'भुतहा' के रूप में चर्चित मालचा महल को अपने कब्जे में लेने के लिए तैयार एएसआइ

Malcha Mahal भारत सरकार ने इसे 1985 में अवध के नवाब के वारिसों को रहने के लिए दे दिया था। इसमें रह रहे इस परिवार के अंतिम व्यक्ति की भी मौत हो चुकी है। यह महल करीब तीन साल से खाली है।

By JP YadavEdited By: Publish:Mon, 26 Oct 2020 01:48 PM (IST) Updated:Tue, 27 Oct 2020 07:28 AM (IST)
'भुतहा' के रूप में चर्चित मालचा महल को अपने कब्जे में लेने के लिए तैयार एएसआइ
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मालचा महल को कब्जे में लेने के लिए कोरोना काल के बाद प्रक्रिया शुरू करेगा।

नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। फिरोजशाह तुगलक द्वारा करीब साढ़े 6 सौ साल पहले शिकारगार के रूप में चाणक्यपुरी के पास जंगल में बने मालचा महल को अपने कब्जे में लेने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) अब कोरोना काल के बाद प्रक्रिया शुरू करेगा। भारत सरकार ने इसे 1985 में अवध के नवाब के वारिसों को रहने के लिए दे दिया था। इसमें रह रहे इस परिवार के अंतिम व्यक्ति की भी मौत हो चुकी है। यह महल करीब तीन साल से खाली है।

क्या है इतिहास

चाणक्यपुरी में सरदार पटेल मार्ग पर जंगल में करीब डेढ़ किलोमीटर अंदर यह स्मारक स्थित है। इसे मालचा महल या मालचा विसदरी कहा जाता है। इसे फिरोजशाह तुगलक ने (1351-88) बनवाया था। तुगलक द्वारा बनवाई गई यह एक शिकारगाह है। इसमें तीन मुख्य कक्ष हैं। बीच वाला कक्ष बड़ा है। यह लगभग चौकोर है। तुगलक शिकार पर निकलने के समय इसका उपयोग करता था।

बड़ी दिलचस्प है महल को लेकर कहानी

इस महल को लेकर कहानी कुछ दिलचस्प है। अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को 1856 में अंग्रेजों ने सत्ता से बेदखल कर दिया था। उन्हें कोलकाता जेल में डाल दिया गया। जहां उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 26 साल गुजारे। जब 1947 में देश को आजादी मिली तब तक वाजिद अली शाह का खानदान इधर-उधर बिखर चुका था। बेगम विलायत महल 1970 केद करीब लोगों के सामने आईं। उनका दावा था कि वो अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह की परपोती हैं। वह भारत सरकार से उन तमाम जायदाद के बदले मुआवजे की मांग कर रहीं थीं, जिसे भारत सरकार ने उनके दादा-परदादा से ज़ब्त कर लिया था। जब विलायत महल की मांगों पर कोई सुनवाई नहीं हुई तो एक दिन अचानक उन्होंने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के वीआइपी लाउंज को अपना घर बना लिया। 10 साल तक उन्हें वहां से हटाने की नाकाम कोशिशें होती रहीं। आख़िरकार सरकार ने उन्हें मालचा महल दे दिया।

विलायत महल ने सरकार के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और बेटे प्रिंस अली रजा और बेटी सकीना महल के साथ मालचा महल में आ गईं। वो अपने साथ आठ कुत्तों को भी लेकर आईं थीं। बस ये नाम का महल था, न तो इसमें बिजली थी, न पानी और न ही खिड़की-दरवाजे। जंगली जानवरों को रोकने के लिए इस महल में चारों ओर से लोहे की जालियां लगी थीं। बेगम विलायत महल और प्रिंस अली रजा के जीते जी यहां किसी को क़दम रखने की इजाज़त नहीं थी। वो आम लोगों के मिलना पसंद नहीं करते थे। न तो कोई वहां आता था और न ही वो कहीं जाते थे। महल के बाहर मोटे अक्षरों में लिखा था कि अनधिकृत प्रवेश करने पर गोली मार दी जाएगी।

मालचा महल में आने के तकरीबन 10 साल बाद 62 साल की उम्र में बेगम विलायत महल ने आत्महत्या कर ली थी। कुछ साल पहले बेगम सकीना महल भी गुजर गईं। प्रिंस अली रजा कई साल से बेहद गरीबी में अकेले रहते थे। नवंबर 2017 में उनका भी देहांत हो गया। कहा जाता है कि भूख से उनकी माैत हो गई। माैत के बारे में भी करीब एक माह बाद पता चल सका। रजा की मौत के बाद महल का निरीक्षण करने गए एएसआइ की टीम के सदस्य रामसिंह बताते हैं कि वहां के हालात देखने से ऐसा लग रहा था कि वहां लंबे समय से भोजन नहीं बना।

बता दें कि इस महल तक पहुंचना कठिन है। जंगल में करीब डेढ़ किलोमीटर सड़क के बाद एक संकरा रास्ता ऊंचाई की ओर जाता है। जिस पर करीब 30 मीटर आगे जाने पर एक खंडहर दिखाई देता है। अब यह खंडहर चमगादड़ों से भरा पड़ा है। नवाब के परिवार के लोगों का टूटा फूटा सामान यहां बिखरा पड़ा है। कुछ लोग इसे भुतहा महल कहते हैं। वे इसे इसी नजरिए देखते हैं।

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