देश की युवा शक्ति को राष्ट्र निर्माण की दिशा में ले जाने के लिए आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम

हमारे गौरवशाली देश की युवा शक्ति को राष्ट्र निर्माण के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ना होगा। उन्हें केवल नौकरी तलाशने वाला नहीं बल्कि नौकरी सृजन करने वाला भी बनना होगा। उद्यमिता की राह पर बढ़ने से युवा शक्ति का सम्यक स्वाभिमानयुक्त और उत्पादक उपयोग हो सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 25 Sep 2021 10:48 AM (IST) Updated:Sat, 25 Sep 2021 10:57 AM (IST)
देश की युवा शक्ति को राष्ट्र निर्माण की दिशा में ले जाने के लिए आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम
स्वप्रेरित रोजगार निर्माण राष्ट्र निर्माण का भी माध्यम बन सकता है...

नई दिल्‍ली, जेएनएन। आज के स्वावलंबी युवा कल के नवप्रवर्तक, निर्माता और नेतृत्वकर्ता हैं। ऐसे युवा किसी भी देश में जनसंख्या के सबसे महत्वपूर्ण और गतिशील वर्ग हैं। इसका कारण यह है कि किसी भी राष्ट्र का विकास भावी पीढ़ी में निहित है। इससे युवा आबादी वाले विकासशील देशों अर्थव्यवस्था में जबरदस्त वृद्धि देखी जा सकती है। वास्तव में यही स्वावलंबन भारत के निर्माण का भी अचूक उपाय है।

आज भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है, जिसकी 62 फीसद से अधिक आबादी कामकाजी आयु वर्ग (15-59 वर्ष) का है और हमारी कुल आबादी का 54 फीसद से अधिक हिस्‍सा 25 वर्ष से कम आयु का है। यह अनुमान लगाया गया है कि 2022 तक भारत में जनसंख्या की औसत आयु 29 वर्ष होगी, जबकि संयुक्‍त राज्य अमेरिका में 40 वर्ष, यूरोप में 46 वर्ष और जापान में 47 वर्ष होगी। इस तरह से देखा जाए तो युवा आबादी की दृष्टि से भारत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में सबसे आगे होगा। परंतु आज का युवा तेजी से बेचैन होता जा रहा है और विषमताओं को दूर करने के लिए संघर्ष कर रहा है। किसी न किसी रूप में चुनौतियां हर समय होती हैं, लेकिन किसी भी विपरीत स्थिति के बाद युवाओं को अपने हालात का मूल्यांकन कर यह तय करना चाहिए कि इनमें से किन चीजों को वे नियंत्रित कर सकते हैं। फिर उन्हीं चीजों पर फोकस करना चाहिए, जिन्हें वे नियंत्रित कर सकते हैं। साथ ही मौजूद संसाधनों और विकल्पों की भी पूरी जानकारी रखनी चाहिए।

उद्यमी बनने का देखें स्‍वप्‍न: भारतीय युवाओं में जिस मनोविज्ञान का निर्माण हुआ है अथवा किया गया है, उसके केंद्र में नौकरी रही है, उद्यम नहीं जबकि वास्तविक राह उद्यमिता के विकास से ही होकर जाती है। इसलिए आज की जरूरत यह है कि हमारा युवा वर्ग एक सफल उद्यमी बनने का मनोविज्ञान विकसित करे या स्वप्न देखे ताकि वे स्वयं रोजगार तलाश न करें, बल्कि रोजगार देने में सक्षम बन सकें। हर साल करोड़ों युवा सर्वोच्च प्रतिभा के साथ कुछ हजार सरकारी नौकरियों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं में अपनी ऊर्जा को व्यय करते हैं। इस महान गौरवशाली राष्ट्र की युवा शक्ति को राष्ट्र निर्माण करने के लिए आत्मनिर्भर बनना होगा। स्व-रोजगार से ही युवा शक्ति का सम्यक, स्वाभिमानी, उत्पादक उपयोग हो सकता है। कितनी भी सरकारी अथवा निजी नौकरियों का निर्माण करने का उद्यम शासन के केंद्रीकृत प्रयासों द्वारा किया जाए, तब भी यह व्यावहारिक रूप से संभव ही नहीं है कि किसी देश की 60 फीसद जनसंख्या नौकरी करे। स्वप्रेरित रोजगार निर्माण ही राष्ट्रनिर्माण का माध्यम बन सकता है।

स्वावलंबन है हमारी पहचान: 'एक के लिए सब और सब के लिए एक' की भावना हमें विरासत में मिली है। आत्मनिर्भर होना, स्वावलंबी होना और स्वावलंबन के आधार पर अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान को जिंदा रखना, यह हम भारतीय युवाओं की पहचान रही है। हमारा देश सांस्कृतिक मूल्यों और मानवता के आधार पर चलता है, न कि व्यापारिक मूल्यों के आधार पर। अतीत से भारत में 'शुभ-लाभ' की परंपरा चली आ रही है अर्थात वह लाभ जो शुभ हो जबकि उदारीकरण के दौर में अन्य देश हर चीज में शुद्ध लाभ (नेट प्राफिट) पर फोकस करते हैं। पूरी दुनिया ज्ञान बांटने के बजाय उसका पेटेंट करने में विश्‍वास रखती है। वहीं, हम भारतीय पेटेंट की कल्पना पर जोर देने के बजाय अपना ज्ञान पूरी दुनिया में बांटने में विश्‍वास रखते हैं।

