योग धन है पायो : पौराणिक युग में दिल्ली से शुरू हुई थी योग की शिक्षा, भगवान शिव को माना जाता है जनक

योग जितना गुणकारी है उसका आध्यात्मिक इतिहास उतना ही रोचक है। पौराणिक इतिहासकार मानते हैं कि योग और प्राकृतिक चिकित्सा के जनक भगवान शिव थे। जानते हैं शिव ने सबसे पहले योग का ज्ञान किसे दिया और कैसे ये विद्या इंसानों तक पहुंची?

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 19 Jun 2021 01:58 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jun 2021 08:59 AM (IST)
योग धन है पायो : पौराणिक युग में दिल्ली से शुरू हुई थी योग की शिक्षा, भगवान शिव को माना जाता है जनक
आखिर दिल्ली से ही क्यों शुरू हुई योग की शिक्षा?

नई दिल्ली [प्रियंका दुबे मेहता]। जिससे सांसों में गूंजती सिर्फ खामोशी है। वो योग ही तो है जहां मन की चरम सीमा..चित्त की अनुभूति है। मन चंचलता से उन्मुक्त है। निरोगी काया है..पुष्पित पल्लवित होती मन की छाया है। वो योग ही तो है जो चित्त की वृत्तियों को शून्य तक ले जाता है। वैसे भी धरोहर की धनी दिल्ली तो योग की पौराणिकता से जुड़ी है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने इसका आत्मबोध और गहराई से कराया है। इसीलिए 21 जून अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर योग के प्रभाव, उसके संस्थानों, महामारी में योग के योगदान से रूबरू...

पहले लोग प्राकृतिक चिकित्सा पर निर्भर थे। नियमित व्यायाम जीवनशैली का एक अहम अंग हुआ करता था। समय के साथ चीजें बदली दिनचर्या में बदलाव आए और तनाव का स्तर बढ़ने लगा। इस तनाव को कम करने के लिए योग से बेहतर कुछ नहीं हो सकता है। यह हम नहीं, हमारे वेद और उपनिषद बताते हैं। जिन चीजों पर शोध करके हजारों वर्ष पहले ऋषि-महर्ष चले गए, उन चीजों को हम तब तक नहीं माने जब तक इसका प्रभाव नहीं देखा। अब जबकि विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया तो लोगों में जागरूकता आई। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आइआइटी और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स इस बात की मिसाल हैं। आज योग आधुनिक चिकित्सा का हिस्सा बन रहा है। विज्ञान की सीमा से आगे योग है। योग पूर्ण रूप से चिकित्सा न मानें लेकिन सहयोगी चिकित्सा पद्धति के रूप में इसे स्वीकारा जा चुका है।

खारी बावली का रूफ टाप विदेशी सैलानियों को यह जगह योग और प्राकृतिक चिकित्सा के लिए भी अनुकूल लगती है। सौजन्य : सिटी वाक्स

योग कई ऐसे रोगों में भी लाभदायक है जिनका चिकित्सा विज्ञान में इलाज संभव नहीं हो सकता है। एक साधारण सी बीमारी लेते हैं धरण। सेंट्रल काउंसिल फार रिसर्च इन योग एंड नेचुरोपैथी (सीसीआरवाइएन) की योग चिकित्सक और एम्स और आइआइटी जैसे संस्थानों में शोधकर्ता रेनू बताती हैं कि धरण का इलाज केवल योग में है। हमारे शरीर में 72 हजार नाड़ियां हैं और उनका संगम है नाभि। जब हम कोई भारी चीज उठा लेते हैं तो नाड़ी डिग जाती है। योग के चार मुख्य आसनों से नाभि की इस अवस्था को ठीक किया जा सकता है। एक ऐसा समय था जब योग को बहुत कीमती और गुप्त समझा जाता था। अब यह आधुनिक चिकित्सा का हिस्सा बन गया है तो यह सबके लिए उपलब्ध है। दवाइयों का असर शरीर पर हो रहा है लेकिन मन का क्या, व्यवहार का क्या। यहां योग काम करता है। बीमारी से उबरने के बाद शरीर, मन और व्यवहार में संतुलन स्थापित करने का काम योग करता है। महामारी के बाद अब चिकित्सक भी इसकी अनुशंसा कर रहे हैं।

