Tughlak Raod: अत्याचारी राजवंश के नाम पर दिल्ली में सड़क का नाम क्यों
Tughlak Raod इस राजवंश के एक शासक के नाम पर हमारे देश में तुगलकी फरमान जैसा पद अब तक बोला जाता है। उसके फैसले अजीबोगरीब होते थे बगैर सोचे समझे उसने अपनी राजधानी को दिल्ली से करीब 1500 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के देवगिरी में बसाने का फैसला कर लिया था।
नई दिल्ली [अनंत विजय]। राजधानी दिल्ली में सड़कों का नाम किस तरह से रखा गया अगर इस पर कोई शोध हो तो कई दिलचस्प जानकारियां निकल सकती हैं। पराधीन भारत में सड़कों के नाम तो उन राजाओं या राजवंशों के नाम पर रखे गए थे लेकिन स्वाधीनता के बाद नाम परिवर्तन को लेकर क्या सोच रहा ये जानना भी दिलचस्प होगा। अगर इस संबंध में कोई नीति होती तो आज सेंट्रल दिल्ली में कम से कम तुगलक के नाम से सड़क, लेन और क्रेसेंट नहीं होते। तुगलक क्रेसेंट एक अर्धचंद्राकार सड़क है जिस पर एक तरफ सरकारी बंगले हैं और दूसरी तरफ भारत आसियान ( दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन) मैत्री पार्क है। इसका नाम तुगलक वंश के नाम पर रखा गया है।
उसी तुगलक वंश के नाम पर जिसके शासकों ने भारत पर ना केवल राज किया बल्कि यहां की जनता को पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े रखा। यहां यह भी याद रखना आवश्यक है कि मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के दौरान जब भयानक अकाल पड़ा था तब उसने अपने खजाने को भरने के लिए जनता पर लगने वाले टैक्स की राशि काफी बढ़ा दी थी।
इतना ही नहीं, गंगा-युमना दोआब के बीच निवास करने वाली जनता से टैक्स की राशि वसूलने के लिए तमाम तरह के जुल्म किए। अत्याचार से बचने के लिए लोगों ने घर बार तक छोड़ दिए। इस राजवंश के एक शासक के नाम पर हमारे देश में तुगलकी फरमान जैसा पद अब तक बोला जाता है। उसके फैसले अजीबोगरीब होते थे, बगैर सोचे समझे उसने अपनी राजधानी को दिल्ली से करीब 1500 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के देवगिरी में बसाने का फैसला कर लिया था। देवगिरी का नाम बदलकर दौलताबाद कर दिया था। तमाम लोगों को दिल्ली से दौलताबाद जाने का शाही फरमान जारी कर दिया था। इस विस्थापन में हजारों लोगों की जान गई थी, लेकिन उसको इन सबकी फिक्र नहीं थी। उसके साथ जब दिल्ली से लोग देवगिरी पहुंचे तो वहां स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने लगीं।
एक दिन अचानक फिर से तुगलकी फरमान जारी हुआ कि अब राजधानी फिर से दिल्ली होगी। देवगिरी से दिल्ली आने में फिर लोगों की जान गईं। इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी के मुताबिक उस दौर में पूरी दिल्ली खाली हो गई थी। मध्यकालीन इतिहास में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि इस तुगलकी फरमान की वजह से हिंदी व्यापारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। क्या हम पराधीनता के उस दौर में अपने पूर्वजों पर हुए अत्याचारों के जिम्मेदार शासक को याद रखना चाहते हैं।