Shravan 2021: सावन का महीना, भोले को भक्तों का प्यार; हरी हरी चूड़ियां वो तीज और त्योहार
आकाश में बादल बागों में मोर कभी रिमझिम फुहारें कभी घटा घनघोर ठंडी हवा गोरी के गालों को चूमती बारिश की बूंदें पत्तों पे झूमती धुली-धुली धरती माटी की सोंधी-सोंधी खुशबू- यही है सावन का महीना और इसके हजारों रूप।
नई दिल्ली, भावना शेखर। सुहागनों का सावन से अनूठा नाता है। कभी हाथों में मेहंदी लगाकर तो कभी बालों में फूल सजाकर वे झूलों पर पींगें भरती हैं तो कभी सखियों को पिया मिलन की मादक बातें सुनाकर चुहल करती हैं, कभी झूला और कजरी गाती हैं तो कभी पिया मिलन की कामना करती हैं। वे यह भी गाती हैं-
झुकी है बदरिया कारी
कब आओगे गिरधारी
सावन के बादल वियोगियों को जलाते हैं। यक्ष बादलों को दूत बनाकर अपनी प्रियतमा को संदेश भेजता है। कामिनियां परदेस गए पति के विरह में तड़पती हैं-
वन में पपीहा पिउ पिउ रटै
अरी बहना, गोरी गाए मल्हार
सावन में राजा, बुरी थारी चाकरी
अजी राजा, जोबन के दिन चार।
सावन का रिश्ता हास विलास उल्लास से है। इसीलिए प्रिय की जुदाई बर्दाश्त नहीं होती, पर इसका सबसे गहरा नाता शिव से है, क्योंकि यह महीना भोलेनाथ को बेहद प्रिय है।
पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती ने पिता दक्ष के यहां यज्ञ कुंड में आत्मदाह किया था, लेकिन उनका प्रण था कि हर जन्म में पति के रूप में महादेव को ही पाना है। सो, दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमालय और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया और शिव को पाने के लिए युवावस्था में सावन के महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया, तब प्रसन्न होकर शिवजी ने पार्वती से विवाह किया। सती से पुनर्मिलन होने के कारण महादेव के लिए यह मास विशेष हो गया।
मान्यता है कि भगवान शिव सावन के महीने में अपनी ससुराल यानी पृथ्वी पर जरूर आते हैं। इसी विश्वास के कारण सावन में सारा देश महादेव के रंग में सराबोर हो जाता है। भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए अपने कंधों पर कांवर धरकर नंगे पांव शिव के धाम की ओर चल पड़ते हैं।
सावन और शिव के संबंध के कुछ और भी बातें कही जाती हैं। कहते हैं ऋषि मर्कंडु के पुत्र मार्कंडेय ने सावन मास में तपस्या करके शिव जी से मृत्यु जीतने का वरदान प्राप्त किया था।
इसी मास में पुराणों में प्रसिद्ध समुद्र मंथन की घटना घटी थी। इसमें देवताओं को अमृत मिला और शिव जी विष का पान करके नीलकंठ कहलाए।
सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने से जब आकाश झमाझम बरसता है तो उसकी ठंडी-ठंडी फुहारें हलाहल पीने वाले नीलकंठ को शीतलता और आनंद देती हैं। इसलिए भी भगवान शिव की सावन से विशेष प्रीति है।
सावन शिव को प्यारा है और शिव स्त्रियों को। यही कारण है कि सुहागनें पति के कल्याण के लिए भगवान शिव की पूजा करती हैं। उनके लिए सावन तपस्या का महीना है। भगवान शिव की साधना में कुंवारी लड़कियां भी पीछे नहीं रहती हैं।
हर कुंवारी कन्या अपने सुहाग के रूप में भगवान शिव जैसे उदार और अगाध प्रेम करने वाले पति की कामना करती है। हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि अगर कुंवारी लड़की को मनचाहा वर चाहिए तो वह सोलह सोमवार का व्रत करे। इसी तरह से कहा जाता है कि जो लड़की सावन के सभी सोमवार को शिव जी का अभिषेक करती है तो उसे शिव जी जैसा पति जरूर मिलता है।
तैैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की कल्पना वाले हिंदू धर्म में आखिर लड़कियां शिव जैसा ही पति क्यों चाहती हैं? आखिर जिस जटा- जूटधारी, भभूत मले दामाद के गले में सर्प और नरमुंडों की माला देखकर आरती उतारने आईं देवी पार्वती की माता र्मूिछत हो गई थीं उस औघड़ में ऐसा क्या है, जो राम, कृष्ण और विष्णु में नहीं, इंद्र, कुबेर और कामदेव में नहीं।