कंसंट्रेटर तो शरीर में ही लगा है: महामारी के दौर में प्राणायाम ने लोगों को एक तरह से नवजीवन देने का काम किया है। सीसीआरवाइएन के निदेशक डा. राघवेंद्र का कहना है कि शोध में पाया गया है कि योग आक्सीजन का स्तर बढ़ाता है। उन्होंने कोविड मरीजों पर शोध के दौरान पाया कि योग करने वाले मरीजों को आक्सीजन सपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ी और बहुत ज्यादा गंभीर अवस्था में यह मरीज नहीं पहुंचे। योग वाले 4.2 प्रतिशत को ही आक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ी जबकि योग न करने वाले मरीजों में से 14 प्रतिशत लोगों को आक्सीजन की आवश्यकता हुई। डा. राघवेंद्र कहते हैं हमारे शरीर में आक्सीजन कंसंट्रेटर है, बस उसे सक्रिय करने की जरूरत है, प्राणायाम के जरिए फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। उनका कहना है कि मास्क और शारीरिक दूरी के अलावा हमें ब्रीदिंग अभियान भी शुरू करने की जरूरत है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम, भ्रामरी, यौगिक सूक्ष्म प्राणायाम आदि से श्वसन तंत्र को मजबूती मिलती है।

ऐतिहासिक मोराजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान। जागरण

जियो और जीवन दो..की जगी उम्मीद: पश्चिमी दिल्ली के रोहिणी के सेक्टर तीन स्थित भारतीय योग एवं अनुसंधान संस्थान की शुरुआत 10 अप्रैल 1967 में हुई। इस योग संस्थान से जुड़े तिलक नगर निवासी भारत भूषण का कहना है कि जब 1960 में योग को विदेश में मान्यता मिलने लगी तो इसके प्रति भारतीय भी आकर्षति हुए। इससे पहले वे इसे जीवनशैली के अंग के रूप में सोच भी नहीं पाते थे। उस दौर में सिविल लाइंस कमला नेहरू पार्क निवासी प्रकाश लाल ने देखा कि योग का व्यवसायीकरण शुरू हो रहा है और कमजोर तबके के लोग इससे नहीं जुड़ पा रहे हैं। तब उन्होंने ऐसा संस्थान बनाने के बारे में सोचा जो योग का निश्शुल्क प्रशिक्षण दे। ‘जियो और जीवन दो’ के नारे पर चलने वाले इस संस्थान से जुड़ी चार हजार कक्षाएं हैं जो पार्को में चलती हैं।

बापू की राह पर बढ़े कदम: गांधी जी द्वारा योग और प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा इलाज को आधार बनाते हुए इस बापू नेचर क्योर अस्पताल एवं योग आश्रम की स्थापना 1984 में हुई थी। इसकी लोकप्रियता को देखते हुए कई व्यापक बदलाव किए गए। 2017 में यहां पर सात हजार वर्ग फीट एरिया में मेडिस्पा बनाया गया। यहां देश-दुनिया से लोग इलाज और मानसिक सुकून के लिए आते हैं।

