...आंधियों में कहां दम था, 'रुचि' के चिराग तो तेज हवा में भी जलते रहे
रुचि के लिए तो यही कहा जा सकता है कि 'वो सरफिरी हवा थी संभालना पड़ा मुझे, मैं आख़िरी चिराग था जलना पड़ा मुझे।
नई दिल्ली [ललित कौशिक]। महानगरों में दरकते रिश्तों को जोड़ने में जुटी रुचि के लिए तो यही कहा जा सकता है कि 'वो सरफिरी हवा थी संभालना पड़ा मुझे, मैं आखिरी चिराग था जलना पड़ा मुझे। मशहूर शायर बशीर बद्र को ये शेर रुचि पर एकदम सटीक बैठता है।
जी हां, महानगर की भागदौड़, करियर का तनाव, दरकते रिश्तों की चिंता और कामयाबी का जुनून। यही नहीं खोने के भय के कारण लोग मानसिक रूप से अवसाद में जा रहे हैं। अवसाद में रहने वालों को जिंदगी नीरस लगने लगती है। लेकिन उनकी जिंदगी में कैसे खुशियों के रंग भरें और उन्हें कैसे जिंदगी की नई राह दिखाई जाए इस दिशा में करोलबाग की रहने वाली 40 वर्षीय रुचि मित्तल पिछले दस वर्षों से काम कर रही हैं।
विद्यार्थियों का भी मार्गदर्शन
रुचि ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और कुछ विशेष पाठ्यक्रम विदेशों से भी पढ़े हैं। अब तक सैकड़ों लोगों को अवसाद की दुनिया से बाहर निकाल चुकी हैं। साथ ही विद्यार्थियों का भी मार्गदर्शन करती हैं। रुचि की सलाह और सुझाव जहां अवसाद में आए लोगों को जिंदगी दे रही है वहीं कई लोगों के मुरझाए चेहरों पर खुशी देखकर उनको भी संतोष का अनुभव होता है। रुचि मानती हैं कि व्यस्तता सबके जीवन में है लेकिन परिवार के अलावा समाज के लिए भी कुछ करने की जिम्मेदारी हम आपकी भी है।
व्यक्ति को समझने की जरूरत होती है
रुचि बताती हैं कि अभी भी हमारे समाज में अवसाद को लेकर लोग चर्चा करने से बचते है। जबकि इससे ग्रसित इंसान को इसकी जद से जल्द बाहर लाया जा सकता है। अवसाद के समय अकेले हो चुके व्यक्ति को समझने की जरूरत होती है। यह प्रयास कोई भी आम इंसान कर सकता है। बशर्ते उसकी बातें प्रभावशाली हो ताकि वो दूसरे व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक बन सकें। कुछ ऐसा ही प्रयास लोगों की मदद के लिए किया जा रहा है।
नकारात्मक भाव को दूर किया जाता है
उन्होंने बताया कि जब कोई व्यक्ति इस तरह की परेशानी लेकर आता है कि वो इस समस्या से जूझ रहा है और उसे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करें। ऐसे लोगों की मदद के लिए एक प्रारूप बना रखा है, जिसके तहत उनकी सहायता की जाती है। व्यक्ति के मस्तिष्क में जो नकारात्मक भाव होता है, उसे दूर किया जाता है। उसके व्यवहार को समझने की कोशिश होती है, जिससे कि उसमें सुधार हो सकें।
कोई शुल्क नहीं लिया जाता है
रुचि बताती हैं कि वो इस संबंध में सैकड़ों संगोष्ठी आयोजित कर चुकी हैं। यहां तक कि पुणे, नासिक और मुंबई समेत कई दूसरी जगहों पर भी ऐसे कार्यक्रम किए गए है। इस प्रकार के कार्यक्रमों में आने वाले लोगों से किसी प्रकार का कोई शुल्क भी नहीं लिया जाता है। लोगों की निजी तौर पर भी मदद की जाती है। साथ ही कुछ संगठन भी इस कार्य में उनका सहयोग करते है।
बचपन से रहा है मदद करने का भाव
रुचि बताती है कि एक महिला जिसने खुदकशी का प्रयास किया था, वो उन्हें हर 15 दिन में शुक्रिया कहने के लिए आती हैं कि उनकी वजह से उन्हें नई जिंदगी मिली है। मेरे लिए इससे बड़ी खुशी क्या होगी। वो कहती हैं कि लोगों की मदद करने का भाव उनमें बचपन से रहा है। अगर इंसान की जिंदगी में थोड़े से प्रयास से कुछ बड़ा बदलाव हो जाए तो इससे बड़ी जनसेवा क्या होगी।