Kisan Andolan: सिंघु बार्डर के दुकानदारों पर गहराया रोजी रोटी का संकट, किसान आंदोलनकारियों से की ये अपील
Kisan Andolan दुकानदार शनिवार की बैठक से उम्मीदें लगाए बैठे थे लेकिन फिलहाल आंदोलनकारियों का रवैया रोजगार की राह को रोके हुए है। दुकानदार चाहते हैं कि अब आंदोलनकारी भी माने और वापस जाएं। जिससे काफी लंबा हो चुका इंतजार अब समाप्त हो ।
नई दिल्ली [सोनू राणा]। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर तीनों कृषि कानून वापस हो चुके हैं, सिंघु बार्डर और उसके आसपास के दुकानदारों के दिलों में भी आशा की किरण जागी है। उन्हें उम्मीद है कि अब रोजगार फिर चल पड़ेगा और परिवार के बुरे दिन नहीं रहेंगे। दुकानदार शनिवार की बैठक से उम्मीदें लगाए बैठे थे, लेकिन फिलहाल आंदोलनकारियों का रवैया रोजगार की राह को रोके हुए है। दुकानदार चाहते हैं कि अब आंदोलनकारी भी माने और वापस जाएं। जिससे काफी लंबा हो चुका इंतजार अब समाप्त हो ।
सिंघु बार्डर पर जनरल स्टोर के मालिक बिट्टू की एक बार फिर से उम्मीद टूट गई। पहले कोरोना महामारी की वजह से लगाए गए लाकडाउन और अब एक वर्ष से ज्यादा समय से चल रहे आंदोलन की वजह से उनकी दुकान में काफी नुकसान हुआ है। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो गई। तीनों कृषि कानूनों के रद होने के बाद उनको उम्मीद थी कि चार दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा के नेता आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा करेंगे।
लोग दिनभर उम्मीद लगाकर बैठे रहे कि नेताओं की एक घोषणा से उनका सामान्य जीवन पहले की तरह पटरी पर लौट आएगा। लेकिन शाम को एक बार फिर उनके हाथ निराशा लगी। ये कहानी सिर्फ बिट्टू की नहीं है। इलाके में रहने वाले शंकर, रमेश, अनिल और यहां से बेरोजगार होकर जा चुके प्रभु दयाल, अखिलेश व दुकानदारों, समेत हजारों लोगों की है।
दिल्ली पेट्रोल डीलर एसोसिएशन की एग्जिक्यूटिव कमेटी के सदस्य राजीव जैन ने बताया कि उम्मीद थी कि शनिवार को रास्ते खुल जाएंगे, अब सात दिसंबर का इंतजार है। एक-एक दिन गिन-गिन कर काट रहे हैं। 12 महीने से सिंघु व टीकरी बार्डर के 11 पेट्रोल पंप बंद पड़े हैं। बंद पड़े पेट्रोल पंपों का भी हर महीने चार से पांच लाख रुपये महीने का खर्चा (बिजली, ईएमआइ, कर्मचारियों का वेतन आदि) है। 11 पंपों पर पहले 400 लोग काम करते थे। 350 लोग अब रास्ते बंद होने की वजह से घर बैठे हैं।
सिंघु बार्डर पर हजारों रुपये दुकान का किराया दे रहे बिट्टू ने नम आंखों से बताया कि इतने मुश्किल दिन तो कोरोना महामारी के दौरान भी नहीं थे। यह समय उनकी जिंदगी का सबसे कठिन समय है। हालात बद से बदतर हुए हैं।
सिंघु बार्डर पर चप्पल व बैग बेचकर अपने व परिवार के सदस्यों का पेट पालने वाले दिव्यांग शंकर ने बताया कि सिंघु बार्डर एक वर्ष से ज्यादा समय से बंद होने की वजह से हजारों लोग परेशान हैं। उम्मीद लगाकर बैठे थे कि अब तो सिंघु बार्डर खुलेगा, लेकिन नहीं खुला।