Water Conservation: अधिकार की चिंता नहीं, मौलिक दायित्वों को भी समझना जरूरी

हम सिर्फ अधिकारों की चिंता करते हैं बात जब दायित्वों की आती है तो मुंह चुराने लगते हैं। राह चलते अगर कहीं पानी या पर्यावरण की बर्बादी होते देखते हैं तो हम में से शायद ही कोई उसे रोकने के प्रति सक्रियता दिखाए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 18 Jan 2021 10:03 AM (IST) Updated:Mon, 18 Jan 2021 10:03 AM (IST)
Water Conservation: अधिकार की चिंता नहीं, मौलिक दायित्वों को भी समझना जरूरी
हम शुद्ध पानी और पर्यावरण के अपने और अन्य के मौलिक अधिकार की पूर्ति कर सकेंगे।

डॉ भारत शर्मा। पानी सीमित मात्र में उपलब्ध विकल्पहीन संसाधन है। यह जीवन, समाज व अर्थव्यवस्था का आधार है और अपने में कई मूल्यों और लाभों को समेटे हुए है। दुर्भाग्य है कि नियोजक और अधिसंख्य लोग यह नहीं समझ पा रहे कि पानी जनजीवन, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण व समाज के लिए कितना अहम है। देश के बड़े हिस्से में पानी की किल्लत गहराती चली जा रही है। फिलहाल देश में पानी की उपलब्धता 1,400 घन मीटर प्रति वर्ष से भी कम हो गई है, जो वैश्विक जल किल्लत के करीब है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में साफ पेयजल को मौलिक अधिकार माना गया है। इसके बावजूद वर्षो से गरीबों को स्वच्छ पेयजल व शौचालय से दूर रखा गया। लोगों और नागरिक संगठनों को समझने की जरूरत है कि भले ही स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता मौलिक अधिकार है और सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए, लेकिन यह एक विशाल जिम्मेदारी है और इसमें देश के सभी लोगों की सक्रिय सहभागिता बहुत जरूरी है।

दरअसल सिर्फ हम अधिकारों की बात करते हैं, बात जब दायित्वों की आती है तो मुंह चुराने लगते हैं। राह चलते अगर कहीं जल या पर्यावरण की बर्बादी होते देखते हैं तो हममें से कितने लोग उस बर्बादी को रोकने के प्रति सक्रियता दिखाते हैं। शायद कोई नहीं। यही नतीजे जब ‘शायद सभी’ में तब्दील हो जाएंगे तो ही हम शुद्ध पानी और पर्यावरण के अपने मौलिक अधिकार की पूर्ति कर सकेंगे। प्राकृतिक संसाधन अनमोल हैं लेकिन अधिकांश को इसका कोई मोल नहीं चुकाना पड़ता है। तभी हम इसकी अहमियत नहीं समझते। अपव्यय तो करते ही हैं, जो मौजूद हैं उन्हें प्रदूषित करने से भी बाज नहीं आते हैं।

पर्यावरण को खराब करना हमारा शौक बन गया है। छोटी सी दूरी भी बिना वाहन के नहीं तय होती। पड़ोसी को पानी बर्बाद करते देखते हैं तो उसे टोकने की बजाय हमारे मन में यह विचार आता है कि हम यह बर्बादी कम क्यों कर रहे हैं? हमें तो उससे ज्यादा प्राकृतिक संसाधनों को तबाह करना चाहिए। कभी सोचा है कि वाहनों का धुआं आपके पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहा है। अपनी गल्तियों को सुधारने का काम सरकारों के जिम्मे छोड़ना कहां तक उचित और न्याय संगत है। यह सही है कि कल्याणकारी सरकार में उसके नागरिकों की हर दिक्कत दूर करने की बात अंतर्निहित होती है, लेकिन उसके सामने तमाम चुनौतियां हैं।

अगर हम लोग अपने प्राकृतिक संसाधनों को स्वस्थ और स्वच्छ रखें तो सरकार उस मद में श्रम और संसाधन को किसी और विकास के काम में लगा सकती है। ऐसे में निजी स्तर पर भी सभी जल स्नोतों को संरक्षित और पुनर्जीवित करने की जरूरत है। जल संग्रह और भूजल संरक्षण को बढ़ावा देने की जरूरत है। उपलब्ध जल का तार्किक और समुचित उपयोग होना चाहिए। तटवर्ती प्रदेशों को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए नदी को साफ रखने में योगदान देना चाहिए। जल संसाधन सेवाओं को पानी की वास्तविक कीमत बतानी चाहिए और विभिन्न समाजों से उनकी आर्थिक स्थिति के अनुसार इसके लिए भुगतान लेना चाहिए। ऐसा भी नहीं कि समाज के तमाम लोग इस बात को लेकर अन्यमनस्क हैं, कुछ लोग बड़ी शिद्दत से प्राकृतिक संसाधनों को सहेजने की जतन में दिन-रात जुटे हैं। हमें इनका अनुकरण करना चाहिए।

जलापूर्ति का बुनियादी ढांचा बेहतरीन स्थिति में होनी चाहिए। अपशिष्ट जल के इस्तेमाल का मुख्य मंत्र है, ‘प्रदूषण में कमी, मिलावट को खत्म करना, प्रदूषित जल का सुरक्षित इस्तेमाल व पोषक तत्वों की प्राप्ति।’ शहर सिंचाई के पानी का इस्तेमाल क्षेत्र में होने वाली खेतीबाड़ी के लिए कर सकते हैं। स्थानीय वानिकी, बगीचे व लॉन को बचाए रखना चाहिए, क्योंकि ये किसी भी शहर के फेफड़ों के रूप में काम करते हैं। इस समय हम जबकि पानी को मौलिक अधिकार मान रहे हैं, हर भारतीय के लिए पानी एक मौलिक दायित्व भी होना चाहिए।

[वैज्ञानिक एमेरिशस (जल संसाधन), अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान, नई दिल्ली]

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