जो सपना देखा उसे हकीकत में बदला, कुछ ऐसी है सब लेफ्टिनेंट कुमुदिनी व रीति की स्टोरी

रीति और कुमुदिनी जल थल और वायु सेना को युवाओं के लिए खासकर महिलाओं के लिए एक बेहतर अवसर व विकल्प के रूप में देखती हैं। सेना में लैंगिक समानता की दिशा में जो परिवर्तन हुए उसी को इस मुकाम तक पहुंचने का श्रेय देती हैं।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 02:05 PM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 02:05 PM (IST)
जो सपना देखा उसे हकीकत में बदला, कुछ ऐसी है सब लेफ्टिनेंट कुमुदिनी व रीति की स्टोरी
सब लेफ्टिनेंट रीति और कुमुदिनी की फाइल फोटो

नई दिल्ली [मनु त्यागी]। जब हम कोई लक्ष्य निर्धारित करते हैं तो उसे हासिल में बहुत सी चीजों का योगदान होता है। मसलन, हम उस लक्ष्य के लिए कितना त्याग कर सकते हैं। अनुशासन को कितना अपने जीवन में आत्मसात कर सकते हैं। जब कोई लक्ष्य को ही अपना सपना बना लेता है और उसी के साथ जीने लगता है तो सफलता अवश्य ही मिल जाती है। इसका जीता जागता उदाहरण हैं सब लेफ्टिनेंट कुमुदिनी त्यागी और सब लेफ्टिनेंट रीति सिंह।

इन्होंने सेना में जाने से पहले ही सेना के संस्कार और अनुशासन को अपने जीवन में उतार लिया था। बस एक ही लक्ष्य निर्धारित किया था कि सेना में जाना है और देश की सेवा करनी है। ..और उन्होंने न केवल अपना सपना साकार किया, बल्कि उस मुकाम पर पहुंचीं जहां अभी तक देश की बेटियां नहीं पहुंच पाई थीं। ये दोनों बेटियां युद्धपोतों के डेक से संचालन करने वाली देश की पहली महिला एयरबॉर्न टेक्नीशिन होंगी। दोनों कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं और उन्हें 2018 में नौसेना में कमीशन किया गया था।

12वीं के बाद देख लिया था सपना

गाजियाबाद की कुमुदिनी त्यागी की बात करें तो उन्होंने सेना में जाने का सपना 12वीं पास करते ही देख लिया था। बचपन से ही उन्होंने अपने दादा को उप्र पुलिस की वर्दी में देखा था। उन्हीं की तरह कुमुदिनी भी अपने स्कूल की सफेद यूनिफॉर्म को हमेशा साफ रखती थीं। बड़े होने पर सफेद यूनिफॉर्म ही उनकी पहचान बनी। वह नौसेना में शामिल हुईं। हालांकि, इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होंने बहुत से त्याग किए। वह हमेशा जीवन की तड़क-भड़क और चकाचौंध से दूर रहीं। हमेशा अपनी जिम्मेदारी को समझा और लक्ष्य को हासिल करने के लिए एकाग्र रहीं।

अनुशासन ही लक्ष्य की कुंजी

कुमुदिनी की दुनिया किताबों और सेना की वर्दी धारण करने के इर्दगिर्द ही रही। ये बातें बहुत साधारण सी लगती हैं, लेकिन आज की युवा पीढ़ी के लिए सबसे ज्यादा अहमियत रखती हैं, क्योंकि आज युवा सुविधा संपन्न जीवनशैली ही चाहते हैं। ऐसे में किसी युवा के पास स्मार्टफोन नहीं होना अचरज ही लगता है। जी हां, कॉलेज के दिनों में भी कुमुदिनी ने स्वयं को स्मार्टफोन से दूर ही रखा। स्कूल के दिनों में भी यदि एक्टिविटीज से जुड़ीं तो वह केवल स्पोर्ट्स ही था, जो अनुशासन ही सिखाता है। कुमुदिनी के अब तक के जीवन की एक और बात जो अहम रही, वो यह थी कि वह बचपन से ही उदार हृदय वाली थीं।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को पढ़ाई-लिखाई की सामग्री देने के साथ ही जरूरत की अन्य चीजें भी मुहैया कराती थीं। आज जब वह देश सेवा में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही हैं तो भी अक्सर झुग्गियों से बच्चे उनके घर आकर उन्हें तलाशते हैं, इस उम्मीद में कि दीदी से एक मुलाकात हो जाए। बड़े दिल वाली देश की इस बेटी का बचपन बेहद सामान्य तरीके से बीता। एक ऐसी बेटी के रूप में जिसकी स्वजनों से कभी कोई फरमाइश नहीं रही। पिता प्रवेश त्यागी, जिनकी ख्वाहिश थी कि मुझे पहली संतान के रूप में बेटी ही मिले, ईश्वर ने उनकी सुनी।

