अमीरों को आकर्षित करने की क्षमता: यदि भारत को विकसित देश बनना है तो हासिल करनी होगी अमीरों को आकर्षित करने की ताकत

अमीरों पर भारी एक्जिट टैक्स लगा देना चाहिए। इन नीतियों को लागू करने से हम अपने यहां के अमीरों को पलायन करने से रोक सकेंगे। इसके साथ ही दूसरे देशों से भी अमीरों को आकर्षित करने में कामयाब होंगे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 04:31 AM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 04:31 AM (IST)
अमीरों को आकर्षित करने की क्षमता: यदि भारत को विकसित देश बनना है तो हासिल करनी होगी अमीरों को आकर्षित करने की ताकत
पलायन के बावजूद भारत में अमीरों की संख्या बढ़ रही

[ भरत झुनझुनवाला ]: मेहुल चोकसी जैसे तमाम ठग भारत से पलायन कर भाग गए हैं। सरकार उन्हें पकड़कर लाने और दंडित करने का सही प्रयास कर रही है, लेकिन यह भी ध्यान दें कि भारत से कानूनी दायरे के भीतर अमीरों के पलायन का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। अमीरों को एक देश से दूसरे देश पलायन करने में मदद करने वाली सलाहकार कंपनी हेनली एंड पार्टनर्स के अनुसार 2020 में भारत से पलायन करने के इच्छुक अमीरों में 63 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसमें भारत में व्याप्त कोविड संकट का असर भी दिखता है, लेकिन कोविड के पहले 2018 में एफ्रो एशिया बैंक की ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू रपट में बताया गया कि 2018 में चीन से 15000, रूस से 7000, भारत से 5000 और तुर्की से 4000 अमीरों ने दूसरे देशों को पलायन किया। इन चार देशों में चीन, रूस और तुर्की में लोकतंत्र नहीं है। माना जा सकता है कि इन देशों से पलायन राजनीतिक घुटन के कारण हुआ होगा, लेकिन लोकतांत्रिक और खुले वातावरण वाले भारत का इस सूची में जुड़ना शुभ संकेत नहीं। विशेष बात यह है कि मारीशस जैसे विकासशील देश में भी सौ से अधिक अमीरों ने पलायन किया है। हम अमीरों को खो रहे हैं, जबकि मारीशस उन्हें हासिल कर रहा है। साफ है कि भारत से अमीरों का पलायन केवल कोविड के कारण नहीं हुआ है, बल्कि इसके पीछे और गहरी समस्या है।

पलायन के बावजूद भारत में अमीरों की संख्या बढ़ रही

अमीरों को पलायन करने में मदद करने वाली एवैंडस वेल्थ मैनेजमेंट नामक कंपनी का कहना है कि भारत को चिंतित नहीं होना चाहिए, क्योंकि भारत में जितने अमीर पलायन कर रहे हैं, उससे अधिक नए अमीर बन रहे हैं। यह बात काफी हद तक सही है कि पलायन के बावजूद भारत में अमीरों की संख्या बढ़ रही है। यदि हमें वास्तव में विकसित देश बनना है और विश्व के अग्रणी देशों की कतार में शामिल होना है तो हमें अमीरों को आर्किषत करने की ताकत हासिल करनी होगी। एफ्रो एशियाई बैंक के अनुसार 2018 में ऑस्ट्रेलिया में 12000, अमेरिका में 10000 और कनाडा में 4000 अमीरों ने पलायन किया। स्पष्ट है कि हमें उन कारणों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, जिनके चलते भारत से अमीर पलायन कर रहे हैं। इसकी पड़ताल से पहले हमें कुछ मिथकों पर विचार करना चाहिए।

यदि अमीरों के परिवारों को सुरक्षा नहीं मिलती तो वे पलायन करना चाहते हैं

ऑस्ट्रेलिया में व्यक्तिगत आय पर टैक्स की दर ऊंची है। इसके बावजूद अमीर सर्वाधिक संख्या में वहां पलायन कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि टैक्स दरों का पलायन से कम सरोकार है। अक्सर दो और कारणों का हवाला दिया जाता है-शिक्षा की उपलब्धता और हाईटेक क्षेत्रों में अवसर। मेरे आकलन में ऐसे क्षेत्रों में भारत में भी अवसरों की कमी नहीं है। एफ्रो एशियाई बैंक के अनुसार पलायन करने का एक प्रमुख कारण सुरक्षा है। यदि अमीरों के परिवारों को, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को, सुरक्षा नहीं मिलती तो वे पलायन करना चाहते हैं।

