Kargil Vijay Diwas: तोलोलिंग पहाड़ी पर शहीद मंगत सिंह भंडारी ने आखिरी सांस तक लिया था दुश्मनों से लोहा

दुश्मनों की तरफ से लगातार गोलियों की वर्षा हो रही थी इस बीच तोलोलिंग पहाड़ी पर अपनी बटालियन के साथ नायक मंगत सिंह भंडारी लगातार दुश्मनों के खेमे पर हमला करने को आगे बढ़ रहे थे। इस दौरान अचानक एक गोली उनके पैर पर लगी और उनके कदम लड़खड़ा गए।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 01:31 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 01:31 PM (IST)
Kargil Vijay Diwas: तोलोलिंग पहाड़ी पर शहीद मंगत सिंह भंडारी ने आखिरी सांस तक लिया था दुश्मनों से लोहा
मंगत सिंह भंडारी ने अंतिम सांस तक लिया दुश्मनों से लोहा

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दुश्मनों की तरफ से लगातार गोलियों की वर्षा हो रही थी, इस बीच तोलोलिंग पहाड़ी पर अपनी बटालियन के साथ नायक मंगत सिंह भंडारी लगातार दुश्मनों के खेमे पर हमला करने को आगे बढ़ रहे थे। इस दौरान अचानक एक गोली उनके पैर पर लगी और उनके कदम लड़खड़ा गए। पर वे फिर उठ खड़े हुए और दुश्मनों पर टूट पड़े। अपनी अंतिम सांस तक उन्होंने दुश्मनों से लोहा लिया और वीरगति को प्राप्त हो गए। कारगिल युद्ध में शहीद हुए नायक मंगत सिंह भंडारी के परिवार ने उनकी एक-एक याद को सहेज कर रखा है।

मूल रूप से उत्तराखंड के गांव सिरमोलिया निवासी मंगत सिंह 18 गढ़वाल राइफल यूनिट में तैनात थे। पिता के शौर्य व अदम्य साहस से प्रेरित होकर अब उनकी बेटी मोनिका भंडारी भी सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहती हैं।

उस समय मां के गर्भ में थी मोनिका

मोनिका ने कहा ‘ पहले मुझे बहुत रोना आता था कि अपने पापा को नहीं देख पाई, लेकिन इसके बाद मुझे गर्व होने लगा कि मेरे पिता उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं, जिन्होंने देश की सुरक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। अब मैं रोती नहीं हूं, बल्कि अपने दोस्तों को उनकी वीरता के किस्से गर्व के साथ सुनाती हूं।’ अपने बचपन की याद को साझा करते हुए मोनिका कहती हैं ‘जब मैं छोटी थी, मेरे दोस्त आपस में बात करते थे कि हम अपने पापा के साथ यहां-वहां गए। उस समय मुझे अफसोस होता था कि मैं अपने पापा के साथ समय नहीं व्यतीत कर पाई, पर जब-जब मुङो और मेरे परिवार को किसी देशभक्ति से जुड़े कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाता था तो उस समय मुझे काफी गर्व होता था।’

द्रास क्षेत्र में जाकर दी थी श्रद्धांजलि

नायक मंगत सिंह की पत्नी रेखा भंडारी ने कहा ‘उस समय फोन की सुविधा का इतना विस्तार नहीं हुआ था। एक सैनिक ने गांव आकर शहादत की जानकारी दी थी। गांव की सड़कें कच्ची होने के कारण उनके शव को गांव नहीं लाया जा सका। ऐसे में बेटे नीरज और बेटी नीलम और मैंने द्रास क्षेत्र में जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

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