पिता का सपना था डाॅक्टर बनू, सच्ची लगन एवं मेहनत से ही मिली सफलताः डाॅ अरुण पांडेय
सफदरजंग अस्पताल के हड्डी एवं जोड़ रोग विभाग में कार्यरत डा अरुण पांडेय फादर्स डे के दिन अपने पिता रमेश चंद्र पांडेय को विशेष रूप से याद करते हैं। वह कहते हैं कि पिताजी की ही देन है जो मैं डाक्टर बनकर दिल्ली तक पहुंच सका।
नई दिल्ली [राहुल चौहान]। सफदरजंग अस्पताल के हड्डी एवं जोड़ रोग विभाग में कार्यरत डा अरुण पांडेय फादर्स डे के दिन अपने पिता रमेश चंद्र पांडेय को विशेष रूप से याद करते हैं। वह कहते हैं कि पिताजी की ही देन है जो मैं डाक्टर बनकर दिल्ली तक पहुंच सका। उत्तर प्रदेश के एक गांव में मामूली किसान होने के बावजूद पिता ने तीन भाई- बहनों को पढ़ाया।
कम उम्र में ही हुआ था पोलियो
इसके साथ ही उन्हें डाक्टर बनाने और पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए जीतोड़ मेहनत की। पिता के पास मात्र पांच बीघा जमीन थी। तब भी बच्चों के लिए सपने बड़े देखे। डा पांडेय बताते हैं जब वह पैदा हुए तो पूरी तरह से स्वस्थ थे, लेकिन ढाई साल की उम्र में उन्हें पोलियो हो गया, जिससे एक पैर से वह अपाहिज हो गए। इलाज के लिए उनके पिता आस-पास के अस्पतालों में लेकर भागते रहते थे।
पिता ने सोच लिया मुझे डाॅक्टर बनाएंगे
उसी दौरान पिता ने सोच लिया कि मुझे डाक्टर बनाएंगे। अपने तीन भाई बहनों में डा अरुण सबसे छोटे हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक छोटे से गांव लीलकहर गांव में किसान परिवार में हुआ है। प्रारंभिक पढ़ाई गांव में ही हुई। उसके बाद नवोदय विद्यालय में प्रवेश परीक्षा पास कर दाखिला हुआ।
पिताजी का सपना हुआ पूरा
बारहवीं के बाद पिताजी ने एमबीबीएस के लिए कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कालेज में दाखिला कराया। फिर झांसी से एमएस करके दिल्ली एम्स में सीनियर रेजिडेंट डाक्टर के रूप में चयन हुआ तो पिताजी का सपना पूरा हो गया। एम्स के बाद फिर सफदरजंग में भी चयन हुआ।