कह रही है जिंदगी समझो मेरा मोल, आइए इस संकल्प को बनाएं मजबूत...

हमारी जिंदगी हर पल खतरे में लग रही है। जहां एक तरफ भय का बोलबाला है वहीं दूसरी तरफ जीवन को गले लगाने का विचार भी संबल दे रहा है। दरअसल जिंदगी सदा यही संदेश देती है कि परिस्थिति चाहे जितनी विकट हो हम हताश न हों।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 12:57 PM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 12:57 PM (IST)
कह रही है जिंदगी समझो मेरा मोल, आइए इस संकल्प को बनाएं मजबूत...
संक्रमण के लक्षण आएं भी तो उससे डरने के बजाय तुरंत उसे ठीक करने पर काम करें।

 नई दिल्‍ली, सीमा झा। सुप्रिया और उनके पति राजीव पिछले दस दिन से कोविड संक्रमण से जूझ रहे हैं। उनकी छह साल की एक बिटिया है। सुप्रिया अपनी जिस नन्ही बच्ची को खुद से कभी अलग नहीं करती थीं, हालात ने उस बच्ची को उनसे अलग रहने के लिए विवश कर दिया है। मां से अलग रहकर अपना काम खुद कैसे करना है, वह अपनी लाडली को इसका प्रशिक्षण दे रही हैं। उन्हें पीड़ा होती है जब बिटिया खुद नहाती है और दूर से ही मां की थपकियों को महसूस कर धीरे-धीरे नींद के आगोश में चली जाती है। यह सब देखना, महसूस करना मां-बाप के लिए पीड़ादायक है। यह उस मां और पिता की संक्रमण से मिली तकलीफ से बढ़कर है। पर सुप्रिया इसे न केवल स्वीकार कर रही हैं बल्कि यह बात उनका अपने जीवन से जुड़ाव भी बढ़ा रहा है। सुप्रिया कहती है, ‘हर सुबह किसी न किसी मौत की खबर से शुरू होती है। दिल एकबारगी दहल जाता है। कभी किसी करीबी की मौत की खबर तो अभी संभले भी नहीं कि किसी मित्र की मृत्यु का संदेश। पर जीवन का मोल ऐसी पीड़ाओं पर भी भारी है। आइए जीवन को गले लगाएं, इससे हमारी हर पीड़ा कम होती जाएगी।’

हालांकि सुप्रिया के पति राजीव का एहसास अलग है। यह उनके इंटरनेट मीडिया पोस्ट से जाहिर होता है, जहां वह कभी किस्मत को दोष देते हैं तो कभी अपनी परिस्थिति को। सुप्रिया कहती हैं, ‘पति निराश होते हैं तो उन्हें बार-बार समझाती और प्रेरित करती हूं। इससे खुद भी प्रेरित होती हूं। आशा है कि जब हम कोविड के इस भयावह दौर से निकलेंगे तो हमारी वह सुबह इससे बहुत अलग और यूं कहें बेहद सुंदर होगी।’

स्वीकारना ही होगा हमें: सुप्रिया की उक्त कहानी इस समय की सहज मनोदशा है। हां, यह मनोदशा नकारात्मक भी हो सकती है। नकारात्मक यानी जीवन दुख से भरा है, पीड़ा ही इसकी नियति है। पर विशेषज्ञों के अनुसार, यह बस हमारी मन:स्थिति हो सकती है। जैसा कि फोर्टिस अस्पताल, नोएडा के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. मनु तिवारी कहते हैं, ‘हम भावनाओं से संचालित होते हैं। भावनाएं हमारी स्थिति पर निर्भर हैं। जैसी बाहर की स्थिति होती है वैसी ही हमारी मन की स्थिति बनने लगती है। भावनाओं के इस जाल को बुनने में हम अच्छी या बुरी स्मृतियों की मदद लेते हैं। यह हम पर है कि बुरे दौर में कैसी स्‍मृतियों को मन में जगह दें।’ यह सच है कि भावुक और भय से भरे मन को आज अक्सर विशेषज्ञता से भरी बुद्धिमत्तापूर्ण बातें नहीं सुहातीं। वह तो बस किसी तरह से इस मुश्किल समय से निकलना चाहता है, कोई हल चाहता है। पर यकीन करें। यह हल बाहर नहीं, जीवन को स्वीकारने और इसे गले लगाने के हमारे संकल्प पर निर्भर है। जैसा संकल्प, वैसा जीवन।

