विश्वास की शक्ति को पहचानेंगे तो सफलता तक खुद ब खुद पहुंच जाएंगे की मिसाल है सीमा ढाका

दिल्ली पुलिस में महिला हेड कॉन्स्टेबल के पद पर कार्यरत रहीं सीमा ढाका को उनकी असाधारण उपलब्धियों के लिए उन्हें प्रोत्साहित और पुरस्कृत करते दिल्ली पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव। आखिर कैसे संभव हो पाता है यह सब। फाइल

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 26 Nov 2020 09:22 AM (IST) Updated:Thu, 26 Nov 2020 09:22 AM (IST)
विश्वास की शक्ति को पहचानेंगे तो सफलता तक खुद ब खुद पहुंच जाएंगे की मिसाल है सीमा ढाका
व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे।

प्रियम वर्मा। आर्थिक पहलुओं और सांस्कृतिक मूल्यों का गठजोड़ देश को स्वाभाविक विकास की ओर ले जाता है। इनकी गति समानांतर न होने पर बीच का अंतर ही आंदोलनों का रूप लेता है। यह आंदोलन एकल भी हो सकता है और सामूहिक भी। मूर्त भी हो सकता है और अमूर्त भी, लेकिन एक बात तय है कि दोनों परिणाम की ओर अग्रसर होते हैं। उदाहरण के तौर पर, औपनिवेशिक ब्रिटिश राज के खिलाफ कई आंदोलन हुए, जिनका परिणाम आजादी के रूप में मिला, वहीं समय-समय पर एकल प्रयास से सामाजिक हित में कई बदलाव हुए, जिनके परिणामस्वरूप सती प्रथा का अंत और विधवा पुनर्विवाह व जीवन शैली में बदलाव हुआ। अब सवाल यह है कि सफलता होती क्या है और कौन सफल है या कौन ज्यादा सफल है?

दरअसल, महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आप सफल हैं, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि आप उतने सफल हैं जितनी आपके अंदर योग्यता है। सारी बातों का सार यही है कि आप कितने सफल हो सकते हैं? इसलिए स्व को जानना जरूरी है। स्व की क्षमता को पहचान भावनात्मक रहते हुए आध्यात्मिक परिणाम ही असल में सफलता है या कहा जा सकता है कि अगर अधिकतम परिणाम चाहते हैं तो किसी के स्व को जानकर दिशा तय करें, काम करें या काम लें।

सीमा ढाका ने कायम की मिसाल : अब बात करते हैं दिल्ली पुलिस में तैनात एक महिला हेड कॉन्स्टेबल सीमा ढाका की, जिन्होंने करीब तीन महीने के दौरान 76 गुमशुदा बच्चों की तलाश करने में कामयाबी हासिल की। इस उपलब्धि के बाद सीमा ढाका को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया गया। उनसे बात करने पर पता चला कि उनके लिए यह साहस से ज्यादा जुनून का विषय है। संवाद की शुरुआत ही वह कम समय दे पाने के आग्रह के साथ करती हैं। बताती हैं कि अन्य राज्यों से मदद के लिए कॉल आ रही हैं और इस बातचीत के चक्कर में वह अपने नए असाइनमेंट्स पर कम समय और ध्यान दे पा रही हैं।

संक्षिप्त में अपने परिवार के बारे में बताती हैं और काम समझाती हैं। यह पूछने पर कि जिस काम से उनको यह उपलब्धि मिली, इसके बारे में क्या कहेंगी? वह बताती हैं कि परिवार में पहले शिक्षक बनने पर जोर दिया जा रहा था, अचानक से यह नौकरी मिल गई तो बस अपना काम ईमानदारी से कर रही हूं। इसके पीछे कोई माíमक याद या उद्देश्य नहीं है, बस काम में समर्पण पसंद है। अब अगर इस घटना की सफलता वाले पहलू पर बात करें तो समझ पाएंगे कि यहां सीमा ढाका स्व की क्षमता पहचानती हैं, भावनात्मक हैं, पर आध्यात्मिक पहलू पर चर्चा नहीं करतीं और असामान्य परिणाम देती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि वह भावनात्मक लब्धि की ओर अग्रसर हैं।