बापू नेचर क्योर अस्पताल एवं योग आश्रम

योग दिल्ली और पौराणिक मान्यता: पौराणिक इतिहासकार मनीष के गुप्ता ने बताया कि योग भारत की देन है और हमारे सनातन धर्म का हिस्सा है। योग और प्राकृतिक चिकित्सा के जनक भगवान शिव माने जाते हैं। सीसीआरवाइएन से सेवानिवृत शोधकर्ता डा. राजीव रस्तोगी ने ‘योग, इट्स ओरिजिन, हिस्ट्री एंड डेवलपमेंट’ में इस बात का जिक्र भी मिलता है। पौराणिक इतिहासकार मनीष के गुप्ता का कहना है कि शिव ने कई ऋषि-मुनियों को योग की शिक्षा दी। उन्होंने ही शांतिपूर्ण साधना और अध्यात्म के बारे में सब को बताया भगवान शिव कैलाश पर्वत पर एकांत में जिस तरीके से योग साधना किया करते थे संभवत: उनकी शक्ति और ऊर्जा का मूल कारण यही था। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि भगवान शिव ने इसका सबसे पहला ज्ञान पार्वती को विवाह के पश्चात दिया। इसके बाद योग को गांव-गांव तक पहुंचाने का श्रेय भगवान परशुराम को ही जाता है। ज्ञातव्य है कि भगवान परशुराम ने अपनी सारी विद्याएं, योग एवं विभिन्न प्रकार की शिक्षाएं केवल ब्राह्मणों को ही दीं। इसके कुछ अपवाद भी हैं, जैसे भीष्म और कर्ण। यह सभी शिक्षाएं उन्होंने तत्कालीन राजधानी हस्तिनापुर में दीं जो कि आज दिल्ली और दिल्ली के निकट के स्थान हैं। इस तरीके से हम यह समझ सकते हैं कि संभवत: आधिकारिक रूप से योग की शिक्षाओं का सबसे बड़ा केंद्र भारतवर्ष में अगर कोई है तो दिल्ली और दिल्ली के नजदीक के क्षेत्र ही हैं।

योगाश्रम से राष्ट्रीय योग संस्थान तक का सफर: डा. ईश्वर वी बस्वारेड्डी ने बताया कि अब बात करते हैं दिल्ली में योग की शुरुआत की। यहां योग की शुरुआत मोरारजी देसाई योग संस्थान से हुई। इस संस्थान की स्थापना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी यहां पर योग सीखने लगीं। दिल्ली में विश्व यतन योग संस्थान 1960 में धीरेंद्र ब्रrाचारी द्वारा बनाया गया। पहले यह केवल एक योग आश्रम हुआ करता था। 1976 में स्वास्थ्य मंत्रलय ने इसे सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फार योग बना दिया। 1979 में सेंट्रल काउंसिल फार रिसर्च इन योग एंड नेचुरोपैथी शुरू हुआ था। फिर यह 1998 में मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान बना। इसके तहत कई केंद्र चलते हैं जिसमें से राजघाट और लाजपत नगर में योग प्रशिक्षण दिया जाता है। इस संस्थान में देश-विदेश के नेता-अभिनेता आते रहे हैं रामदेव, श्रीश्री रविशंकर, जग्गी वासुदेव जैसे योग गुरुओं के अलावा अन्य प्रसिद्ध हस्तियां यहां आ चुकी हैं। पहले धीरेंद्र ब्रrाचारी ने जम्मू में अपना योग आश्रम बनाया था।

1980 में योग को लेकर बड़ी जागरूकता या क्रांति कही जाए, तब आई जब दिल्ली सरकार में केंद्रीय विद्यालयों में 200 से ज्यादा योग शिक्षकों की नियुक्ति हुई। शुरुआत में यह संस्थान छोटा सा प्रशिक्षण केंद्र और 100 बेड का एक अस्पताल था। संस्थान के निदेशक डा. ईश्वर वी बस्वा रेड्डी का कहना है कि यहां पर सेलिब्रिटी के साथ-साथ आम लोगों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इसके बाद ओपीडी और योग थेरेपी सत्र चलते हैं। कई अस्पतालों में भी संस्थान के केंद्र चलाए जा रहे हैं। महामारी के दौर में कोविड की रोकथाम के लिए, कोविड मरीजों के लिए, फ्रंट लाइन वर्कर और रिहैबिलिटेशन के लिए योग कार्यक्रमों के अलावा, कोविड सेंटर में जाकर योग सिखा रहे हैं। इस संस्थान के निदेशक के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर पहली बार 2015 में राजपथ में हुए योग सम्मेलन में वे और उनके विद्यार्थी मास्टर आफ सेरेमनी थे। वह अनुभव याद करते हुए बताते हैं कि जब भाषण पूरा करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग करना शुरू किया तो वह पल अविस्मरणीय बन गया।

