Delhi Congress Politics: दिल्ली के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को अब चमत्कार का इंतजार

Delhi Congress Politics देश की राजधानी दिल्ली से फिलहाल न तो कांग्रेस का कोई सांसद है न ही विधायक। 272 निगम पार्षदों में भी कांग्रेस के केवल 23 यानी 10 फीसद से भी कम हैं। फरवरी 2020 के विस चुनाव में पार्टी का जनाधार चार फीसद तक सिमट गया है।

By JP YadavEdited By: Publish:Thu, 04 Mar 2021 11:20 AM (IST) Updated:Thu, 04 Mar 2021 11:20 AM (IST)
Delhi Congress Politics: दिल्ली के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को अब चमत्कार का इंतजार
घटते जनाधार का ही नतीजा है कि दिल्ली के तमाम प्रमुख कांग्रेसी अब घर बैठ गए हैं।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। कांग्रेस में बगावत का झंडा भले ही केवल समूह-23 के नेता संभाले हुए हैं, लेकिन पार्टी में बदलाव चाहने वाले नेताओं की तादाद बहुत बड़ी है। फर्क सिर्फ इतना है कि ये नेता गलत को गलत कहने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। इस कड़ी में दिल्ली के कांग्रेसी तो दोहरा दर्द झेल रहे हैं। शीर्ष नेतृत्व मजबूत है ही नहीं, प्रदेश नेतृत्व भी हल्का साबित हो रहा है। ऐसे में कांग्रेसी इस चिंता में घुल रहे हैं कि यही हालात रहे तो सियासी अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।

घटते जनाधार के चलते घर बैठे कई नेता

देश की राजधानी दिल्ली से फिलहाल न तो कांग्रेस का कोई सांसद है, न ही विधायक। 272 निगम पार्षदों में भी कांग्रेस के केवल 23 यानी 10 फीसद से भी कम हैं। फरवरी 2020 के विस चुनाव में पार्टी का जनाधार चार फीसद तक सिमट गया है। कांग्रेस की लगातार गिरती सियासी साख और घटते जनाधार का ही नतीजा है कि दिल्ली के तमाम प्रमुख कांग्रेसी अब घर बैठ गए हैं।

पिछले एक साल के दौरान पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल केवल एक ही बार प्रदेश कांग्रेस कार्यालय आए हैं, तो अजय माकन, सुभाष चोपड़ा और अरविंदर सिंह लवली तो एक बार भी नहीं आए। कई पूर्व मंत्री घर बैठे हैं तो कई बार विधायक रह चुके अनेक कांग्रेसियों को भी प्रदेश कार्यालय आए या पार्टी की गतिविधि में शामिल हुए जमाना हो गया है। आते हैं तो केवल वही नेता जो पहले ही राजनीतिक रूप से हाशिये पर हैं।

इन हालात में भी नेता आवाज बुलंद नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल, वे जानते हैं कि आलाकमान को किसी की बात सुनने में रुचि नहीं और बगावत करने पर भविष्य में टिकट मिलने की संभावना भी खत्म हो जाएगी। हां, अन्य राजनीतिक दलों में सियासी ठिकाना हर स्तर के नेता तलाश रहे हैं। निगम पार्षद तो एक एक कर पार्टी को अलविदा कह भी रहे हैं, कुछ नेता सही समय का इंतजार कर रहे हैं। ज्यादातर जिलाध्यक्ष भी मोर्चा खोलने के लिए उपयुक्त अवसर देख रहे हैं।

हैरानी की बात यह भी है कि राहुल गांधी के बयानों एवं सोनिया गांधी की चुप्पी पर चर्चा सभी करते हैं, चिंता भी जताते हैं, पार्टी में सुधार और बदलाव की जरूरत भी कबूल कर रहे हैं, लेकिन बस खुलकर सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। इन्हें इंतजार है तो बस किसी चमत्कार का।

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