दिल्ली में पहाड़ सी ऊंचाई वाले ट्रैफिक रिफ्यूज आइलैंड बने मुसीबत, पैदल चलने वालों की बढ़ी परेशानी
राजधानी में पैदल चलने वाले लोगों के लिए न तो मुख्य मार्गो पर फुटपाथ बचे हैं और न ही मानकों के अनुसार जेब्रा क्रासिंग की व्यवस्था है। इस कारण पैदल चलने वाले लोग अक्सर हादसे का शिकार हो जाते हैं।
नई दिल्ली [अरविंद कुमार द्विवेदी]। राजधानी में पैदल चलने वाले लोगों के लिए न तो मुख्य मार्गो पर फुटपाथ बचे हैं और न ही मानकों के अनुसार जेब्रा क्रासिंग की व्यवस्था है। इस कारण पैदल चलने वाले लोग अक्सर हादसे का शिकार हो जाते हैं। अतिक्रमण व सुविधाओं के अभाव में लोग पैदल चलने से ही परहेज करने लगे हैं। लोगों की सुविधा के लिए बनाए गए फुटपाथ पर जहां अतिक्रमण करके दुकानें खोल ली गई हैं, वहीं चौराहों पर बनाए गए ट्रैफिक रिफ्यूज आइलैंड भी अवैध कब्जे व अतिक्रमण के शिकार हो गए हैं।
राजधानी में ये सिर्फ नाम के लिए आइलैंड हैं। एक तो इनकी ऊंचाई पहाड़ सी कर दी गई है, ऊपर से दो-तीन फीट की रेलिंग। इसलिए ये अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। इस कारण सड़क पार करते समय लोगों को समस्या तो होती ही है, साथ ही हादसे का खतरा भी बना रहता है।
मानक से ज्यादा है आइलैंड की ऊंचाई
प्रमुख सड़कों व चौराहों पर यातायात को दो या अधिक दिशाओं में बांटने (सेग्रिगेट करने) के लिए ट्रैफिक रिफ्यूज आइलैंड बनाया जाता है। इसकी ऊंचाई 150 मिलीमीटर यानी करीब आधा फुट होती है। इसे इसलिए बनाया जाता है, ताकि पैदल चलने वालों को चौड़ी सड़कें पार करने के लिए बीच में रुकने का मौका मिल जाए और वे एक ओर की सड़क पार करने के बाद यहां रुककर दूसरी ओर का यातायात रुकने तक इंतजार कर सकें।
राजधानी के ज्यादातर ट्रैफिक रिफ्यूज आइलैंड की ऊंचाई डेढ़ से दो फीट है। ऊपर से इन पर एक-दो फीट की बाउंड्री व रेलिंग भी लगा दी जाती है, जिससे इसकी ऊंचाई और बढ़ जाती है। ज्यादातर आइलैंड पर तो पेड़ लगाकर उनका सुंदरीकरण के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जो बचे हैं उन पर पक्षियों के लिए दाना बेचने वालों ने अतिक्रमण कर लिया है। आउटर रिंग रोड पर कालकाजी मंदिर के सामने, सीआर पार्क, नई दिल्ली में कनाट प्लेस से लेकर राजधानी के लगभग सभी प्रमुख मार्गो और चौराहों का यही हाल है। इससे इनका वास्तविक उद्देश्य विफल साबित हो रहा है।
यू-टर्न की तरह हो रहा जेब्रा क्रासिंग का इस्तेमाल
प्रमुख मार्गो पर पैदल चलने वालों की सुविधा के लिए बनाई गई जेब्रा क्रासिंग पर स्टाप लाइन नहीं बनाए जाने के कारण ये अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रही हैं, वहीं जेब्रा क्रासिंग पर सीमेंट के पोल न लगाए जाने के कारण ये दोपहिया वाहन चालकों के लिए यू-टर्न की तरह इनके इस्तेमाल होने लगते हैं।
राजधानी में लुटियंस इलाके को छोड़कर ज्यादातर इलाकों में जेब्रा क्रासिंग पर पोल नहीं लगाए गए हैं। इस कारण इन मार्गो पर पैदल चलने वाले लोगों के लिए हमेशा हादसे का खतरा बना रहता है, वहीं ज्यादातर फुटपाथों पर भी पोल नहीं लगाए जाते हैं। इस कारण फुटपाथ पर भी लोग बाइक चढ़ाकर चलते हैं। ऐसे में पैदल चलने वालों के चलने के लिए जगह नहीं बचती है।
सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट के चीफ साइंटिस्ट डा. एस. वेलमुरुगन ने बताया कि सुगम यातायात व पैदल चलने वालों की सुरक्षा के लिए मानक के अनुसार फुटपाथ, जेब्रा क्रासिंग व ट्रैफिक आइलैंड बहुत जरूरी हैं, लेकिन सिविक एजेंसियां सड़क बनाते समय इन मानकों का पालन नहीं करती हैं। नियमों और मानकों का पालन करके सड़कें बनाई जाएं तो हादसों की संख्या भी कम की जा सकती है।
ज्यादातर सड़कों की री-लेयरिंग करने के दौरान भी उसकी पुरानी लेयर नहीं हटाई जाती है। इस कारण हर बार नई लेयर पड़ने से सड़क ऊंची होती जाती है। एजेंसियों को चाहिए कि सड़क बनाते समय वे डिवाइडर, ट्रैफिक आइलैंड और फुटपाथ की ऊंचाई में भी तालमेल जरूर बनाएं।