कोरोना के बाद वैश्विक स्तर पर भारत की अहम भूमिका हुई तय, संकट काल में बढ़ा देश का कद

आज पूरी दुनिया में भारत की वैक्सीन कूटनीति की धूम मची हुई है जबकि चीन के ऐसे ही प्रयास सिरे नहीं चढ़ पा रहे हैं। अफ्रीका के गुमनाम देशों से लेकर कैरेबियाई देश सेंट लूसिया तक भारत की वैक्सीन पहुंच रही है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Thu, 04 Mar 2021 10:21 PM (IST) Updated:Thu, 04 Mar 2021 10:49 PM (IST)
कोरोना के बाद वैश्विक स्तर पर भारत की अहम भूमिका हुई तय, संकट काल में बढ़ा देश का कद
पूरी दुनिया में भारत की वैक्सीन कूटनीति की मची हुई है धूम

[हर्ष वी पंत] कोरोना केवल एक महामारी नहीं, बल्कि समकालीन दौर को परिभाषित करने की एक महत्वपूर्ण विभाजक रेखा बन गई है। अब कोरोना पूर्व और कोरोना उपरांत जैसे मानक विमर्श के केंद्र बन रहे हैं। चूंकि कोरोना वायरस से उपजी बीमारी कोविड-19 से दुनिया का शायद ही कोई कोना बचा हो, ऐसे में वैश्विक ढांचे पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। इस वैश्विक आपदा को आरंभ हुए एक साल से ज्यादा हो गया है और अभी उससे पूरी तरह निपटने में कई और साल लग सकते हैं। इस संक्रमण काल में दुनिया में व्यापक परिवर्तन होते दिख रहे हैं। इन परिवर्तनों की प्रकृति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि ‘पोस्ट कोरोना वर्ल्ड’ यानी कोरोना के उपरांत की दुनिया अब पहले जैसी नहीं रहेगी। इस वैश्विक महामारी के कारण वैश्विक ढांचे और परिदृश्य में परिवर्तन आसन्न है।

कोविड-19 से पहले अंतरराष्ट्रीय फलक पर चीन के कद और वर्चस्व में निरंतर बढ़ोतरी हो रही थी। उसके बढ़ते हुए प्रभुत्व पर ट्रंप प्रशासन ने कुछ अंकुश लगाने के प्रयास भी किए, परंतु वे बहुत अधिक फलदायी सिद्ध नहीं हुए। चीन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और कानूनों को धता बताते हुए मनमानी में जुटा रहा। उसने कई छोटे-बड़े देशों को अपने प्रभाव में भी ले लिया था। इसी बीच दस्तक देने वाली कोरोना आपदा ने चीन के रंग में भंग डाल दिया। कोरोना वायरस का उद्गम देश होने और उसे लेकर समूचे विश्व को अंधकार में रखने के कारण चीन के खिलाफ एक खराब धारणा बनती गई। तिस पर चीन ने अपनी दबंगई से रही- सही शेष कसर भी पूरी कर दी। जब दुनिया उसकी देहरी से निकले वायरस से जान बचाने में जुटी थी तो चीन अपनी दादागीरी दिखाने में लगा था। उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ पर ऐसी धौंस जमाई कि उससे कुपित होकर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका का इस संस्था से नाता तोड़ना ही मुनासिब समझा।

दुनिया में चीन की व्यापक भूमिका का दावा हो सकता है संदिग्ध

चीन कोरोना संक्रमण की व्यापक जांच को लेकर आरंभ से ही कन्नी काटता रहा और जब उस पर इसके लिए दबाव पड़ा तो उसने इसकी मुखरता से मांग कर रहे ऑस्ट्रेलिया को घुड़की देने से भी परहेज नहीं किया। वह सेनकाकू द्वीप में जापान के धैर्य की परीक्षा लेता रहा। दक्षिण चीन सागर में भी वह पड़ोसियों को तंग करता रहा। यहां तक कि हिमालयी क्षेत्र में भी उसने दुस्साहस दिखाया। पूरी दुनिया जब एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट से जूझ रही थी, तब चीन के ऐसे आक्रामक रवैये ने उन आशंकाओं को ही सही साबित किया, जो उसके ताकतवर बनने को लेकर जताई जा रही थीं। चीन की बढ़ती ताकत को लेकर जो बहस कोरोना से पहले सैद्धांतिक तौर पर ही हुआ करती थी, वह कोरोना काल में साकार हो गई। कोरोना पूर्व काल में वैश्विक महाशक्ति बनने की आकांक्षा पाले चीन की हसरतों पर कोरोना काल में उसका गैरजिम्मेदाराना व्यवहार जरूर पानी फेरने का काम करेगा। दुनिया में चीन की व्यापक भूमिका का दावा कुछ संदिग्ध हो सकता है।

