Delhi Congress News: दिल्ली पर लगातार 15 साल राज करने वाली बेजान कांग्रेस में कौन फूंके जान?
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में आज जो कुछ भी होता है वह केवल रस्म अदायगी रह गया है। न कोई जुड़ना चाहता है और न ही कोई किसी को जोड़ना चाहता है। हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल रहता है कि इस बेजान कांग्रेस में आखिर जान फूंकेगा कौन?
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। देश की राजधानी दिल्ली पर लगातार 15 साल राज करने वाली कांग्रेस आज गिनती के नेताओं-कार्यकर्ताओं तक सिमटने लगी है। पार्टी की कोई भी गतिविधि हो, वही गिने-चुने चेहरे नजर आते हैं। अब ताजा उदाहरण बुधवार को प्रदेश कार्यालय में आयोजित आंबेडकर जयंती का ही ले लीजिए। एक भी पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष उपस्थित नहीं था। पूर्व विधायक के तौर पर भी पांच छह नाम ही हैं, जो अमूमन हर मौके पर नजर आ जाते हैं। जिला अध्यक्ष भी चार-पांच ही पहुंचते हैं। अन्य किसी को कोई जैसे मतलब नहीं रह गया है। ऐसा लगता है मानो दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में आज जो कुछ भी होता है, वह केवल रस्म अदायगी रह गया है। न कोई जुड़ना चाहता है और न ही कोई किसी को जोड़ना चाहता है। हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल रहता है कि इस बेजान कांग्रेस में आखिर जान फूंकेगा कौन?
संगठन नहीं, व्यक्ति पूजा
फेसबुक और ट्विटर आजकल किसी भी राजनीतिक पार्टी के प्रचार के बड़े माध्यम बन चुके हैं। पार्टी नेताओं की तमाम पोस्ट इनके माध्यम से कुछ ही समय में न केवल पार्टी के हर नेता कार्यकर्ता तक पहुंच जाती हैं, बल्कि आमजन में भी प्रचारित हो जाती हैं। अमूमन हर पार्टी इसके लिए एक अलग टीम रखती है। दिल्ली कांग्रेस यहां भी पिछड़ती नजर आ रही है। ट्वीट तो पार्टी के कई नेता करते हैं, लेकिन वायरल केवल एक या दो के ही किए जाते हैं। मतलब, संगठन की मजबूती से ज्यादा व्यक्ति पूजा को तवज्जो दी जाती है। यह भी ध्यान रखा जाता है कि किसकी नाराजगी से हमारी कुर्सी को खतरा हो सकता है और किसकी नाराजगी के कोई मायने नहीं है। विडंबना यह कि राजनीति के नक्शे से लगातार ओझल हो रही कांग्रेस में यह व्यक्ति पूजा और गुटबाजी धीमे जहर का ही काम कर रही है।
नए नेताओं की अजब-गजब कहानी
कांग्रेस की दिल्ली इकाई के तमाम वरिष्ठ नेता एक-एक करके पार्टी को अलविदा कह रहे हैं। हाल ही में वरिष्ठ कांग्रेसी अंजलि राय भी पार्टी का साथ छोड़ गईं। पिछले 12 माह में ऐसे नेताओं की संख्या शायद 15 से भी ज्यादा हो गई है। दिलचस्प यह कि कांग्रेस भी बीच-बीच में कुछ नेताओं को पार्टी की सदस्यता दिलवाती रहती है। लेकिन जाने वाले नेताओं की तो बाकायदा एक पहचान होती है, जबकि आने वाले नेताओं को बताने के बाद भी कोई नहीं जानता। हैरत की बात यह कि पार्टी की सदस्यता लेने वाले ये नेता सुबह प्रदेश कार्यालय में फोटो खिंचवाकर शाम को अगर भाजपा या आम आदमी पार्टी कार्यालय में भी घूमते नजर आ जाएं तो अतिशयोक्ति नहीं। दरअसल इनकी कोई पहचान ही नहीं होती। कोई ब्लाक स्तर का नेता होता है तो कोई विधानसभा स्तर का, कोई किसी पेशे से जुड़ा होता है तो किसी व्यवसाय से।
दूल्हे के फूफा बने पुराने नेता
किसी भी शादी में दूल्हे के फूफा के नाज-नखरे भला कौन नहीं जानता। किसी न किसी बात पर उनका मुंह फूला ही रहता है। कांग्रेस के पूर्व सांसद, मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, विधायक, पार्षद और यहां तक कि जिलाध्यक्ष तक आजकल दूल्हे के फूफा ही बने हुए हैं। न पार्टी पूछ रही है और न ही जनता, लेकिन नखरे ऐसे दिखाते हैं कि पार्टी के संकटमोचक यही हैं। अपनी मर्जी से भले कहीं पहुंच जाएं, लेकिन अगर सामने से कोई मिलना चाहे तो खुद को इतना व्यस्त बताएंगे कि इतना तो शायद नौकरशाह भी नहीं हों। कुछ का आलम तो यह हो चला है कि फोन करने पर भी या तो कहीं फंसा हुआ बताएंगे या फिर बहाने बनाने लगेंगे कि फलां रिश्तेदार बीमार चल रहा है, फलां जानकार भगवान को प्यारे हो गए और मैं तो आज ही अस्पताल से लौटा है। आखिर कैसे नैया पार लगेगी पार्टी की?