भू-जल स्तर के लिए खतरा है कीकर का पेड़, काटने के लिए दूर करनी होगी कानूनी अड़चन

ट्री एक्ट में संरक्षण प्राप्त होने के कारण कीकर को काटने या हटाने में कानूनी अड़चनें हैं। बायो डायवर्सिटी पार्कों में भी कीकर के एक-एक पेड़ को हटाने के लिए हमें वन विभाग से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 01:16 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 01:16 PM (IST)
भू-जल स्तर के लिए खतरा है कीकर का पेड़, काटने के लिए दूर करनी होगी कानूनी अड़चन
कीकर को काटने के लिए लेनी पड़ाती है वन विभाग से विशेष अनुमति

नई दिल्‍ली, अरविंद कुमार द्विवेदी। दिल्ली के वन क्षेत्र में विलायती कीकर डोमिर्नेंटग ट्री की तरह हैं। विभिन्न बायो डायवर्सिटी पार्कों में कीकर को हटाने के लिए परियोजनाएं तो चल रही हैं, लेकिन कालोनियों व गांवों के पार्कों और हरित क्षेत्रों में फैले कीकर को हटाने का काम आसान नहीं है। ट्री एक्ट में संरक्षण प्राप्त होने के कारण कीकर को काटने या हटाने में कानूनी अड़चनें हैं। बायो डायवर्सिटी पार्कों में भी कीकर के एक-एक पेड़ को हटाने के लिए हमें वन विभाग से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है।

जटिल है खत्म करने की प्रक्रिया

बिना काटे कीकर को खत्म करने की प्रक्रिया काफी जटिल है। पहले कीकर के पेड़ की टहनियों को काटकर कैनोपी बनाकर इसकी छाया खत्म की जाती है। फिर इसके आसपास देशज पेड़-पौधे लगाए जाते हैं। जब ये पौधे बड़े हो जाते हैं तो इनकी छाया से कीकर की ठूंठ को सूर्य की पर्याप्त रोशनी नहीं मिल पाती है, जिससे वह धीरे-धीरे सूख जाता है। कैनोपी बनाने के लिए सर्दी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है क्योंकि इस दौरान सूर्य की पर्याप्त रोशनी नहीं मिलती है जिससे पौधों की ग्रोथ कम होती है। एक बार जहां पर कीकर समाप्त हो जाता है तो उसके आसपास कीकर के नए पौधे दोबारा नहीं उगने दिए जाते हैं।

भू-जल स्तर के लिए भी खतरा

देशज पेड़ों की जड़ें पानी को ऊपर खींचती हैं, जिससे भूजल स्तर ऊपर उठता है जबकि कीकर की जड़ें बहुत गहरे तक जाती हैं। इसलिए ये बहुत गहराई तक जाकर पानी को सोख लेती हैं। यही वजह है कि कीकर के आसपास की जमीन का भूजल स्तर और गिरता जाता है। यही कारण है कि कीकर का पेड़ हर जगह आसानी से उग जाता है और तेजी से बढ़ता है। खुद जीवित रहने के लिए कीकर देशज पेड़-पौधों की तुलना में ज्यादा पोषक तत्व व पानी का दोहन करता है, इसलिए इसके आसपास अन्य पेड़-पौधों के लिए पोषक तत्व बचते ही नहीं हैं। इसके बीजों का जर्मिनेशन भी देशज पेड़-पौधों की तुलना में 90 फीसद अधिक होता है। ऐसे में जहां कहीं भी इसका एक पेड़ उगता है थोड़े ही समय में वहां पर कीकर का घना जंगल तैयार हो जाता है।

कीकर से होने वाले नुकसान के प्रति लोगों को करना होगा जागरूक

समस्या यह है कि अगर ट्री एक्ट में संशोधन कर कीकर के पेड़ों को काटने की अनुमति दे दी जाती है तो देशज प्रजाति के पेड़ों के अंधाधुंध कटान का भी खतरा उत्पन्न हो जाएगा। जैसा केरल में हुआ। वहां लोगों को जरूरत के अनुसार कुछ विशेष पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई थी। लेकिन वहां पर लोगों ने इसकी आड़ में अन्य पेड़ों को भी काटना शुरू कर दिया। कीकर को हटाने के लिए समर्पित स्टाफ की जरूरत होगी। वन विभाग के पास पहले से ही स्टाफ की कमी है। ऐसे में सबसे जरूरी है कि लोगों को कीकर से स्वास्थ्य, भू-जल स्तर, पर्यावरण आदि को होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक किया जाए। दरअसल, बहुत से लोगों को इससे होने वाले नुकसान की जानकारी नहीं है। इसीलिए लोग कीकर को काटने व उसे पूरी तरह से हटाने का विरोध करते हैं।

(डा. आर जयाकुमार, ईकोलाजिस्ट एवं साइंटिस्ट इंचार्ज, तिलपथ वैली बायो डायवर्सिटी पार्क, नेब सराय)

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