'कोरोना की चौथी लहर का अनुमान लगाने में चूक हुई' पढ़िये- DMC अध्यक्ष का पूरा इंटरव्यू
कोरोना वायरस को लेकर नीति निर्धारकों के आंकलन में जरूर चूक हुई लेकिन चिकित्सा से जुड़े लोगों को पहले से ही अंदेशा था। हमने जनवरी में ही इस संबंध में आशंका जाहिर की थी। उस समय ब्रिटेन सहित कुछ देशों में मामले तेजी से बढ़ रहे थे।
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में कोरोना संक्रमण की रफ्तार कम होने का नाम नहीं ले रही है। अस्पतालों में ऑक्सीजन का संकट हो गया है। गंभीर हालत में पहुंच चुके मरीजों को बेड नहीं मिल पा रहा है। कोरोना में जरूरी दवाओं की भी भीषण किल्लत हो गई है। कुल मिलाकर स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। साथ ही आने वाले दिनों में यह महामारी कितनी भारी पड़ने वाली है। इन सभी मुद्दों पर दैनिक जागरण के स्वदेश कुमार ने दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) के अध्यक्ष डॉ. अरुण गुप्ता से विस्तार से बातचीत की। पेश है बातचीत के अंश:
कोरोना के मामले काफी बढ़ चुके हैं। क्या अनुमान लगाने में चूक हो गई?
नीति निर्धारकों के आंकलन में जरूर चूक हुई, लेकिन चिकित्सा से जुड़े लोगों को पहले से ही अंदेशा था। हमने जनवरी में ही इस संबंध में आशंका जाहिर की थी। उस समय ब्रिटेन सहित कुछ देशों में मामले तेजी से बढ़ रहे थे। यही वजह है कि कोरोना रोधी टीके लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रहे थे। हां, यह जरूर है कि मौजूदा हालात अप्रत्याशित हैं। मामले इतने बढ़ जाएंगे, इसका आंकलन किसी ने नहीं किया था। हालांकि, अब उम्मीद है कि एक-दो हफ्ते में मामले कम होने शुरू हो जाएंगे। इससे लोगों को राहत मिलेगी।
संक्रमण बढ़ने के साथ अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं का अभाव हो गया है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
इसके लिए जिम्मेदार नीति तय करने वाले नौकरशाह और नेता हैं। पिछले साल राजधानी दिल्ली में हमने कोरोना की तीन लहर देखी थी। हमारे पास इस साल जनवरी, फरवरी में अपनी तैयारी को पुख्ता करने का समय था, लेकिन यह नहीं हो सका। दरअसल, आज भी इलाज के लिए बेड की कमी नहीं है। बल्कि संकट ऑक्सीजन का है। दिल्ली को प्रतिदिन 900 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत है, लेकिन कोटा मिला है 490 टन का। आपूर्ति 80 फीसद भी नहीं हो पा रही है। अस्पताल बेड़ बढ़ाएंगे तो ऑक्सीजन कहां से लाएंगे। बिना ऑक्सीजन के बेड का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
अस्पतालों में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है। इसकी वजह से मरीजों की देखभाल ठीक से नहीं हो पा रही है। इसे कैसे देखते हैं?
हमारे स्वास्थ्यकर्मी पिछले एक साल से इस महामारी से जंग लड़ रहे हैं। इसमें हमने कई साथी खो भी दिए। कोरोना मरीजों के बीच काम करने से स्वास्थ्यकर्मी और उनके स्वजन भी संक्रमित हो रहे हैं। अस्पतालों में इसी वजह से संख्या कम है। इसे देखते हुए ही दिल्ली सरकार ने स्वास्थ्यकर्मियों और डाक्टरों को नियुक्त करने की प्रक्रिया शुरू की है। इसके साथ ही जरूरत है कि स्वास्थ्यकर्मियों का मनोबल न गिरे। इसके लिए सभी अस्पतालों को अपने स्वास्थ्यकर्मियों और उनके स्वजन को इलाज में प्राथमिकता देनी चाहिए।
क्या अब 50 बेड से छोटे अस्पतालों में भी कोरोना के लिए बेड आरक्षित करने की जरूरत है?
कोरोना के अलावा भी कई बीमारियां हैं जिनका इलाज समय पर होना जरूरी है। अगर दूसरी बीमारियों से पीडि़त मरीजों को छोटे अस्पतालों में भी इलाज न मिला तो वे कहां जाएंगे। इसलिए यह बाध्यकारी नहीं होना चाहिए। अगर कोई छोटा अस्पताल स्वेच्छा से कोरोना मरीजों का इलाज करना चाहता है तो कर सकता है।
कई मरीज घरों में आइसोलेशन में हैं। उन्हें किन-किन बातों का रखना चाहिए?
दिल्ली में कोरोना मरीजों के लिए होम आइसोलेशन की सुविधा बेहतर है। हेल्पलाइन के जरिये मरीज डाक्टर से कभी भी संपर्क कर सकता है। उन्हें घर में ही आक्सीमीटर मिल जा रहा है। बेहतर निगरानी की वजह से ही अधिकतर मरीज होम आइसोलेशन में स्वस्थ हो रहे हैं। मरीजों के लिए आवश्यक है कि घर में आइसोलेशन के नियमों का पालन करें। घबराएं नहीं बल्कि मजबूती से इसका सामना करें।