Delhi School Reopen: नए दोस्तों की ‘मुंह दिखाई’, बच्चों, अब छोड़ो कल की बातें
कोविड-19 लाकडाउन के बाद से ही छात्र-छात्रएं अपने घरों में कैद थे। 10वीं व 12वीं कक्षा के लिए स्कूल खुलने के बाद अब शिक्षकों के सामने दोहरी चुनौती है। कम समय में परीक्षा की तैयारी करवाना व उनके दिलोदिमाग से लाकडाउन के दौरान हुई उनकी उलझनों को निकालना है।
नई दिल्ली [अरविंद कुमार द्विवेदी]। राजधानी में 10 माह के बाद सोमवार को 10वीं और 12वीं के बच्चों के लिए स्कूल खोल दिए गए। इससे बच्चों के चेहरे खिल उठे। पढ़ाई शुरू होने से ज्यादा खुशी उन्हें अपने दोस्तों से मिलने की हो रही थी। पहला दिन हालचाल पूछने में ही निकल गया। कोरोना के दिशानिर्देश के तहत शारीरिक दूरी का पालन कराने के लिए बच्चों को कई सेक्शन में बांट दिया गया है। एक कमरे में 10 से 15 बच्चे ही बैठाए जा रहे हैं। सेक्शन के हिसाब से बच्चों का सिटिंग अरेंजमेंट नया हो गया है।
इसलिए उन्हें अन्य सेक्शन के सहपाठियों से भी दोस्ती करने व घुलने-मिलने का मौका मिल रहा है। बच्चे अपने पुराने दोस्तों को तो मास्क के साथ भी पहचान ले रहे हैं, लेकिन नए सहपाठियों से बातचीत के दौरान मास्क खिसकाकर चेहरा दिखाने के लिए कह रहे हैं। हंसी मजाक में वे इसे ‘मुंह दिखाई’ कह रहे हैं।
बच्चों, अब छोड़ो कल की बातें
कोविड-19 लाकडाउन के बाद से ही छात्र-छात्रएं अपने घरों में कैद थे। 10वीं व 12वीं कक्षा के लिए स्कूल खुलने के बाद अब शिक्षकों के सामने दोहरी चुनौती है। कम समय में परीक्षा की तैयारी करवाना व उनके दिलोदिमाग से लाकडाउन के दौरान हुई परेशानियों व उनकी उलझनों को निकालना है। इसके लिए विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम पढ़ाने के साथ ही शिक्षक काउंसलिंग कर उन्हें बीती बातें छोड़कर आगे बढ़ने की सलाह दे रहे हैं। बच्चों को मास्क पहनने व बार-बार हाथ साफ करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, लेकिन जैसे ही उन्हें बताया जा रहा है कि दोस्तों को गले न लगाना और उनके साथ टिफिन शेयर न करना तो बच्चे नाक-भौं सिकोड़ते हुए सवाल पर सवाल दागने लगते हैं। उनकी जिज्ञासा को शांत करते हुए शिक्षक उन्हें तरह-तरह के उदाहरण देकर कोरोना संक्रमण के खतरे से सावधान करते हैं और उनसे अपनी बात मनवा ही लेते हैं।
कोरोना वैक्सीन पर अधिकारियों की बढ़ी टेंशन
करीब 10 माह से पूरा देश कोरोना वैक्सीन का इंतजार कर रहा था, लेकिन जब वैक्सीन आ गई तो अब उसे लगवाने में स्वास्थ्यकर्मी रुचि ही नहीं दिखा रहे हैं। सरकारी अस्पतालों के स्वास्थ्यकर्मी भी इसको लेकर उदासीनता ही दिखा रहे हैं। ऐसे में विभिन्न जिलों के डीएम की टेंशन बढ़ी हुई है। हर डीएम अपने जिले का डेटा हाई दिखाना चाहते हैं। इसके लिए वे लगातार सरकारी व प्राइवेट अस्पताल प्रबंधन के संपर्क में हैं। दिन भर में सुबह 11 बजे, एक बजे व शाम पांच बजे की स्थिति की समीक्षा की जा रही है। डीएम एक-एक डाक्टर व स्वास्थ्यकर्मी से बात करके उन्हें समझा रहे हैं कि अगर उन्होंने वैक्सीन नहीं ली तो आम जनता में इसका गलत संदेश जाएगा। अधिकारी उन्हें समझा रहे हैं कि आम जनता के मन से अफवाह व भ्रम की स्थिति दूर करने के लिए डाक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों को वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए।
आंदोलन करो और छाए रहो वरना..
आजकल ज्यादातर भाजपा नेता दिल्ली सरकार पर नगर निगमों के 13 हजार करोड़ रुपये न देने का आरोप लगाते हुए आंदोलन पर आंदोलन कर रहे हैं। खास बात तो यह है कि इस आंदोलन में पार्षदों से ज्यादा वे नेता शामिल हो रहे हैं जो संभवत: अगले निगम चुनाव में टिकट की दावेदारी पेश करने वाले हैं। इसको लेकर सिटिंग पार्षदों की भी टेंशन बढ़ी हुई है। उन्हें आशंका है कि कहीं ऐसा न हो कि आने वाले चुनाव में पार्टी टिकट देते समय उन आंदोलनकारी नए नेताओं को प्राथमिकता देते हुए उनका पत्ता काट दे। इसको लेकर वे अपने शुभचिंतकों के साथ ही पार्टी के बड़े पदाधिकारियों से भी रायमशविरा कर रहे हैं। इस पर उन्हें यही सलाह मिल रही है कि मुद्दा भी है और मौका भी। टिकट चाहिए तो आंदोलन करो और छाए रहो, वरना नए वाले नेता बाजी मार ले जाएंगे और तुम देखते रह जाओगे।
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