आईना दिखा रहा समय

इस समय कई विचार प्रबल हैं। आपने महसूस किया होगा कि जब बुरी घटनाएं होती हैं तो मन की दशा बदलने लगती है। रोने और मातम के बीच जीवन को बचाने का संकल्प भी पक्का होता है। पर विशेषज्ञों के अनुसार, हम वास्तव में सबक को याद नहीं रखते। प्रमाण सामने दिख रहा है लेकिन हमें बेहतरी के लिए हमेशा सबक को याद रखना नहीं बल्कि उसे अमल में कैसे लाएं, इस‍ विचार को आगे ले जाना है। सबक यानी वे बातें जो हम खुद से कहते हैं- ‘जीवन वही है जैसा हम इसे बनाते हैं।’ हमें अपनी गलतियों से सीखना चाहिए। उन्हें दोहराना नहीं चाहिए। पर ये बातें हम अक्सर भुला देते हैं। डॉ. मनु तिवारी के मुताबिक, कोविड काल में हमें जिंदगी आईना ही तो दिखा रही है कि हमने सब जानते हुए भी असावधानियां कीं, बचाव के प्रयास जो करने चाहिए, नहीं किए।

भावनात्मक सेहत बेहतर करने की करें पहल: अनिश्चितता की स्थिति हमेशा परेशान करने वाली होती है। अध्यात्म में कहा जाता है कि यह समय जीवन की क्षणभंगुरता को समझने का सही समय है। सही भी है। इसका अर्थ है कि हम थोड़ा सोचें कि आत्मपरीक्षण कितना जरूरी है। पर इसकी पहली शर्त है कि आप खुद को अच्छा महसूस कराएं। कुछ ऐसा सृजनात्मक करें, पढ़ें जो आपके मन को सुकून दे। इस क्रम में भय और चिंताओं को दबाना, अपने नकारात्मकक विचारों को जबरन रोकना नहीं है। इसके लिए यह जरूर सोचकर देखें कि आपने क्यों यह यात्रा शुरू की? आपको पता चलेगा कि हमारे सजग प्रयास कम हुए, अपनी ही गलतियों ने पीछे रखा। दरअसल, आत्मपरीक्षण के लिए आपको बस सचेत प्रयास करना है। देखना है कि कौन से विचार आपको भावनात्मक रूप से कमजोर कर रहे हैं। मुश्किल समय हमेशा हमारी परीक्षा लेता है। इसमें हम तभी तो सफल हो सकेंगे, जब थोड़ा समय खुद के साथ बिताएं। ऐसा करने से भावनात्मक सेहत बेहतर होगी। जब आप खुद की मदद करेंगे, तभी औरों की सहायता हो सकेगी।

आत्ममंथन के सबक

आइए, आत्ममंथन करें उन बातों पर, जो हम लगातार याद तो रखते हैं पर उन पर अमल कम करते हैं या फिर नहीं करते हैं। ये बातें दरअसल वे सबक हैं जिन्हें हमें याद रखना है :

-जीवन छोटा है!

अधिकतर लोग तो सदैव किसी चीज की शुरुआत करने के इंतजार में रहते हें। यह भूल जाते हैं कि अच्छी शुरुआत के इंतजार में ही हमारी उम्र बीत रही है। कभी-कभी तो लोग कहते हैं कि केवल इच्छा में ही पड़े रहे और बूढ़े कब हो गए पता ही नहीं चला। इसलिए यह स्वीकार कि इंतजार करने के बजाय जो काम हमें आगे करना है, उसे बस आज से ही शुरू करना है।

-हमसे है हमारी जिंदगी यह सच है कि कोई भी आपकी जिंदगी को नहीं जी सकता। यह केवल आप हैं, जिन्हें अपने अंधेरे को रोशन करना है। हम जलाएंगे दीया तभी रोशन होगी जिंदगी। यह काम केवल हमें करना है, दूसरे तो केवल मदद कर सकते हैं।

खुद के प्रति रखें करुणा

लोग कहते हैं कि आपको खुद से प्यार करना चाहिए। लेकिन यह आसान नहीं है क्योंकि बहुत से लोग इस धारणा को लंबे समय तक मन में नहीं रख पाते। उन्हें लगता है, ‘हमें कोई प्यार नहीं करता, क्योंकि प्यार करने लायक हमारे भीतर कुछ नहीं।’ पर सच तो यह है कि हर किसी में ऐसा कुछ है जिस पर गर्व होना चाहिए। खुद को पीड़ित न मानें, यह केवल आपके विचार हैं, सच तो यह है कि आप खुद में संपूर्ण और सुंदर हैं।

