डिफाल्ट जमानत लेने के अधिकार का हनन न होना सुनिश्चित करें निचली अदालत: हाई कोर्ट

वैधानिक जमानत देने से इन्कार करने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली विचाराधीन कैदी की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम निर्देश दिए हैं। पीठ ने जिला अदालतों को निर्देश देते हुए कहा कि विचाराधीन कैदी की न्यायिक हिरासत तकनीकी तौर पर न बढ़ाई जाए।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 07:43 PM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 07:43 PM (IST)
डिफाल्ट जमानत लेने के अधिकार का हनन न होना सुनिश्चित करें निचली अदालत: हाई कोर्ट
वैधानिक जमानत के अधिकार का न हो हनन: हाई कोर्ट

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। डिफाल्ट जमानत देने से इन्कार करने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली विचाराधीन कैदी की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम निर्देश दिए हैं। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने सभी जिला अदालतों को निर्देश दिया कि यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी विचाराधीन कैदी की न्यायिक हिरासत तकनीकी तौर पर नहीं बढ़ाई जाए। पीठ ने कहा कि न्यायिक हिरासत बढ़ाए जाने से पहले कानून के प्रावधानों का पालन किया जाए और कैदी को उसके अधिकार के बारे में जानकारी दी जाए।

पीठ ने यह भी कहा कि निर्धारित समयावधि के अंदर आरोप पत्र नहीं दाखिल नहीं होने पर विचाराधीन कैदी के डिफाल्ट जमानत लेने के उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। किसी कैदी की हिरासत अवधि बढ़ाए जाने से पहले पूरी तरह विचार किया जाना चाहिए और तकनीकी आधार पर उसकी हिरासत 15 दिनों के लिए नहीं बढ़ाई जानी चाहिए।

उन्होंने स्पष्ट किया कि कैदी की हिरासत भी उसी तारिख तक के लिए बढ़ाई जाए जबतक की आरोप पत्र दाखिल करने के लिए समय दिया गया है और इसके बाद कैदी को अदालत में पेश किया जाए। अगर निर्धारित अवधि में आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है तो उसे डिफाल्ट जामानत लेने के उसके मौलिक अधिकार के बारे में उसे जानकारी दी जाए।

पीठ ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से कहा कि वह सुनिश्चित करे कि हिरासत अवधि बढ़ाने के लिए तैनात सरकारी अधिवक्ता व विधिक सहायता परामर्शदाताओं से कैदी को डिफाल्ट जमानत के बारे में सूचित करें। अदालत ने यह निर्देश एक विचाराधीन कैदी की याचिका पर की। कैदी ने डिफाल्ट जमानत देने की मांग वाले आवेदन को खारिज करने के सत्र न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।

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