प्रदूषण से दिल्ली बेहाल, कृत्रिम बारिश की योजना पर बादलों ने फेरा पानी

कृत्रिम बारिश के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने इसरो का जो विमान लिया है, वह दूसरे विमानों से अलग है। आईआईटी कानपुर ने इसको कृत्रिम बारिश कराने के लिए इनमें विशेष रूप से कई बदलाव किए है।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Tue, 20 Nov 2018 08:41 PM (IST) Updated:Wed, 21 Nov 2018 04:08 PM (IST)
प्रदूषण से दिल्ली बेहाल, कृत्रिम बारिश की योजना पर बादलों ने फेरा पानी
प्रदूषण से दिल्ली बेहाल, कृत्रिम बारिश की योजना पर बादलों ने फेरा पानी

नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली में कृत्रिम बारिश की सारी तैयारियों पर बादलों ने पानी फेर दिया। जैसा अनुमान था कि 21 नवंबर को दिल्ली के ऊपर बादलों की भारी जमावड़ा रहेगा, वैसा नहीं हुआ। मौसम विभाग के अनुमान फेल हो गए। इसके चलते कृत्रिम बारिश की वह सारी योजना भी धरी की धरी रह गई। हालांकि इस बारिश से केद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को काफी उम्मीदें थी, क्योंकि दिल्ली में इन दिनों प्रदूषण का स्तर एक बार फिर काफी खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। ऐसे में इस बारिश से उन्हें प्रदूषण के स्तर में गिरावट की आस थी। जिसे बादलों ने बिन बरसे ही धो दिया।

 प्रदूषण खतरनाक स्‍तर पर
इस पूरी योजना पर काम कर रहे आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों भी इन परिस्थितियों में अपने परीक्षण को लेकर काफी उत्साहित थे। उनका मानना है कि दिल्ली में जब प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर में है, ऐसे में यदि कृत्रिम बारिश होती, तो उसके परिणामों को समझने में भी मदद मिलती है। साथ ही प्रयोग कितना कारगार साबित हुआ, इसके आकलन में भी मदद मिलती।

इस पूरी योजना पर काम कर रहे आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी ने दैनिक जागरण से बात करते हुए बताया कि योजना अभी टली नहीं है। अगले एक-दो दिनों में जब भी बादल दिल्ली के ऊपर जमा होंगे, बारिश कराई जाएगी। उनके पास इससे जुड़ी सारी मंजूरी है। उन्होंने बताया कि दिल्ली के ऊपर बुधवार को भी कुछ बादल है, लेकिन यह काफी हल्के है साथ ही यह पांच किमी से ज्यादा ऊपर है।

डीजीसीए ने भी फंसाई पेंच
कृत्रिम बारिश की सारी तैयारियों में डीजीसीए ( डायरेक्टर जनरल आफ सिविल एविएशन) ने भी एक पेंच फंसा दी है। हालांकि उनसे भी इसके लिए अनुमति दे रखी है, लेकिन इनके लिए उनसे दस शर्ते भी जोड़ी है, सूत्रों की मानें तो इनमें से ज्यादातर तो सामान्य शर्ते है, जो विमान संचालन करने वाली एजेंसी को पूरी करनी होती है, लेकिन एक-दो ऐसी शर्ते भी है, जिन्हें विमान प्रदाता कंपनी इसरो अभी तक पूरी नहीं कर पायी है। हालांकि मंत्रालय के अधिकारियों की कहना है कि इसे लेकर कोई अड़चन नहीं है। यदि बादल होते, तो हम तुरंत इन शर्तों को भी पूरा कर देते।

प्रदूषण के खिलाफ भारत में पहली बार इस्तेमाल की है तैयारी
कृत्रिम बारिश हालांकि कोई नई विधा नहीं है। भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में इसे समय-समय पर अजमाया जाता रहता है, लेकिन प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश कराने के उदाहरण कम है। चीन में प्रदूषण को कम करने में इसका इस्तेमाल काफी होता है, लेकिन भारत में प्रदूषण के खिलाफ पहली बार इसके इस्तेमाल की तैयारी है। फिलहाल केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से बनाई गई इस योजना में सरकारी एजेंसियों को शामिल किया गया है, इनमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) शामिल है।

20 लाख के खर्च का है अनुमान
कृत्रिम बारिश वैसे तो काफी महंगी प्रक्रिया है। जिसके लिए विशेष विमान से लेकर मशीनरी और बादलों के बीच रिएक्शन कराने के लिए केमिकल इस्तेमाल का किया जाता है। लेकिन इसरो और आईआईटी की मदद से यह काफी कम खर्च में ही पूरा होगा। इसरो इसके लिए अपने विशेष रूप से तैयार किए गए ( मॉडिफाई) विमान को नि:शुल्क उपलब्ध कराएगा, जबकि आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक भी निशुल्क सहयोग देंगे। छिड़काव होने वाले रसायनों का भी खर्च ही मंत्रालय पर पड़ेगा, जो करीब 20 लाख रुपए के करीब होगा।

कैसे होती है कृत्रिम बारिश
आमतौर पर कृत्रिम बारिश प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ (ड्राई आइस) जैसे तत्व इस्तेमाल किए जाते थे। इस पूरी प्रक्रिया में बादलों की मौजूदगी सबसे जरूरी है, क्योंकि इसे विमानों की मदद से बादलों के बीच ही छिड़का जाता है। जिससे बादल बूंद में तब्दील होकर बरस पड़ते हैं। 

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