Tree Plantation: आंखों में झोंक रहे ‘दिखावटी हरियाली’ की धूल, नीति को चाहिए निगरानी

दिल्ली सरकार ने राजधानी में पेड़ बचाने के उद्देश्य से 2020 में ‘ट्री ट्रांसप्लांटेशन पालिसी’ यानी वृक्ष प्रत्यारोपण नीति अधिसूचित की। इसके तहत किसी भी विकास योजना की जद में आने वाले कम से कम 80 फीसद पेड़ों को प्रत्यारोपण और संरक्षण किया जाएगा।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Wed, 25 Aug 2021 03:03 PM (IST) Updated:Wed, 25 Aug 2021 03:03 PM (IST)
Tree Plantation: आंखों में झोंक रहे ‘दिखावटी हरियाली’ की धूल, नीति को चाहिए निगरानी
आंखों में झोंक रहे ‘दिखावटी हरियाली’ की धूल

नई दिल्ली। विकास की राह में आड़े आने पर पेड़ों को किनारे लगा दिया जाता है। कभी उनकी जगह दूसरे और अधिक पेड़ लगाने की बात होती है तो कभी पेड़ों को ट्रांसप्लांट यानी प्रत्यारोपित करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। हाल ही में तीसरी रिंग रोड की राह आसान करने के लिए तकरीबन 6,600 पेड़ों के लिए भी ऐसा ही निर्णय लिया गया है। अब सवाल यह है कि प्रत्यारोपित किए जाने वाले पेड़ों में से कितनों को जीवन मिल पाता है।

क्या हम इन पेड़ों की उनकी आवश्यकता के अनुकूल देखरेख कर पाते हैं, शायद नहीं। यदि ऐसा होता तो द्वारका में काटे गए तकरीबन नौ हजार पेड़ों में प्रत्यारोपित 5,700 पेड़ों में से आधे सूखकर खराब नहीं होते। ऐसे और भी प्रोजेक्ट हैं जिनमें पेड़ प्रत्यारोपित हुए, लेकिन पुष्पित पल्लवित नहीं हो सके।

दूसरा पहलू यह भी देखने वाला है कि हम काटने के नाम पर जो अतिरिक्त पेड़ लगाते हैं, उनमें कौन से लगाए जाते हैं? क्या हम वाकई पर्यावरण के अनुकूल, वातावरण को शुद्ध करने वाले औषधीय पेड़ लगाते हैं, इसका भी जवाब नहीं है। वो एक कहावत है न आंखों में धूल झोंकना। यहां धूल के बजाय आंखों में दिखावटी हरियाली झोंकी जा रही है। इस तरह हरी-भरी दिल्ली को देख हर मन प्रफुल्लित तो होता है, लेकिन उस हरियाली में वातावरण में अनुकूल ऊर्जा पैदा करने, आक्सीजन का उत्सर्जन करने का माद्दा नहीं है। दरअसल हम इनकी जगह ऐसे पेड़ लगा रहे हैं जिनकी देखरेख न करनी पड़े।

ये विलायती कीकर की भांति आसानी से तेजी से फैलते जाते हैं। और तो और न हींग लगे न फिटकरी, रंग भी चोखा आए। मतलब न पानी देना पड़ता है और न खाद। हां, इनके नाम पर मोटा बजट जरूर मिल जाता है। सूची में वनस्पति पेड़ भी होते हैं जो सिर्फ कागजों में होते हैं, जमीन पर नहीं। आखिर एक ढांचाभर क्यों बनकर रह गया है वन संरक्षण विभाग? इस जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती? वृक्ष संरक्षण नीति को अमल में क्यों नहीं लाया जाता?

कई माह की प्रक्रिया है प्रत्यारोपण

विदेश में वृक्ष प्रत्यारोपण कई माह की प्रक्रिया का होता है जबकि हमारे यहां सीधे काटकर ट्रक या टेंपों में लादा और दूसरी जगह गड्ढा खोदकर लगा दिया। इस तरह प्रत्यारोपण नहीं होता है। हर पेड़ के लिए हर जगह की मिट्टी भी अनुकूल नहीं होती।

औषधीय गुण वाले पेड़-पौधे

पीपल, बरगद, नीम, अशोक, अजरुन, जामुन, कदंब, बेल आदि।

नीति को चाहिए निगरानी

दिल्ली-एनसीआर में सड़क, हाईवे, मेट्रो प्रोजेक्ट, शापिंग कांप्लेक्स आदि विकास कार्यो को पूरा करने के लिए उनकी राह में आने वाले अनगिनत पेड़ों को वहां से हटाकर अन्यत्र प्रत्यारोपित किया जाता है। हवाला दिया जाता है कि इससे हरियाली भी बनी रहेगी और विकास योजनाओं को मूर्त रूप भी दिया जा सकेगा, लेकिन पेड़ों को प्रत्यारोपित करने की योजनाओं में खामी, रखरखाव के अभाव एवं विभागीय लापरवाही के कारण आधे से अधिक प्रत्यारोपित पौधे सूख जाते हैं।

 

वृक्ष प्रत्यारोपण नीति

दिल्ली सरकार ने राजधानी में पेड़ बचाने के उद्देश्य से 2020 में ‘ट्री ट्रांसप्लांटेशन पालिसी’ यानी वृक्ष प्रत्यारोपण नीति अधिसूचित की। इसके तहत किसी भी विकास योजना की जद में आने वाले कम से कम 80 फीसद पेड़ों को प्रत्यारोपण और संरक्षण किया जाएगा। इस काम के लिए चार एजेंसियों का पैनल बनाया गया है। पेड़ों की निगरानी के लिए एक ट्री-ट्रांसप्लांटेशन सेल भी होगा।

नहीं है कारगर

सरकार 80 फीसद पेड़ों को प्रत्यारोपित करने और उन्हें बचाने की बात कर रही है, लेकिन दिल्ली में ज्यादातर पेड़ों की उम्र सौ साल से अधिक है। ऐसे पेड़ों को प्रत्यारोपित करने के लिए जड़ों समेत निकालना आसान नहीं है। इनकी जड़ें काफी फैली हुई हैं। विशाल शाखाओं को काटना होगा। बुजुर्ग पेड़ों को कहीं और ले जाकर लगाने पर वे सूख जाते हैं।

ये हैं नियम सड़कों के किनारे छायादार और आक्सीजन देने वाले पीपल, बरगद, नीम, अर्जुन और जामुन जैसे पेड़ लगाने चाहिए रेलवे लाइन के किनारे बबूल रोपना सर्वाधिक उपयुक्त रहता है कृषि वानिकी में आर्थिक उपयोग के लिए आम, अमरूद, आंवला के अलावा पोपलर के वृक्ष लगाना पर्यावरण संगत है।

कथनी और करनी में अंतर पेड़ काटने और लगाने के नियम ज्यादातर हैं कागजी बड़े बड़े और हरे भरे पेड़ काटे जाते हैं, जबकि लगाए जाते हैं छोटे पौधे क्षतिपूर्ति के तौर पर नीम, अमलतास, पीपल, गूलर, बरगद, शीशम, अर्जुन सहित अन्य देशी प्रजातियों के पौधे लगाने को कहा जाता है, लेकिन जहां पौधे लगाए जाते हैं वहां की मिट्टी भी अनुकूल नहीं होती और देखभाल नहीं की जाती।

chat bot
आपका साथी