अपने लिए निकालें समय

अपने काम और जिम्मेदारियों के अलावा भी हमारी कुछ ऐसी चीजें हैं जो जरूरी हैं पर पीछे छूटती चली जा रही हैं। इन दिनों घर से काम करने से जिंदगी काफी अस्त-व्‍यस्‍त हो गयी है लेकिन इसके बावजूद आप थोड़ा समय केवल अपने लिए निकालें। चिंतन करें। एकांत से ऊर्जा ग्रहण करें और आगे बढ़ें।

समाधान करें, आगे बढ़ें

-यदि किसी स्थिति, जगह अथवा व्यक्ति से खुश नहीं हैं तो उसे लेकर परेशान होते रहने, पीड़ित होते रहने के बजाय आगे बढ़ें। समस्या के मूल में जाएं और समाधान के उपाय तलाशें। इच्छाशक्ति यहां काम आएगी, जब आप किसी भी बोझ से खुद को मुक्त करने की सोचेंगे। बदलाव से न घबराएं।

कृतज्ञता से मिलता है संबल: स्क्रीन राइटर इरा टॉक ने बताया कि संकट में अक्सर लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। विचार उच्च हो जाते हैं लेकिन हम भूल जाते हैं कि हमें सिर्फ जानना समझना ही नहीं, बल्कि उन चीजों को अमल में भी लाना है। मुझे लगता है कि इसका कारण हमारी परवरिश में छिपा है। हमें प्यार करना नहीं सिखाया जाता। बस नियंत्रित करो और नियंत्रण में रहो, इस बात को ज्यादा सीखते हैं। इसी ढर्रे पर आगे बढ़ती जाती है जिंदगी। गौर करें तो पाएंगे कि वे लोग आज मन से अधिक मजबूत हैं जो अच्छे विचारों को जीवन में उतारते हैं। जो भौतिकता या पैसे को नहीं, अपनी संवेदनात्मक मजबूती को बढ़ाने पर काम करते हैं। यदि आप बीमार भी पड़ते हैं तो यही चीज आपकी मदद करती है। कुदरत के प्रति और अपने आसपास सभी के प्रति कृतज्ञ रहेंगे तो संबल मिलता है। मैं हमेशा मानती हूं कि अच्छे कर्म यानी अच्छी बातें करते रहने के बजाय यदि इन्हें जीवन में उतार लें तो आपको मुश्किलें भयभीत नहीं करेंगी

नोएडा फोर्टिस के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. मनु तिवारी ने बताया किदुख में सुमिरन सब करें: समझ लीजिए हमारे मन में कई सीढ़ियां है। जिस सीढ़ी पर जो लिखा चाहे दुख या खुशी, उस पर वैसी ही यादों को हम रखते जाते हैं। जब वह स्थिति गुजर जाती है तो हम उसे दिमाग के मेमोरी बक्से में डालकर भूल जाते हैं। हम बुरे वक्त में अच्छे विचारों को याद तो करते हैं लेकिन उसे अमल में नहीं ला पाते क्योंकि मन की सीढ़ियों पर यादों के साथ वे सबक नहीं रखते जो पहले की घटनाओं में कभी हमें मिले होंगे। इसलिए मुश्किलों को झेलना मुश्किल होता है और हम हार मान जाते हैं। कबीर ने अपने दोहे ‘दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय, जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय’ में यही तो कहने की कोशिश की है। इसलिए जो परिपक्व होते हैं वे स्मृतियों के साथ उनसे जुड़े सबक भी याद करते हैं। यही कारण है कि ऐसे लोग औरों की तुलना में संतुलित व्यवहार करते हैं।

याद रखें

अभी आपको भय से निकलना है।

-भय में आप अपनी स्वाभाविकता खो देते हैं। अत्यधिक धार्मिक होने लगते हैं या अध्यात्म की ओर उन्मुख होते हैं। आपकी वास्तविक स्थिति इन सबके बीच संतुलन लाना है। शांत मन से चीजों को स्वीकारते हुए बढ़ना है।

- भय से दो ही स्थितियां बनती हैं। या तो आप उससे भागते हैं या लड़ते हैं। पर आपको स्थिति को स्वीकार करना है।

-संक्रमण के लक्षण आएं भी तो उससे डरने के बजाय तुरंत उसे ठीक करने पर काम करें।

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