हिंदी को मिले राष्ट्रभाषा की स्वीकार्यता, रोजगारपरक होना इसकी सबसे बड़ी खासियत

हिंदी की प्रासंगिकता और उपयोगिता ने हिंदी में अनुवाद कार्य का मार्ग प्रशस्त किया है जिसके चलते हिंदी बाजार और रोजगार से जुड़ी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 11 Sep 2020 01:12 PM (IST) Updated:Fri, 11 Sep 2020 01:12 PM (IST)
हिंदी को मिले राष्ट्रभाषा की स्वीकार्यता, रोजगारपरक होना इसकी सबसे बड़ी खासियत
हिंदी को मिले राष्ट्रभाषा की स्वीकार्यता, रोजगारपरक होना इसकी सबसे बड़ी खासियत

नरपत दान चारण। आजादी के बाद भारत के नीति नियंताओं ने राजकाज की भाषा के रूप में हिंदी को स्वीकार किया। कालांतर में साहित्य, फिल्म, कला, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, संचार, बाजार जैसे क्षेत्रों में हिंदी ने अपनी महत्ता कायम की है। भूमंडलीकरण और बाजारीकरण के चलते हिंदी का व्यापक प्रसार हुआ है। हिंदी की प्रासंगिकता और उपयोगिता ने हिंदी में अनुवाद कार्य का मार्ग प्रशस्त किया है जिसके चलते हिंदी बाजार और रोजगार से जुड़ी है। हिंदी का रोजगारपरक होना इसकी सबसे बड़ी खासियत है। पूंजीवाद के इस दौर में बाजार के लिए हिंदी अनिवार्य बन गई है। हिंदी ने करोड़ों भारतीयों को रोजगार दिया है। इंटरनेट, ई-मेल आदि पर हिंदी का प्रयोग बढ़ा है। अनेक विश्वविद्यालयों में राजभाषा प्रशिक्षण का प्रमाणपत्र या डिप्लोमा पाठ्यक्रम अध्ययन क्षेत्र में शामिल किया गया है।

इसके साथ हिंदी धीरे-धीरे अपना अंतरराष्ट्रीय स्थान ग्रहण कर रही है, क्योंकि बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था, बढ़ता बाजार, हिंदी भाषी उपभोक्ता, हिंदी सिनेमा, प्रवासी भारतीय, हिंदी का विश्व बंधुत्व भाव हिंदी को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई हो रही है। संयुक्त राष्ट्र की ओर से सप्ताह में एक दिन हिंदी भाषा में एक समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू किया गया है। दुनिया में समाचार पत्रों में सबसे ज्यादा हिंदी के समाचार पत्र हैं। गूगल, फेसबुक, ट्विटर इत्यादि भी हिंदी भाषा को बढ़ावा दे रहे हैं। इन सबके चलते हिंदी समर्थ हो रही है। लेकिन हिंदी की विस्तार यात्र में कुछ चुनौतियां भी हैं। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा होने के बावजूद हिंदी अभी संयुक्त राष्ट्र में भाषा के तौर पर शामिल नहीं हो सकी है। लेकिन हिंदी के पास भाषिक क्षमता इतनी ज्यादा है कि वह आसानी से विश्वभाषा बन सकती है। वहीं देश में ही गैर हिंदी भाषी राज्यों द्वारा इसका विरोध किया जाना विडंबना ही है। यह मिथ्या विरोध है।

भारत वर्ष के सभी क्षेत्रों से हिंदी को सींचने का महत्वपूर्ण काम किया गया है। दूसरी तरफ इस युग में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अनेक भाषाओं में विस्तृत अध्ययन, अनुसंधान और लेखन कार्य हो रहा है, लेकिन हिंदी में इसकी कमी दिखाई देती है। हिंदी में विज्ञान व तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र के ज्ञान-प्रधान साहित्य की कोई रचनात्मक परंपरा कायम नहीं हो पाई। पारिभाषिक शब्दावली के बिना विज्ञान व तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्रों का अनुवाद कठिन है। हिंदी में पारिभाषिक शब्दों के अभाव और अनेकरूपता के कारण इस क्षेत्र के अनुवादों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

बहरहाल, राष्ट्रीयता, भारतीय संस्कृति, मातृभाषा आदि से जुड़े भावनात्मक नारों की अपेक्षा आर्थिक गति के बल पर हिंदी का भविष्य टिका है। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रयोजनमूलक हिंदी ही हिंदी को विस्तार दे सकती है। अत: हिंदी के प्रयोजनमूलक चरित्र की रूपरचना करनी जरूरी है। प्रयोजनमूलक हिंदी कामकाजी या व्यावहारिक हिंदी से भिन्न है। प्रयोजनमूलक हिंदी से तात्पर्य है, हिंदी का वह रूप, जिसका विशेष लक्ष्य या प्रयोजन है। इसे अंग्रेजी के फंक्शनल का हिंदी पर्याय कह सकते हैं। इसके तहत कार्यालयों में प्रयोग होने वाली पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण और कौशल हासिल करने में सहयोग देना, तकनीकी भाषा की पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण करना, जनसंचार माध्यमों के अनुकूल हिंदी को विकसित करना, सामाजिक उत्तरदायित्व बोध एवं राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप लोगों की चेतना का विकास करना आदि शामिल है। तमाम बातों के बीच हिंदी के विकास के लिए हमें यह स्वीकार करना होगा कि हिंदी हाशिये की भाषा नहीं है। यह हमारी राष्ट्रभाषा के समान है, लिहाजा समय आ गया है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा की स्वीकार्यता मिले।

[शिक्षक, हिंदी भाषा एवं लेखक]

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