भावनात्मक लब्धि, बुद्धि लब्धि के बाद मिले धरातल पर बने रहने के लिए उपयोगी होती है। बुद्धि लब्धि की सर्वप्रथम व्याख्या 1912 में विलियम स्टर्न ने की। यह मानसिक आयु को कालानुक्रमिक आयु के साथ विभाजित करके और परिणाम को 100 से गुणा करके प्राप्त किया जाता है। भावनात्मक लब्धि शब्द का सबसे पहले प्रयोग जॉन डी मेयर ने 1990 में किया, जबकि आध्यात्मिक लब्धि की चर्चा पहली बार जोहर ने 1997 में की। कहते हैं कि आइंस्टीन की बुद्धि लब्धि सबसे ज्यादा थी, पर वह गांधी के समर्थक थे। भावनात्मक लब्धि अमूमन सभी बड़े राजनेताओं, बड़े उद्योगपतियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं व ख्यातिप्राप्त नौकरशाहों में होती है। इसे अभ्यास से सुधारा भी जा सकता है।

भारत को आध्यात्मिक देश कहा जाता है। इसका अर्थ पूजा-पाठ, धर्म या मजहब से जुड़ा होना नहीं है। अध्यात्म शब्द आत्मन के साथ अधि उपसर्ग जोड़ कर बना है। मतलब आधार के अर्थ में शाब्दिक अर्थ हुआ आत्मा से संबंधित। इसको लेकर बुद्ध या महावीर, कबीर या नानक की अपनी व्याख्याएं हैं। इतना कह सकते हैं कि अस्तित्व मात्र जिस ऊर्जा के आधार पर खड़ा होता है, उसे आत्मा कह सकते हैं। आध्यात्मिक होने का अर्थ आत्मिक होने से है। साधारण अर्थो में स्वयं को सभी में और सभी में स्वयं को देखना व्यक्ति को आध्यात्मिक बनाता है। यह स्वयं को जाने बिना संभव नहीं है। हिटलर और नेपोलियन बोनापार्ट भावनात्मक लब्धि के उदाहरण हैं, जबकि महात्मा गांधी आध्यात्मिक लब्धि के उदाहरण हैं। गांधी के रामराज की कल्पना, हिटलर और नेपोलियन के बस की बात नहीं।

इससे एक बात तो समझ आती है कि यदि सफलतम होना चाहते हैं तो आध्यात्मिक लब्धि विराट करनी होगी। तीनों ही लब्धियों के सटीक उदाहरण हैं स्वामी विवेकानंद जिन्होंने पश्चिम से लौटकर देशवासियों के नाम एक संदेश दिया था, जिस पवित्र प्यार के साथ पश्चिम के लोगों ने मुङो ग्रहण किया था, वह निस्वार्थ हृदय के लिए ही संभव है। उस देश के प्रति मैं कृतज्ञ हूं। लेकिन इस मातृभूमि के प्रति ही मेरे सारे जीवन की भक्ति अर्पित है और अगर मुङो सहस्त्र बार भी जन्म ग्रहण करना पड़े, तब उस सहस्त्र जीवन के प्रति मुहूर्त मेरे देशवासियों का होगा। हे मेरे बंधुओं, मेरा पल-पल तुम लोगों की ही सेवा में अर्पित होगा।

स्वामी विवेकानंद का कर्मक्षेत्र बुद्धि लब्धि का उदाहरण है, देशवासियों के प्रति कृतज्ञता भावनात्मक लब्धि का परिचय है और स्व और पर के अंतर को खत्म करते हुए आत्मा को समझ जाना आध्यात्मिक लब्धि का उदाहरण है। इस संदर्भ में यह तथ्य जानना आवश्यक है कि जिस व्यक्ति के अंदर बुद्धि लब्धि हो, जरूरी नहीं कि उसके अंदर भावनात्मक और आध्यात्मिक लब्धि भी हो। यही नियम भावनात्मक लब्धि पर भी लागू होगा, लेकिन आध्यात्मिक लब्धि वाले व्यक्ति के अंदर बुद्धि और भावनात्मक लब्धि दोनों अवश्य होंगी।

