अदालत ने कहा लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को मिले अंतरिम गुजारा भत्ता, पढ़िए पूरी कहानी

शादी करने से जुड़े साक्ष्य से लेकर बच्चे के स्कूल और बैंक से जुड़े प्रारंभिक साक्ष्यों से प्रथम ²ष्टया स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता महिला के साथ छह साल से लिव-इन रिलेशन में रह रहा था। दोनों के बीच पति-पत्नी का रिश्ता है या नहीं।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Wed, 23 Jun 2021 02:21 PM (IST) Updated:Wed, 23 Jun 2021 02:21 PM (IST)
अदालत ने कहा लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को मिले अंतरिम गुजारा भत्ता, पढ़िए पूरी कहानी
अंतिम निर्णय होने तक लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को अंतरिम गुजारा भत्ता दे अपीलकर्ता

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। शादी करने से जुड़े साक्ष्य से लेकर बच्चे के स्कूल और बैंक से जुड़े प्रारंभिक साक्ष्यों से प्रथम ²ष्टया स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता महिला के साथ छह साल से लिव-इन रिलेशन में रह रहा था। दोनों के बीच पति-पत्नी का रिश्ता है या नहीं यह पहलू निचली अदालत में सुनवाई के दौरान जांच का विषय है। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए दस हजार रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता देने के संबंध में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए अपील याचिका खारिज कर दी।

याचिकाकर्ता ने महिला द्वारा लिव-इन रिलेशन में रहने के संबंध में पेश किए गए दस्तावेजों को फर्जी बताया। हालांकि, पीठ ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह सभी साक्ष्य के आधार पर यह निर्णय करें कि वास्तव में दोनों पति-पत्नी हैं या नहीं। क्या पुरुष ने महिला को धोखा दिया है या महिला ने एक शादी करने के बाद दूसरी शादी की है। यह सब वह साक्ष्यों के आधार पर एक साल के अंदर निर्णय करें। पीठ ने कहा कि अगर साक्ष्यों के आधार पर यह फैसला होता है कि महिला ने गलत तरीके से अंतरिम गुजारा भत्ता लिया है तो फैसला होने के समय तक गुजारा भत्ता के रूप में ली गई धनराशि को ब्याज के साथ वापस देना होगा।

अदालत ने कहा कि ब्याज की दर मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा तय किया जायेगा। न्यायमूर्ति ने यह फैसला पुरुष के अपील पर सुनवाई करते हुए दी है और उसकी अपील खारिज कर दी। याचिकाकर्ता प्रवीण टंडन ने दस हजार रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता देने के निचली अदालत के 26 अक्टूबर 2020 के आदेश को चुनौती दी थी। प्रवीण टंडन ने कहा कि जब महिला को पता था कि उसकी शादी हो चुकी है तो वह कोई भी राहत मांगने की हकदार नहीं है।

उसने यह भी दलील दी कि जब तक मामला विचाराधीन है निचली अदालत को अंतरिम गुजारा भत्ता पर फैसला नहीं देना चाहिए। यहां तक उसने महिला द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों को फर्जी करार दिया। वहीं, महिला ने दावा किया कि वह याचिकाकर्ता के साथ छह साल से रह रही है और इसका प्रमाण पत्र भी उसने पेश किया। इतना ही नहीं स्कूल के प्रमाण पत्र में बच्चे के पिता के रूप में अपीलकर्ता का नाम है और बैंक में महिला व अपीलकर्ता का संयुक्त खाता भी है।

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