बढ़ने दें पसंद की राह पर, सफलता के साथ खुशियों का खुलेगा द्वार
सफलता के लिए जरूरी है कि आप अपने बच्चों को उसकी पसंद कार्य करने दें। इससे वह आगे भी बढ़ेगा और खुशियों का रास्ता खुलता जाएगा। तो आइए जानें एक ऐसी स्टोरी जहां मनपसंद कुछ ना मिलने पर छात्र तनाव में रहने लगा।
डा. अनिल सेठी। कुछ वर्ष पहले की बात है। एक परिवार अपने इकलौते बेटे को लेकर मेरे पास आया जो कि आइआइटी प्रथम वर्ष का छात्र था। उनकी शिकायत थी कि उनका बेटा गुमसुम सा रहने लगा है और बात भी नहीं करता है। खाना भी न के बराबर खाता है। वैसे तो देखने में युवक स्वस्थ लग रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर
खुशी नहीं थी। जब मैंने उसके साथ काउंसिलिंग शुरू की तो पता चला कि उसका बचपन बहुत ही खुशियों भरा था। दादा-दादी का प्यार उसको बहुत मिला, क्योंकि पिताजी अपने व्यवसाय के कामों में व्यस्त रहते थे। मम्मी का
ज्यादातर समय घर के कामों में निकलता था। वह पढ़ने में बहुत अच्छा था। उसने अपना लक्ष्य आइआइटी से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करने का बना रखा था। लेकिन जब पूरी मेहनत करके उसने आइआइटी का एंट्रेंस पास किया, तो रैंक पर्याप्त न होने के कारण उसे कंप्यूटर साइंस में एडमिशन नहीं मिला।
परिवार के जोर देने पर जो भी स्ट्रीम उसको आफर हुई, उसी में एडमिशन ले लिया। बस यही से उस बच्चे की परेशानियां शुरू हो गईं। उसको हास्टल में जाकर रहना पड़ा और पढ़ाई मन-मुताबिक न होने से वह तनाव में रहने लगा। नये लोगों के बीच में उसे अपनी बात करने में भी परेशानी हो रही थी।
इसके अलावा, कैंटीन का खाना भी उसके लिए एक समस्या थी, क्योंकि उसको मसाले और तेल युक्त खाना खाने की आदत नहीं थी। इन सब परिस्थितियों के चलते इंटरनलटेस्ट में उसके मार्क्स बहुत काम आये। बड़ी मुश्किल से पास हुआ और इससे उसका आत्मविश्वास टूट गया। इसे देखकर माता-पिता परेशान हुए और फैमिली डाक्टर से सलाह ली, तो उन्होंने उसे किसी मनोचिकित्सक को दिखाने की बात कह दी। इससे पैरेंट्स और भी चिंता में पड़ गए और उसे मेरे पास ले आये। बच्चे से बातचीत में पता चला कि बेटा अपने माता-पिता से खुलकर बात नहीं
कर पा रहा था। इसकी वजह से कई बार उसके मन में आत्महत्या तक का विचार आया।
आत्मविश्वास से सब संभव
मैंने सबसे पहले तो उसके आत्मविश्वास पर काम किया कि आपमें कोई कमी नहीं है। आपका पढ़ाई का ट्रैक रिकार्ड इतना जबरदस्त है कि आपको अपनी काबिलियत पर शक करने की जरूरत नहीं है। मैंने उदाहरण दिया कि जिस प्रकार कोई क्रिकेटर शतक बनाता है, तो कभी शून्य पर भी आउट हो जाता है। इससे वह खराब क्रिकेटर नहीं हो जाता। इससे बच्चे में कुछ सकारात्मकता आई। इसके अलावा, एक दिन मैंने उसके माता-पिता को भी अलग से बुलाया और उनसे पूछा कि आपके लिए बेटे की खुशी ज्यादा महत्वपूर्ण है या आइआइटी।
इसके बाद मैंने उनको सारी परिस्थिति समझाई। वह बहुत ही सदमे में आ गये कि उनका बेटा कितने स्ट्रेस में है और साथ ही उनको यह भी समझ में आ गया कि अपने बच्चों के साथ कम्युनिकेशन होना कितना महत्वपूर्ण
है। यह परिस्थिति आज ज्यादातर घरों में है। इसलिए अगर आपके घर में भी बच्चे माता-पिता से खुल कर दिल की बात नहीं कर रहे, तो इसे आप भयावह परिस्थिति का संकेत समझें। इस वार्तालाप के कुछ दिनों के बाद तीनों फिर से मिलने आए और बताया कि बेटे को किसी प्राइवेट कालेज में कंप्यूटर साइंस में दाखिला मिल गया है और वे सभी अब खुश हैं।