शुरुआती दिनों में परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत साधारण थी, तब भी बेटी को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में दाखिला दिलाया। हालांकि, बचपन से ही पढ़ाई में अच्छी होने के कारण कभी ट्यूशन की जरूरत नहीं हुई, लेकिन शुरू से शांत स्वभाव और पढ़ाई पर केंद्रित होने की वजह से शिक्षकों ने भी हमेशा उनका मार्गदर्शन किया। कुमुदिनी अपने परिवार में सेना में जाने वाली पहली सदस्य हैं।

विरासत को बढ़ा रहीं आगे

अब बात हैदराबाद निवासी रीति सिंह की। वह अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं, जिन्होंने देश सेवा के लिए सेना को चुना। 2010 में पिता के सेवानिवृत्त होने के बाद उनकी वर्दी और देश सेवा का जिम्मा खुद उठाने का संकल्प लिया। घर में सैन्य अनुशासन के संस्कार बचपन से ही उन्हें मिले थे। उन्होंने स्वयं को उसी तरह प्रशिक्षित किया और सेना में जाने वाली अपने परिवार की पहली महिला सदस्य बनीं।

हर युद्धक विमान के लिए तैयार

यह दोनों बेटियों की लगन और समर्पण ही था कि दोनों सैन्य अधिकारी सेना में चयन के बाद प्रशिक्षण के दौरान 24 घंटे कड़ी मेहनत करती थीं। इस दौरान न तो उन्हें घर-परिवार का कोई खयाल था और न ही कोई दूसरी सोच। बस खुद को तपाना और आगे बढ़ना ही एकमात्र लक्ष्य था। इसी प्रशिक्षण के दौरान कुमुदिनी को रिले रेस में स्वर्ण पदक भी प्राप्त हुआ, जिसे वह अपने लिए खास मानती हैं।

ऐतिहासिक बदलाव

दोनों सब लेफ्टिनेंट रीति और कुमुदिनी पहली बार महिलाओं की युद्धपोत पर तैनाती को सेना में ऐतिहासिक बदलाव की तरह देखती हैं। कल परिस्थितियां भले ही कितनी भी विपरीत क्यों न हों, देश की सुरक्षा और सम्मान में जहां भी डटकर सामना करना होगा उसके लिए दोनों खुदको बिल्कुल तैयार मानती हैं। अब तक मिली एकेडमिक, फिजिकल व टेक्निकल ट्रेनिंग पर भरोसा करती हैं। हर कोई चाहता है देश किसी युद्ध या विपरीत परिस्थितियों से नहीं जूङो, फिर भी विकट स्थितियों में सेना की ओर से जैसे आदेश होंगे उसके आधार पर हर तरह के युद्धक विमान उड़ाने के लक्ष्य के लिए दोनों स्वयं को तैयार मानती हैं। नौसेना के मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर में लगे सेंसरों को ऑपरेट करने का प्रशिक्षण प्राप्त दोनों युवा सैन्य अधिकारियों को संभवत: नए एमएच-60 आर हेलीकॉप्टरों में उड़ान भरने का अवसर मिले। एमएच-60 आर हेलीकॉप्टर्स की श्रेणी में दुनिया में सबसे अत्याधुनिक मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर माना जाता है। इसे दुश्मन के पोतों और पनडुब्बियों को डिटेक्ट करने और उन्हें उलझाने के लिए डिजाइन किया गया है।

Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो

chat bot
आपका साथी