गोतबाया की जीत के बाद एक सवाल बना रहेगा कि श्रीलंका की असल बादशाहत किसके पास है?

गोतबाया का शासन चीन से साभार आर्थिक नक्शे के अनुरूप काम करेगा? इस प्रश्न का उत्तर कुछ महीनों में मिलना आरंभ हो जाएगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 23 Nov 2019 02:45 PM (IST) Updated:Sat, 23 Nov 2019 02:47 PM (IST)
गोतबाया की जीत के बाद एक सवाल बना रहेगा कि श्रीलंका की असल बादशाहत किसके पास है?
गोतबाया की जीत के बाद एक सवाल बना रहेगा कि श्रीलंका की असल बादशाहत किसके पास है?

पुष्परंजन। श्रीलंका एक बार फिर से वंशवाद की राजनीति का जश्न मना रहा है। गोतबाया राजपक्षे परिवारवादी राजनीति के प्रतीक बनकर उभरे हैं। श्रीलंका में संविधान के 19वें संशोधन ने राष्ट्रपति को बिना दांत का कर दिया था। अब इसे वो दुरुस्त करेंगे। पिछले वर्ष नौ नवंबर को तत्कालीन राष्ट्रपति सिरिसेना ने संसद भंग करने और पांच जनवरी को चुनाव कराने का जो आदेश दिया था, उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

सर्वोच्च अदालत ने तत्कालीन राष्ट्रपति सिरिसेना को 19वें संशोधन की याद दिलाते हुए कहा कि आप ऐसा नहीं कर सकते थे, क्योंकि 28 अप्रैल 2015 को संसद में पारित इस संविधान संशोधन के जरिये राष्ट्रपति के असीमित अधिकार छीन लिए गए थे।

राष्ट्रपति पद पर गोतबाया की जीत के बाद एक सवाल बना रहेगा कि श्रीलंका की असल बादशाहत किसके पास है? यह स्पष्ट है कि महिंदा राजपक्षे की लकीर गोतबाया के मुकाबले बड़ी रही है। लेफ्टिनेंट कर्नल गोतबाया राजपक्षे, लिट्टे के सफाये के समय देश के प्रतिरक्षा मंत्री थे। प्रभाकरन को मार गिराने का श्रेय भी गोतबाया ने ही लिया था। इस पूरे चुनाव में तमिल और मुसलमान वोटर शक के घेरे में थे कि ये लोग गोतबाया को वोट नहीं देंगे। मतदान के दौरान तथाकथित राष्ट्रवादी तत्वों ने इसे निगेटिव वोटिंग के तौर पर इस्तेमाल किया था। महिंदा राजपक्षे छह अप्रैल 2004 से 19 नवंबर 2005 तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे थे। असल खेल उनके राष्ट्रपति बनने पर आरंभ हुआ।

महिंदा राजपक्षे पर न केवल भ्रष्टाचार के आरोप लगे, बल्कि उन्हें पश्चिमी देशों के डिप्लोमेट ‘युद्ध अपराधी’ भी मानते हैं। उससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह थी कि श्रीलंका के जो सैनिक और कमांडर ‘वार क्रिमिनल्स’ घोषित किए गए थे, उनकी तैनाती संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में कर दी गई। ये लोग माली, दक्षिणी सूडान, लेबनान भेजे जा चुके थे।

सत्ता हथियाने के लिए महिंदा राजपक्षे ने ऐलान किया था कि वर्ष 2017 तक रणिल विक्रमसिंघे सरकार गिरा दूंगा। संसद में चार अप्रैल 2018 को हुए अविश्वास प्रस्ताव में मात के बावजूद र्मंहदा राजपक्षे की साजिशें जारी थीं। इसके बाद 25 अगस्त को राष्ट्रपति सिरिसेना हंबनटोटा के मेडमुलाना में महिंदा राजपक्षे के बड़े भाई की मृत्यु पर श्रद्धांजलि अर्पित करने गए। वहां र्मंहदा और सिरिसेन की मुलाकात हुई।

दिलचस्प बात यह थी कि वहां भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, प्रोफेसर मोनू नालापत के साथ उपस्थित थे। तो क्या भारत सरकार को र्मंहदा राजपक्षे- सिरिसेन के बीच पक रही खिचड़ी की जानकारी तक नहीं थी? यह कैसे हो सकता है? राष्ट्रपति से बेहतर संबंध रखने वाले उनके भाई, विपक्ष के नेता समरवीरा दिशानायक बांदा इस अभियान में लगे रहे कि राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन और महिंदा राजपक्षे के बीच दुरभिसंधि कराई जाए। इस काम के लिए बौद्ध भिक्षु मेडागोडा अभयथिसा थेरो को लगाया गया।

तीन अक्टूबर 2018 को कोलंबो के उपनगर बटरामुला स्थित समरवीरा दिशानायक बांदा के निवास पर राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन व महिंदा राजपक्षे मिले और रणनीति तय हुई। इस मुलाकात के दो दिन बाद राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन ने प्रधानमंत्री रणिल विक्रमसिंघे को पत्र लिखा, ‘भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ मेरी हत्या की साजिश रच रही है। आप इसकी जांच के साथ तुरंत कार्रवाई करें।’ इसे संयोग नहीं कहा जा सकता कि र्मंहदा राजपक्षे के भाई पूर्व प्रतिरक्षा मंत्री गोतबाया राजपक्षे ने उसके प्रकारांतर पुलिस में मामला दर्ज कराया कि उनकी हत्या की भी साजिश रची जा रही है।

सिरिसेन की हत्या की साजिश की सूचना का स्नोत राष्ट्रपति सचिवालय के एक कर्मी को बताया गया और इस सिलसिले में डीआइजी स्तर के एक अधिकारी, नालाका डिसिल्वा को सस्पेंड कर दिया गया। घटनाक्रमों को ध्यान से देखा जाए, तो इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि मिथ्याआरोप के पीछे महिंदा राजपक्षे का दिमाग काम कर रहा था। इस पूरे चुनाव में गोतबाया को चीनी मदद कितनी मिली, यह जिज्ञासा का विषय है। मगर इस परिणाम से पेइचिंग प्रसन्न है, इस तथ्य से हम इन्कार नहीं कर सकते। गोतबाया का शासन चीन से साभार आर्थिक नक्शे के अनुरूप काम करेगा? इस प्रश्न का उत्तर कुछ महीनों में मिलना आरंभ हो जाएगा।

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