शौर्य गाथाः जांबाज लांस नायक ओमप्रकाश की गोलियां नहीं झेल सके थे पाकिस्तानी सैनिक

राजकुमारी ने बताया कि बेटे के जन्म को छह माह ही हुए थे कि तभी कारगिल युद्ध शुरू हुआ। इसमें ओमप्रकाश सिंह ने अपने सर्वोच्च पराक्रम का प्रदर्शन कर पाकिस्तानी फौज के रास्ते की वह रुकावट बने जिसे दुश्मन कभी पार नहीं कर सके।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 05:46 PM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 05:46 PM (IST)
शौर्य गाथाः जांबाज लांस नायक ओमप्रकाश की गोलियां नहीं झेल सके थे पाकिस्तानी सैनिक
ओम प्रकाश सिंह की फाइल फोटो ’ सौ. स्वजन

नई दिल्ली/ गाजियाबाद [अभिषेक सिंह]। कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी फौज को भारतीय सैनिकों ने ऐसे परास्त किया कि दुश्मन उस दिन को याद कर आज भी थर्राता है। इन जांबाज सैनिकों में से एक शहीद लांस नायक ओमप्रकाश सिंह भी थे। वह बचपन में बंदूक से खेलने के शौकीन थे। बड़े हुए तो देशसेवा के लिए भारतीय सेना में भर्ती हुए। बुलंदशहर के खैरपुर में जन्मे ओमप्रकाश सिंह भारतीय सेना ज्वाइन करने के बाद राजपूताना राइफल सेकेंड के सदस्य बने। उनकी तैनाती जम्मू में हुई। जहां उनका सामना नापाक इरादों से भारत में घुसने वाले आतंकवादियों से हुआ। घर के अंदर चोरों की तरह छिपकर बैठे आतंकवादियों को कई बार उन्होंने ऐसा सबक सिखाया कि उनको शरण देने वाले दोबारा ऐसी हिम्मत न कर सके।

तीन साल की ड्यूटी पूरी होने के बाद उनकी शादी बुलंदशहर निवासी राजकुमारी से हुई। दंपती ने एक बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम कुलदीप रखा। बेटे को ओमप्रकाश प्यार से बिट्टू कहते थे।

राजकुमारी ने बताया कि बेटे के जन्म को छह माह ही हुए थे कि तभी कारगिल युद्ध शुरू हुआ। इसमें ओमप्रकाश सिंह ने अपने सर्वोच्च पराक्रम का प्रदर्शन कर पाकिस्तानी फौज के रास्ते की वह रुकावट बने, जिसे दुश्मन कभी पार नहीं कर सके। उन्होंने 15 जून 1999 को अपने साथियों के साथ तोलोलिंग द्रास सेक्टर पर दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देकर विजय प्राप्त की। इसके बाद 29 जून 1999 को नवल हिल पर पाकिस्तानी फौज को खदेडकर तिरंगा फहराया।

पहाड़ी से उतरते वक्त कायर पाकिस्तानी फौज ने पीठ पीछे से रात दो बजे ग्रेनेड फेंका। इसमें ओमप्रकाश सिंह अपने साथी हरियाणा निवासी यशवीर के साथ ही वीरगति को प्राप्त हुए।

दो भाई करेगे माता-पिता की सेवा, मुझे देश सेवा करनी है

राजकुमारी बताती हैं कि ओमप्रकाश अपने देश पर जान छिड़कते थे। भारतीय सेना में भर्ती होने से पहले दोस्तों व रिश्तदारों से कहते थे कि माता-पिता की सेवा करने के लिए दो भाई देवेंद्र सिंह व जयप्रकाश सिंह हैं। मुङो देश की सेवा करनी है। 31 अगस्त, 1999 को ओमप्रकाश के शहीद होने की खबर परिवार को मिली। परिवार को गर्व है कि ओमप्रकाश ने कभी भी देश के दुश्मन को हावी नहीं होने दिया। हर मोर्चें पर उसे परास्त किया।

जेब में मिली बेटे की फोटो

ओमप्रकाश सिंह को अपने बेटे से काफी लगाव था। उसके जन्म के बाद जब वह ड्यूटी पर गए तो बेटे की फोटो मंगवाते थे। परिवार के लोग रजिस्टरी कर फोटो भेजते थे। वीरगति प्राप्त होने के बाद जब ओमप्रकाश के पर्स को चेक किया गया तो उसमें उनके बेटे की फोटो मिली। उनकी पत्नी राजकुमारी ने बताया कि अब वह परिवार के साथ दिल्ली के शहादरा में रहने लगी हैं। लोनी में उनकी गैस एजेंसी है। राजकुमारी का कहना है कि आज भी भारतीय सेना उनको अपने परिवार के सदस्य की तरह हमेशा याद रखती है।

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