्ठभूमि से हैं, वे जानते हैं कि भारत में फसल विशेष का अधिक उत्पादन होने की स्थिति में किसानों को लागत से भी बहुत कम कीमत पर बेचना पड़ता है, या कभी-कभी तो फेंकना भी पड़ता है। इसकी बड़ी वजह उत्पादन और खपत का संतुलन न होना है। किसान के लिए खासकर छोटे किसान के लिए उत्पादन और खपत, आपूíत और मांग का आकलन और अनुमान मुश्किल काम है, किंतु जब इस काम में पेशेवर लोग आएंगे तो ऐसा हो सकेगा। कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं हेतु अनुबंध विधेयक इसी चिंता से प्रेरित है। इसके माध्यम से किसान बाजार के गुणा-गणित से पैदा होने वाली असुरक्षा और अस्थिरता से मुक्ति पा सकेगा। फसल विशेष के ज्यादा उत्पादन की स्थिति में भी अपनी उपज को नगण्य मूल्य पर बेचने या फेंकने की विवशता से वह बच सकेगा।

यह विधेयक किसान को बाजार के उतार-चढ़ाव की असुरक्षा और अस्थिरता के प्रति कवच प्रदान करेगा। इसमें प्रावधान है कि व्यापारी, निर्यातक या खाद्य-प्रसंस्करणकर्ता फसल की बोआई के समय ही फसल का मूल्य निर्धारण करके किसान के साथ अनुबंध करेगा। कॉन्ट्रैक्ट फाìमग कृषि क्षेत्र की ओर युवा उद्यमियों व निजी निवेश को आकर्षति करेगी। अनुबंध के समय किसान को जोताई, बोआई, सिंचाई, नई तकनीक और उन्नत बीज आदि जरूरतों के लिए अग्रिम राशि भी मिल सकेगी। इस विधेयक में इस तरह का अनुबंध न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर न करने का प्रावधान भी किया जाना चाहिए था।

विपक्ष के भ्रामक प्रचार की पृष्ठभूमि में सरकार को किसानों के साथ संवाद करके उन्हें संसद के दोनों सदनों से पारित कृषि विधेयकों के फायदे बताते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी खरीद व्यवस्था के यथावत जारी रहने, पुरानी विक्रय-व्यवस्था के समानांतर उन्हें एक अधिक सुविधाजनक, किसान हितैषी और बिचौलिया मुक्त नई व्यवस्था का विकल्प मुहैया कराने और बाजार के उतार-चढ़ाव से किसानों को आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करने के अपने उद्देश्य के प्रति आश्वस्त करना चाहिए।

[अधिष्ठाता, छात्र कल्याण, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय]

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