संस्कारशाला: बच्चों के मानसिक विकास में कहानियों का अहम योगदान

दिलशाद गार्डन स्थित अर्वाचीन इंटरनेशनल स्कूल ने संस्कृति से संस्कार पर समानुभूति विषय पर वेबिनार का आयोजन किया।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Sat, 19 Sep 2020 07:35 PM (IST) Updated:Sat, 19 Sep 2020 07:35 PM (IST)
संस्कारशाला: बच्चों के मानसिक विकास में कहानियों का अहम योगदान
संस्कारशाला: बच्चों के मानसिक विकास में कहानियों का अहम योगदान

नई दिल्ली, रितु राणा। संस्कारों के बिना मानव का जीवन अधूरा है, इसी उद्देश्य से विद्यार्थियों को संस्कारों की शिक्षा देने के लिए दैनिक जागरण हर वर्ष संस्कारशाला का आयोजन करता आ रहा है। कार्यक्रम में बड़े ही उत्साह से स्कूल भाग लेते रहे हैं। इस वर्ष कोरोना के चलते यह कार्यक्रम ऑनलाइन आयोजित किया जा रहा है। इसी क्रम में दिलशाद गार्डन स्थित अर्वाचीन इंटरनेशनल स्कूल ने संस्कृति से संस्कार पर समानुभूति विषय पर वेबिनार का आयोजन किया। जिसमें पूरे जोश व उत्साह से विभिन्न विद्यालयों से छठी व सातवीं कक्षा के करीब 200 विद्यार्थियों ने भाग लिया।

 

वेबिनार की शुरुआत करते हुए प्रधानाचार्या स्वप्ना नायर ने पापा 'आपका जवाब नहीं' कहानी के माध्यम से समानुभूति का अर्थ समझाते हुए कहा कि दूसरा जैसा महसूस करे, वैसा महसूस करें। हमें खुद को दूसरे की जगह रखकर भी सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि दैनिक जागरण संस्कारशाला के जरिए बच्चों को प्रेरक कहानियों के माध्यम से शिक्षा और संस्कार से जोड़ने का काम किया जा रहा है। इससे विद्यार्थियों में सीखने की क्षमता व रचनात्मक बढ़ेगी। कार्यक्रम में अलग-अलग गतिविधियों के माध्यम से बच्चों के चिंतन व कौशल को विकसित करने का अवसर मिला है। उन्होंने कहा कि ऐसी ही शिक्षा पाकर बच्चों में संस्कार उत्पन्न होते हैं और वह बड़े होकर एक आदर्श नागरिक बनते हैं।

इस मौके पर शिक्षिका अनीता पंडित ने बुधवार को दैनिक जागरण में प्रकाशित 'आपका जवाब नहीं' शीर्षक कहानी सुनाई। इसके बाद विद्यार्थियों को मित्रता पर दोहा लेखन व सूक्तियां लेखन आदि गतिविधियां कराई गई। जिनमें उन्होंने बहुत उत्साह से भाग लिया। अनीता पंडित ने कहा कि बच्चों के मानसिक विकास में कहानियों का अहम योगदान होता है।

कहानी से बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास होता है। वहीं, हिंदी विभागाध्यक्ष दीपिका चावला ने कहा कि मनुष्य के जन्म से ही कहानी का भी जन्म हुआ। कहानी कहना और सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया है। कहानी वह है जो हमारे मन की गहराइयों में समा जाए, हमारी हथेलियों पर अपनी छाप छोड़ जाए, हमारी नींद और हमारे सपनों का हिस्सा बन जाए। अंत में सभी विद्यार्थियों को इस कहानी से मिली सीख को अपने जीवन में उतारने का संकल्प दिलाया गया।

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