पति अनीत और बेटे के साथ सीमा ढाका।

करियर विशेषज्ञों की राय : करियर काउंसलर अंशुमान द्विवेदी की मानें तो वर्तमान में संस्थानों या एकेडमी, यहां तक कि प्रशासनिक सेवाओं से पहले कोचिंग में प्रवेश के लिए भी काउंसलिंग की जाती है कि कोई व्यक्ति किसी क्षेत्र विशेष के लिए है भी या नहीं। यदि समाज के मुताबिक कोई क्षेत्र सर्वश्रेष्ठ है तो उस क्षेत्र में जाने वाले एकसमान परिणाम क्यों नहीं दे पाते, सभी संतुष्ट क्यों नहीं हो पाते। उदाहरण के तौर पर पिछले पांच वर्षो में कई अधिकारियों ने अपना क्षेत्र क्यों छोड़ा? इन्हीं सब कारणों से भारत में अब संस्थानों में प्रवेश से पहले काउंसलिंग की जाती है।

कंसल्टेंसी के टॉप थ्री ग्रुप की एचआर स्पेशलिस्ट अनन्या का कहना है कि भारत में ज्यादातर मैनेजमेंट कंपनियों में आइक्यू, ईक्यू और एसक्यू टेस्ट लिए जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति उसी क्षेत्र से है और लंबे समय से है तब उसे छूट दी जाती है, लेकिन पहली बार किसी भी क्षेत्र में कदम रखने से पहले रुचि और क्षमता के साथ उद्देश्य का आकलन किया जाता है। वहीं मूडीज की एचआर सोनम चोपड़ा बताती हैं कि चूंकि सफलता के मानकों को ध्यान में रखते हुए कुछ वरिष्ठ पदों पर भावनात्मक लब्धि वाला व्यक्ति चाहिए होता है और चूंकि भावनात्मक लब्धि विकसित भी की जा सकती है, इसलिए कुछ कंपनियों में प्रमोशन से पहले इक्यू की ट्रेनिंग भी कराई जाती है। टेस्ट की प्रक्रिया के बारे में वह कहती हैं कि सभी पदों के लिए इसमें एक ही सवाल पूछा जाता है कि आंख बंद करने पर वह खुद को कहां महसूस करते हैं। न शब्द संख्या दी जाती है और न ही कोई समय। बस लेखन के आधार पर उनका काम तय होता है। यदि आकलन सही है तो सफलता का प्रतिशत संतोषजनक रहता है।

दरअसल ज्यादातर मामलों में करियर का चुनाव कुछ कारणों के प्रभाव में आकर किया जाता है, फिर वह कारण चाहे नैतिक दबाव हो या निर्णय ले पाने की क्षमता का अभाव। कोई पिता का सपना पूरा करने के लिए इंजीनियर बनना चाहता है तो आइआइटी में प्रवेश ले लिया और इंजीनियर बनकर निकला। वहीं कोई देश की सबसे सम्मानजनक सेवा प्रशासनिक सेवा में आने के लिए जीतोड़ मेहनत कर आइएएस बन गया। यहां महत्वपूर्ण है कि वह इंजीनियर बनकर भी इंजीनियर है या नहीं या अफसर बनकर भी बदलाव कर पाया या नहीं। ऐसा ज्यादातर इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और प्रशासनिक सेवाओं में होता है। इनमें से ज्यादातर लोग धीरे धीरे या तो अवसाद का शिकार हो जाते हैं, दूसरे क्षेत्रों में चले जाते हैं या फिर एक सामान्य जीवन ही बिता पाते हैं। एक मुकाम पर होकर भी सफल नहीं हो पाते। इसे कहेंगे कि मंजिल पर होकर भी सफल न हो पाना। अत: सफलता की राह स्व से होकर जाती है।

अंत में गीता ज्ञान से विषय को समापन की ओर ले चलते हैं, भगवान श्रीकृष्ण के सफलता के लिए दिए उपदेशों पर गौर करते हैं। दरअसल, गीता में उन सभी मार्गो की चर्चा की गई है, जिन पर चलकर बुद्धत्व प्राप्त किया जा सकता है, खुद के स्वरूप को पहचाना जा सकता है या आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। वह कहते हैं कि मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है। जैसा वह विश्वास करता है, वैसा वह बन जाता है। व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे। हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है, इसलिए विश्वास की शक्ति को पहचानेंगे तो सफलता तक खुद ब खुद पहुंच जाएंगे।

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