यूएन में पीएम मोदी के संबोधन को वैश्विक नेताओं का मिला समर्थन

केवल चीन ही नहीं, वैश्विक संस्थाओं और विश्व के शक्तिशाली देशों की नियति भी कोरोना के बाद वाले दौर में बदलने वाली है। कोरोना संकट ने कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की भी कलई खोलकर रख दी। इनमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी यूएनएससी का नाम सबसे ऊपर आएगा। पूरी दुनिया में कोहराम मचा देने वाली इस आपदा के खिलाफ यह संस्था एक प्रस्ताव तक पारित नहीं कर सकी। डब्ल्यूएचओ तो इस दौरान दिशाहीन सा रहा। अन्य वैश्विक संस्थाएं भी अपना अर्थ खोती दिखीं। कोरोना के बाद वाली दुनिया में इन संस्थाओं को अपना रवैया बदलना पड़ेगा, अन्यथा वे और अप्रासंगिक होती जाएंगी। इसे ही ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अपने संबोधन में इन संस्थाओं में सुधार के लिए जोरदार पैरवी की थी। उनकी दलीलों को कई वैश्विक नेताओं का समर्थन मिला।

कोरोना काल में भारत अलग छाप छोड़ने में रहा सफल

इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना संकट काल में भारत अपनी एक अलग छाप छोड़ने में सफल रहा। बड़ी आबादी वाला देश होने के बावजूद भारत ने बेहतर कोविड प्रबंधन के रूप में एक मिसाल कायम की। हालांकि आर्थिक मोर्चे पर इस प्रबंधन की कुछ तात्कालिक कीमत चुकानी पड़ी, लेकिन अब उसमें तेजी से सुधार हो रहा है। भारत न केवल एक बड़ी हद तक खुद सुरक्षित रहा, बल्कि उसने पड़ोसियों का ध्यान रखने के लिए पाश्र्व में पड़े दक्षेस जैसे संगठन को पुन: सक्रिय करने का प्रयास किया।

पूरी दुनिया में भारत की वैक्सीन कूटनीति की मची हुई है धूम

कोरोना संकट की शुरुआत से पहले मास्क, पीपीई किट और अन्य वस्तुओं के उत्पादन एवं उपलब्धता में भारत की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन इसी संकट के दौरान भारत ने इन वस्तुओं के उत्पादन में महारत हासिल कर दुनिया को अपनी क्षमताओं से अवगत कराया। इस वैश्विक संकट के दौरान भारत स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों के अग्रणी आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा। आज पूरी दुनिया में भारत की वैक्सीन कूटनीति की धूम मची हुई है, जबकि चीन के ऐसे ही प्रयास सिरे नहीं चढ़ पा रहे हैं। अफ्रीका के गुमनाम देशों से लेकर कैरेबियाई देश सेंट लूसिया तक भारत की वैक्सीन पहुंच रही है। टीके की आपूर्ति में पड़ोसी देशों का प्राथमिकता के आधार पर ध्यान रखा गया है।

ब्राजील के राष्ट्रपति से लेकर डब्ल्यूएचओ तक भारत का कर रहे गुणगान

कोरोना संकट काल में वैश्विक परिदृश्य पर भारत के ऐसे उभार का श्रेय नि:संदेह देश के राजनीतिक नेतृत्व को जाता है। उसने दर्शाया कि भारत के पास भले ही संसाधनों की कमी हो, लेकिन इच्छाशक्ति की नहीं। भारत के इन्हीं समन्वित प्रयासों का ही परिणाम है कि दुनिया भर में उसके प्रति सम्मान बढ़ा है। ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुखिया ट्रेडोस घ्रेब्रेयसस तक भारत के गुणगान में लगे हैं।सीमा पर भारत के लिए सिरदर्द बढ़ाने वाले चीन और पाकिस्तान जैसे देशों का भारत के प्रति रवैया कुछ नरम होने के पीछे इन पहलुओं को एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।

चीन को आशंका सता रही थी कि यदि उसने भारत के साथ तनातनी बढ़ाई तो दुनिया उसके पक्ष में लामबंद हो सकती है। इसी कारण पाकिस्तान भी संघर्ष विराम की पेशकश करता दिखा। भविष्य में भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और भू-सामरिक मोर्चों पर भारत का वर्चस्व बढ़ेगा। वैश्विक गवर्नेंस ढांचे में भी उसकी भूमिका बढ़ेगी। वास्तव में यह भारतीय विदेश नीति और वैश्विक ढांचे के लिए एक निर्णायक पड़ाव है। भारतीय नेतृत्व को इस स्थिति का पूरा लाभ उठाना चाहिए।

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक हैं) 

[लेखक के निजी विचार हैं]

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