अब करें बाडी हालीडे भी: डा. सचिन बंसल ने बताया कि आज योग और प्राकृतिक की साख इतनी बढ़ गई है कि विदेशी सैलानी भी दिल्ली में ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण की ही तरह यहां की प्राकृतिक चिकित्सा के लिए भी उत्सुक रहते हैं। पर्यटकों को दिल्ली दर्शन करवाने वाले दिल्ली सिटी वाक्स के संचालक डा. सचिन बंसल का कहना है कि योग वैसे तो वेदों के समय से अस्तित्व में है लेकिन लोग अब इसके प्रति आकर्षति हो रहे हैं। केवल स्वास्थ्य ही नहीं, पर्यटन के क्षेत्र में भी योग और नेचुरोपैथी की तरफ लोगों का रुझान बढ़ रहा है। अब लोग दिल्ली दर्शन के अलावा योग-रिट्रीट, वेलनेस और नेचुरोपैथी इलाज के लिए भी यहां आने लगे हैं। वे थेरेपी टूर के अलावा हेल्थ वाक्स के तहत स्टीम बाथ, मड थेरेपी, कलर थेरेपी, योग, एक्यूप्रेशर और डाइट थेरेपी की मांग करते हैं। सचिन बाडी हालीडे बैनर के तले लोगों को योग और प्राकृतिक चिकित्सा के सत्र करवाने के लिए स्वतंत्र रूप से काम करते हैं।

होता गया विस्तार: जब भारत सरकार ने चिकित्सा के क्षेत्र में एक चरणबद्ध शोध की जरूरत महसूस की तो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रलय द्वारा 1969 में सेंट्रल काउंसिल फार रिसर्च इन इंडियन मेडिसिन एंड होम्योपैथी की स्थापना की गई। 1978 तक यहां पर आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा पर कई तरह के शोध हुए हैं। इस समय तक स्वास्थ्य मंत्रलय प्राकृतिक चिकित्सा की देखरेख करता था। 1978 में यह परिषद भंग हुई और चिकित्सा के सभी क्षेत्रों में एक स्वतंत्र शोध परिषद का गठन हुआ। अब जनकपुरी स्थित यह संस्थान आयुष मंत्रलय के तहत काम कर रहा है।

योगीराज ने इसे ध्येय बना लिया: फरीदाबाद के ग्राम पाली ओम योग संस्थान की स्थापना 1998 में योगीराज ओमप्रकाश द्वारा की गई थी। वर्ष 1987 से योग प्रतियोगिताओं में राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले ओमप्रकाश ने बाद में योग के प्रचार-प्रसार को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया और जगह-जगह शिविर लगाकर लोगों को योग से जोड़ना शुरू कर दिया। ओम योग संस्थान की शाखाएं अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा आदि में भी हैं। वे कहते हैं कि लोगों को योग का महत्व समझाने के लिए पहले जगह-जगह शिविर लगाया। फिर उन्हें बताया गया कि योग से शरीर स्वस्थ रहता है, मन प्रसन्न होता है, आत्मा उन्नत होती है और भावनाएं अनुकूल होती हैं।

खारी बावली का रूफ टाप विदेशी सैलानियों को यह जगह योग और प्राकृतिक चिकित्सा के लिए भी अनुकूल लगती है। सौजन्य : सिटी वाक्स

ऐतिहासिक मोराजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान। जागरण

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