कौशल राजधानी की ओर कदम: अपनी युवा आबादी के साथ भारत दुनिया की कौशल राजधानी बन सकता है और बनना भी चाहिए। एक अत्यधिक कुशल और उत्पादक कार्यबल विकसित करने की दिशा में सबसे बड़ा कदम नई शिक्षा नीति (एनईपी) की घोषणा है, जिसका उद्देश्य शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना है। भारत सरकार द्वारा जिस 'मेक इन इंडिया', 'स्किल इंडिया' व ‘वोकल फार लोकल' जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत हुई है, उससे देश में निवेश, निर्माण तथा नये रोजगार सृजन को बल मिला है।

मेक इन इंडिया कार्यक्रम की बदौलत भारत 20 साल में पहली बार एफडीआइ हासिल करने के मामले में चीन से आगे निकल गया। वर्ष 2018 में भारत में 38 अरब डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ, जबकि चीन सिर्फ 32 अरब डालर ही जुटा सका। अप्रैल 2014 से मार्च 2019 तक भारत में एफडीआइ में लगभग 50 फीसद की वृद्धि हुई। उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के इरादे से स्टार्टअप इंडिया योजना शुरू की है। देश में एक हजार करोड़ रुपये के स्टार्टअप इंडिया सीड फंड की शुरुआत की गई है। अटल इन्क्यूबेशन सेंटर की स्थापना स्टार्टअप्स के लिए संजीवनी के समान है। साथ ही, स्वरोजगार व नये बिजनेस माडल के स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए मुद्रा लोन योजना प्रारंभ की गई है, जिसमें युवा दस लाख रुपये तक का लोन बहुत आसानी से ले सकते हैं। इस योजना से लगभग 3.5 करोड़ नये उद्यमी बने हैं।

स्वावलंबी युवाओं की ताकत: स्वावलंबी युवा किसी भी मुद्दे और चुनौतियों का सामना करने की क्षमता रखते हैं। राष्ट्र निर्माण में स्वावलंबी युवाओं की भूमिका अहम है। उनमें देश को बदलने की ताकत है। भारत को आत्मनिर्भर बनाने और देश के विकास के लिए काम करना युवाओं की जिम्मेदारी है। अगले 25-26 साल देश के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि भारत 2047 में आजादी के 100 साल पूरे कर लेगा। इसलिए देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सभी को अपनी भूमिका निर्धारित करनी होगी।

करियर के कई नये विकल्‍प: करियर के लिहाज से कई क्षेत्रों में नये विकल्प सामने आए हैं, जैसे-बिजनेस माडल की पुनर्खोज, ई-एजुकेशन, हेल्थकेयर मैनेजमेंट, फार्मास्यूटिकल्स सेक्‍टर, ई-कामर्स, डाटा साइंस, डिजिटल मार्केटिंग, कृषि तकनीक, रिस्क इश्‍योरेंस, यूट्यूबर, एनजीओ, सेवा क्षेत्र व आर्गेनिक फार्मिंग आदि। इसलिए युवाओं को स्वरोजगार के बारे में सोचना होगा।

मल्टी स्किल पर दें ज्‍यादा ध्यान: नई दिल्ली के जेएनयू के अटल स्कूल आफ मैनेजमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डा. ब्रजेश कुमार तिवारी ने बताया कि अभी के समय में मल्‍टी स्किल की जरूरत है। इसीलिए स्किल, रीस्किल और फ्यूचर स्किल पर फोकस करें और अपनी सीखने की ललक, विश्‍लेषण क्षमता, टेक्निकल व डिजिटल स्किल्स, प्राब्‍लम साल्विंग स्किल्स और इमोशनल इंटेलिजेंस जैसी स्किल्स को बढ़ाने का भरपूर प्रयास करें। स्किल का अर्थ एक प्रकार का नया हुनर सीखना है। जैसे कि आपने लकड़ी के एक टुकड़े से कुर्सी बनाना सीखा, तो यह आपका हुनर हुआ। आपने लकड़ी के उस टुकड़े की कीमत भी बढ़ा दी यानी वैल्यू एडिशन भी किया। स्किल व्यक्ति के काम की ही नहीं, उनकी प्रतिभा एवं प्रभाव को भी बेहतर बना देता है। हर छोटी-बड़ी स्किल आत्मनिर्भर भारत बनने में अवश्य सहायक होगी। भारत अपने भविष्य के उस सुनहरे दौर के करीब है, जहां उसकी अर्थव्यवस्था नई ऊचाइयों को छू सकती है।

कोविड-19 ने बहुत सारे जख्म दिए हैं और सबकुछ अनिश्चित बना दिया है, पर छोटी-छोटी असफलताएं ही आगे चलकर बड़ी सफलता का आधार बनती हैं। अगर सफलता मंजिल है, तो असफलता वह रास्ता है जो हमें इस मंजिल तक पहुंचाता है। इसलिए युवा जितना अधिक निराशा के विरुद्ध लड़ेंगे, उतना ही प्रकाश फैलता चला जाएगा। तब मनुष्य का मन निराशा के बजाय कुछ करने में बीतने लगता है। इससे एक तो बुरा समय बीत जाता है और दूसरे कर्म का कुछ फल सामने आने लगता है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्‍त की पंक्तियां 'नर हो, न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो।' युवाओं को सबल व स्वावलंबी बनाने की प्रेरणा देती हैं। बेशक प्रयास करने पर असफलता भी मिलती है, लेकिन हार से ही जीतने का रास्ता भी मिलता है। स्वावलंबी युवा देश और समाज को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का सामर्थ्य रखते हैं। ये युवा देश का वर्तमान हैं, तो अतीत और भविष्य के सेतु भी हैं।

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