सामाजिक ढांचा बिगड़ जाना और असुरक्षा का माहौल बन जाना पलायन का दूसरा कारण

दूसरा कारण माहौल बताया गया है। यदि किसी भी देश में विभिन्न धर्मों के बीच विवाद चलता है तो सामाजिक ढांचा बिगड़ जाता है और असुरक्षा का माहौल बन जाता है। तीसरा कारण खुला परिवेश बताया गया है। अमीर लोग खुले परिवेश में जीना चाहते हैं। उन्हें यह रास नहीं आता कि विभिन्न विचारों की जानकारी हासिल करने से उन्हें रोका जाए। वे स्वयं भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहते हैं। चौथा कारण बताया गया कि यदि किसी देश में र्आिथक विकास की गति धीमी होती है तो अवसर भी कम हो जाते हैं और गरीबी भी बढ़ती है। इससे पुन: असुरक्षा का माहौल बनता है। ये चारों कारण महत्वपूर्ण हैं। इन पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

भारत में व्यापार करने की सुगमता यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में कथित सुधार कारगर नहीं

भारत में व्यापार करने की सुगमता यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में कथित सुधार कारगर नहीं। वर्तमान में भारत की अर्थव्यवस्था एक ट्यूबवेल जैसी हो गई है, जो देश की पूंजी को पंप करके विदेश पहुंचा रही है। फलस्वरूप हमारी अपनी विकास दर लगातार गिरती जा रही है। ऐसे में सुझाव है कि सुरक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार को पुलिस अधिकारियों का स्वतंत्र बाहरी मूल्यांकन कराना चाहिए। पांचवें वेतन आयोग ने सुझाव दिया था कि सरकार के सभी क्लास ए अधिकारियों का बाहरी मूल्यांकन कराया जाए, लेकिन नौकरशाहों के दबाव में सरकार ने इस सुझाव को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इस सुझाव को लागू करना चाहिए, जिससे सरकार को ज्ञात हो कि कौन अधिकारी भ्रष्ट है? इससे ही सुरक्षा का परिदृश्य सुधर सकता है। सामाजिक माहौल सुधारने के लिए हर राज्य में आइआइटी और आइआइएम की तरह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिलीजंस यानी आइआइआर बनाने चाहिए, जिसमें तमाम धर्मों के बीच मुक्त चर्चा हो, ताकि सभी धर्मों के बीच एक साझा रास्ता ढूंढ़ा जा सके और सौहार्द एवं सद्भाव स्थापित हो सके। तीसरा बिंदु मीडिया की स्वतंत्रता से जुड़ा है।

निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय

अपनी परंपरा में कहा गया है कि निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। हमें इस विचारधारा को बढ़ाना चाहिए। आलोचना से सरकारी कार्य की दिशा में सुधार होगा। चौथा बिंदु आर्थिक विकास का है। इसमें फिलहाल दो परस्पर विरोधी चाल दिख रही हैं। हमारी जीडीपी वृद्धि दर लगातार घट रही है, जबकि शेयर बाजार ऊंचा उठ रहा है। इस परस्पर विरोधी चाल का कारण यह है कि हमारी आर्थिक नीतियां बड़े और संगठित क्षेत्र के उद्योगों को बढ़ावा दे रही हैं। ये छोटे और असंगठित उद्योगों तथा कार्यों के अनुकूल नहीं हैं। इन नीतियों को बदलना चाहिए।

अपने देश से पलायन करने वालों पर भारी एक्जिट टैक्स लगा देना चाहिए

अंत में एक और कार्य सरकार द्वारा किया जा सकता है। अमेरिका में व्यवस्था है कि यदि कोई व्यक्ति उसकी नागरिकता छोड़ता है तो उसे भारी टैक्स देना पड़ता है, जिसे एक्जिट टैक्स कहा जाता है। इसके पीछे विचार यह है कि उस नागरिक ने पूर्व में अपने देश की अर्थव्यवस्था से कुछ लाभ उठाए होते हैं, जो वापस किए जाने चाहिए। अपने देश से भारी संख्या में शिक्षितों और अमीरों का पलायन हो रहा है और ये दूसरे देशों की नागरिकता हासिल करते हैं। उन पर भारी एक्जिट टैक्स लगा देना चाहिए, जिससे इन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था से जो लाभ उठाए हैं, उनकी भरपाई भारत को करें। इन नीतियों को लागू करने से हम अपने अमीरों को पलायन करने से रोक सकेंगे। इसके साथ ही दूसरे देशों से भी अमीरों को आकर्षित करने में कामयाब होंगे।

 

( लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं )

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