Delhi Farmer Protest: क्या कुछ दिन पहले ही लिख दी गई थी किसान हिंसा की पटकथा?

इसकी पटकथा तभी लिख दी गई थी जब 40 संगठनों के किसान नेताओं की जमात ने तीनों कानूनों को वापस लेने की जिद पकड़ ली थी। उन्हें मनाने की हर संभव कोशिशें हुई। सरकार ने उनकी हर शंका के समाधान की कोशिश की पर ये सभी अड़े रहे।

By JP YadavEdited By: Publish:Wed, 27 Jan 2021 11:28 AM (IST) Updated:Wed, 27 Jan 2021 11:28 AM (IST)
Delhi Farmer Protest: क्या कुछ दिन पहले ही लिख दी गई थी किसान हिंसा की पटकथा?
कानून व्यवस्था बिगड़ने का अनुमान लग रहा था।

नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। हरियाणा से लेकर उत्तर प्रदेश बॉर्डर तक आपसी होड़, शक्ति प्रदर्शन और सियासत के चलते यह आंदोलन बेलगाम और हिंसक हो गया। इसकी पटकथा तभी लिख दी गई थी, जब 40 संगठनों के किसान नेताओं की जमात ने तीनों कानूनों को वापस लेने की जिद पकड़ ली थी। उन्हें मनाने की हर संभव कोशिशें हुई। सरकार ने उनकी हर शंका के समाधान की कोशिश की, पर ये सभी अड़े रहे। इन्हें भय था कि अगर एक ने भी सकारात्मक रुख दिखाने की कोशिश की तो उसे आंदोलन से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। शुरू से ही यह कहा जा रहा था कि यह किसानों का आंदोलन नहीं है, बल्कि असली किसान तो खेतों में काम कर रहे हैं।

महीनों से आंदोलन पर बैठे किसानों का धैर्य जवाब देने लगा तो इन किसान नेताओं ने गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकालने का मंसूबा बनाया ताकि सरकार की फजीहत कर आंदोलन में नई जान फूंकी जा सके। इस पर भी सरकार और पुलिस इन्हें समझाती रही। कानून व्यवस्था बिगड़ने का अनुमान लग रहा था। इनके एक गुट ने ऐन वक्त पर ऐलान कर दिया था कि वह तो लालकिले और संसद भवन तक जाएंगे और हुआ भी यही। 

यहां पर बता दें कि किसानों ने लिखित आश्वासन भी दिया था कि वह तय रूटों और शर्तों का पालन करेंगे तथा ट्रैक्टर परेड को हिंसक नहीं होने देंगे। हालांकि, जो यात्र सुबह 10 बजे निकाली जानी थी, उसे नौ बजे ही बैरिकेड्स तोड़कर आगे बढ़ा दिया गया और किसान नेता तमाशबीन बने रहे। कहने को तो इसमें किसान नेता थे, लेकिन आंदोलन में सभी किसान नेता कहीं न कहीं अपना हित साध रहे थे।

इसमें से कई नेताओं पर खालिस्तान समर्थकों तथा विपक्षी दलों के नेताओं के इशारे पर काम करने का भी आरोप लगता रहा है। इनमें कई मौकों पर आपसी मतभेद भी खुलकर सामने आए थे। इन सबके चलते कोई एक नेता उभर कर सामने नहीं आ सका। नतीजतन आंदोलन किसानों की जगह अराजक तत्वों और विपक्षी दलों का आंदोलन ज्यादा लग रहा था। अंत में हिंसा के साथ यह सिद्ध भी हो गया ।

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