माना कि इंद्र के पास शक्ति है, कुबेर के पास धन और कामदेव के पास रूप है, पर समय-समय पर इनमें विकार देखा गया है। इनकी बनिस्बत राम और कृष्ण को श्रेष्ठ माना गया है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने दुनिया को कर्तव्य करना सिखाया तो भगवान कृष्ण ने प्रेम करना सिखाया। एक भगवान शिव ही हैं जिन्होंने सही तरह से दांपत्य निभाना सिखाया। भगवान राम ने मर्यादा के लिए पत्नी का त्याग किया, भगवान कृष्ण ने दळ्निया को प्रेम का महत्व बताने के लिए पत्नी के साथ-साथ राधा और गोपियों के साथ रास रचाया, जबकि भगवान शिव ने सती से बिछड़ने पर तांडव मचा दिया। कैसा उत्कृष्ट प्रेम था कि पत्नी के वियोग में वह अपनी सुध-बुध खो बैठे। ऐसा अगाध प्रेम ही हर स्त्री अपने पति से चाहती है।
भगवान राम आदर्श राजा हैं, श्रीकृष्ण आदर्श राजनीतिज्ञ और शिव आदर्श पति हैं। वह सदा पार्वती के साथ विचरण करते हैं। संसार की हर पत्नी चाहती है कि उसका पति उसे अधिक से अधिक समय दे।
शिवजी, पत्नी के साथ अपने अनुराग को छिपाते नहीं, पत्नी को प्रसन्न करने के लिए वह खूब बातें करते हैं, कथा सुनाते हैं, रुद्रवीणा और डमरू बजाते हैं, नृत्य करते हैं। यही तो हर स्त्री चाहती है कि उसका पति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करे, उसका रंजन करे। भगवान शिव, भगवान विष्णु की तरह पत्नी को चरणों में नहीं, बल्कि अपने बाएं बिठाते हैं। इसीलिए मां गौरी सही मायनों में शिव की वामांगी है। इस विषय में भी एक दिलचस्प कथा है। एक बार शिव के श्रृंगी नामक प्रिय गण जिन्होंने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था, समाधि में बैठे शिव की परिक्रमा करना चाहते थे। अत: उन्होंने शिव के साथ विराजमान आदिशक्ति से शिव जी से अलग होने का अनुरोध किया। देवी पार्वती ने इस पर आपत्ति जताई। इधर श्रृंगी भी अपनी जिद पर अड़े रहे। जब कोई उपाय नहीं सूझा तो श्रृंगी अपना रूप बदलकर भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच से गुजरने का प्रयास करने लगे। इस बीच भगवान शिव का ध्यान टूट गया। वह समझ गए कि श्रृंगी अभी अज्ञानी हैं। इसलिए उन दोनों में भेद कर रहे हैं। अत: श्रृंगी को समझाने के लिए उन्होंने अर्धनारीश्वर का रूप धारण किया और देवी पार्वती को अपने में समेट लिया। इसके पीछे उनका महान उद्देश्य छिपा था। वह प्रकृति और पुरुष के संबंधों की व्याख्या करना चाहते थे। श्रृंगी के साथ-साथ वह संसार को भी संदेश देना चाहते थे कि नारी को पुरुष से अलग नहीं किया जा सकता। पति-पत्नी अभिन्न हैं व उनका संबंध अटूट है साथ ही दांपत्य में पति-पत्नी का दर्जा समान है।
सदियों से अपने हिस्से की जमीन और आसमान मांगती औरत शिव के ऐसे व्यवहार पर मोहित हो जाती है। वो यही तो चाहती है कि उसका साथी उसे सम्मान दे। पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष के अहं तले रौंदी जाने वाली आधी आबादी के लिए शिव का आदर्श बहुत बड़ा संबल है। महाकाल संहारक और प्रचंड शक्तिशाली होने के बावजूद पत्नी के कुपित हो जाने पर सौम्य बन जाते हैं। महाकाली के रौद्र रूप धारण करने पर अपना सारा गौरव, सारा बल और अस्मिता त्याग कर उनके चरणों के नीचे लेट जाते हैं ताकि वह शांत हो जाएं। हर स्त्री चाहती है कि उसके रूठ जाने पर उसका पति उसकी मनुहार करे और उसे शांत करे। अपने चारित्रिक गुणों के कारण भगवान शिव नारीवाद के प्रथम पैरोकार नजर आते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण में अलौकिक आकर्षण है तो श्रीराम में दुर्लभ आदर्श, पर शिव जी में दिखती है घोर सांसारिकता, जो उन्हें लोक से जोड़ती है। लोक यानी गांवों, कस्बों, शहरों ही नहीं दुनिया का चप्पा-चप्पा, सृष्टि का कण-कण सब कुछ शिव से जुड़ा है। शिव आदर्श पति का प्रतिमान और हर पत्नी के मनोवांछित स्वप्नपुरुष हैं। उन जैसा सुहाग पाने के लिए स्त्रियां सावन की बाट जोहती हैं और अपने दांपत्य के मंगल के लिए उपासना करती हैं और वरदान मांगती हैं-
हे भोलेनाथ! मेरी मांग के कुमकुम में अपनी दिव्यता भर दो! मेरे सुहाग की रक्षा करो !!
वे जानती हैं कि पले रुष्ट, पले तुष्ट स्वभाव वाले भगवान आशुतोष सावन में उनकी मनोकामना जरूर पूरी करेंगे।
(लेखिका वरिष्ठ साहित्यकार हैं)