लजीज व्यंजनों से बदला जिंदगी का जायका

हरषित डुंगडुंग बड़ी तत्परता से स्टॉल पर आए ग्राहकों से बात करती है। उनका आर्डर सर्व करती है। ग्राहक जब लजीज जायके की तारीफ करते हैं तो समूह की सभी महिलाओं के चेहरे की खुशी देखते ही बनती है। लेकिन चंद सालों पहले तक जिदगी जायके की मानिद लजीज नहीं थी। बेरंग बेस्वाद थी। परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी। दिन ब दिन घर चलाने की जद्?दोजहद से जूझना पड़ रहा था। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही थी। उन मुश्किल दिनों में गांव की महिलाओं ने कुछ कर गुजरने की ठानी और फिर स्वयं सहायता समूह बना जिदगी को जायकेदार बनाया। बुलंद हौसलों से अच्छे दिनों

By JagranEdited By: Publish:Sun, 13 Oct 2019 08:31 PM (IST) Updated:Wed, 16 Oct 2019 06:12 AM (IST)
लजीज व्यंजनों से बदला जिंदगी का जायका
लजीज व्यंजनों से बदला जिंदगी का जायका

संजीव कुमार मिश्र, नई दिल्ली

हर्षित डुंगडुंग की जिंदगी आज सरपट दौड़ रही है। ग्राहकों से बात करते समय उनके चेहरे पर सफलता का आत्मविश्वास देखा जा सकता है। लेकिन, कुछ साल पहले तक उनके चेहरे पर यह चमक नहीं थी। उनकी जिंदगी गांव की पगडंडियों पर हिचकोले खा रही थी, तो बच्चों की शिक्षा और भविष्य की चिंता उन्हें खोखला कर रही थी। ऐसे में उन्हें अपना जीवन बेरंग और बेस्वाद लगने लगा था। दिन ब दिन घर चलाने की जद्दोजहद के बीच गांव की महिलाओं के साथ मिलकर उन्होंने कुछ कर गुजरने की ठानी और फिर स्वयं सहायता समूह बनाकर लोगों को व्यंजन परोसने शुरू किए। यह सफर शुरू तो झारखंड के एक ब्लॉक से हुआ, लेकिन अब यह दिल्ली के इंडिया गेट लॉन में आयोजित सरस आजीविका मेले तक पहुंच गया। यहां उनके समूह की महिलाओं द्वारा तैयार किए जा रहे चिकन करी, दाल पीठा, वेज पुलाव आदि के जायके की दिल्ली का हर ग्राहक तारीफ कर रहा है। हर्षित भी स्टॉल पर आए ग्राहकों से बात करती हैं और उन्हें आर्डर सर्व करती हैं।

आसान नहीं था सफर

हर्षित डुंगडुंग ने बताया कि अलबेला स्वयं सहायता समूह झारखंड के सिमडेगा जिले के ठेठईटांगर ब्लॉक में सक्रिय है। यह 14 महिलाओं का समूह है, जो विगत तीन सालों से जायके का स्वाद चखा रही हैं। इसमें गड़गड़बहार गांव की महिलाएं है। बकौल हर्षित अन्य गांवों की तरह ही उनका भी गांव है। सुविधाओं के लिए तरसते परिवार हैं। इन परिवारों की महिलाओं में भी अपने परिवार की तरक्की की चाह थी और इसके लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा था। लेकिन, यह सफर आसान नहीं था। उन्होंने आर्थिक तंगी और परेशानियों के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि इनसे लड़ने की ठानी। ताकि परिवार अच्छी तरह गुजर बसर कर सके। बेटे को दिलाया अच्छे स्कूल में दाखिला

हर्षित कहती हैं कि उनके तीन बेटे हैं। मझले बेटे को बढि़या स्कूल में पढ़ाना चाहती थीं। लेकिन पैसे की कमी के चलते ऐसा मुमकिन नहीं हो पा रहा था। स्वयं सहायता समूह ज्वाइन करने के बाद अब माली हालत में सुधार हुआ तो सबसे पहले बेटे का दाखिला ब्लॉक के प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूल में करवाया। ताकि, पढ़ लिखकर वो आगे बढ़े। उनके समूह की अन्य महिलाओं ने भी बेहतर भविष्य के लिए अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में भेजा है। उन्होंने बताया कि समूह शुरुआत में ब्लॉक के विभिन्न मेलों में भाग लेता था। बाद में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित मेलों में भी जाने लगा। पहली बार समूह की महिलाएं दिल्ली आई हैं। समूह की सदस्य पूर्णिमा कहती हैं कि सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि दिल्ली सरस मेले में जा सकेंगे। यहां के लोगों से ठीक ढंग से बात भी कर पाऊंगी ये सोचकर सहम जाती थी। लेकिन आज जब ये मुमकिन हुआ तो बहुत अच्छा लग रहा है। गांव की महिलाओं की भी करती हैं मदद

हर्षित डुंगडुंग कहती हैं कि समूह की महिलाएं गांव की अन्य महिलाओं की भी मदद करती हैं। हाल ही में एक महिला के पति की मौत हो गई थी। उनके पास पति का अंतिम संस्कार करने तक के पैसे नहीं थे। समूह की महिलाओं ने आपस में पैसे इक्टठे कर उनकी मदद की। इसी तरह एक महिला का घर जलने पर भी दस हजार से ज्यादा रुपये देकर उनकी मदद कर सिर पर छत बनाई। इसके बाद से समूह से प्रेरणा लेकर गांव की अन्य महिलाएं भी उनके साथ जुड़ रही हैं।

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