क्यों बाजार से मिल सकता है अच्छा संदेश, पढ़ें PHD CCI के अध्यक्ष प्रदीप मुल्तानी से खास बातचीत

प्रदीप मुल्तानी ने कहा कि उद्योग जगत का रुख सकारात्मक है। हम चीन पर क्यों निर्भर रहें। वह हमारा दुश्मन है। वह सीमा पर आंखें दिखाता है। इसलिए हमें आत्मनिर्भर होना चाहिए। यह विश्व के लिए भी बेहतर है।

By Jp YadavEdited By: Publish:Mon, 25 Oct 2021 11:51 AM (IST) Updated:Mon, 25 Oct 2021 11:51 AM (IST)
क्यों बाजार से मिल सकता है अच्छा संदेश, पढ़ें PHD CCI के अध्यक्ष प्रदीप मुल्तानी से खास बातचीत
क्यों बाजार से मिल सकता है अच्छा संदेश, पढ़ें PHD CCI के अध्यक्ष प्रदीप मुल्तानी से खास बातचीत

नई दिल्ली। देश ने 100 करोड़ तो दिल्ली ने दो करोड़ टीकाकरण के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। राजधानी दिल्ली में कोरोना के न्यूनतम मामले हैं। ऐसे में बाजार और उद्योग में उत्साह का माहौल है। मांग खूब है। इससे अर्थव्यवस्था को तेज गति मिली है। ऐसे में डेढ़ वर्ष से अधिक समय में कोरोना की मार झेल रहा व्यापार और उद्योग जगत ने राहत की सांस ले रहा है। यह उज्ज्वल भविष्य का संकेत है। इसे लेकर नेमिष हेमंत ने पीएचडी चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष प्रदीप मुल्तानी से बातचीत की, प्रस्तुत है बातचीत के अंश...।

इस त्योहारी सीजन में मांग में तेजी आई है। बाजार में चहल-पहल है, इसे किस तरह ले रहे हैं?

-यह काफी अच्छा संकेत है। खासकर जिस तरह से देश ने असंभव से लगने वाले 100 करोड़ टीकाकरण के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। उससे मार्केट का खोया विश्वास लौटा है। देश-दुनिया के लोग भारत की विशाल आबादी को देखते हुए यह अंदेशा जता रहे थे कि सभी का टीकाकरण करने में कम से कम 10 से 15 साल लग जाएंगे, लेकिन यह एक साल से भी कम समय में संभव हो गया। दूसरी तरफ, देश में कोरोना के मामले न्यूनतम स्तर पर हैं। यह अधिक राहत की बात है, क्योंकि कोरोना संक्रमण के चलते जो हमने मुश्किलें ङोली हैं। उसको शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। अब यहां से उठकर दौड़ने का समय है।

अर्थव्यवस्था को उठाने और गति देने के लिए सरकार की स्तर पर कई फैसले हुए उसका कितना असर है?

-सरकार ने बाजार को गति देने के लिए सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग (एमएसएमई) सेक्टर में व्यापारियों को भी समाहित किया। इसका असर यह हुआ कि व्यापारियों को भी बैंकों से ऋण लेने में आसानी हुई। इसका फायदा कई व्यापारियों ने उठाया है। इससे उन्हें कारोबार करने में आसानी हुई। बैंकों ने उन्हें आसानी से ऋण दिए हैं। इसी तरह ‘मेक इन इंडिया’ व ‘वोकल फार लोकल’ जैसे अभियानों से बाजार व उद्योग को फायदा पहुंचा है।

कारोबार और उद्योग का भविष्य क्या लग रहा है?

-भविष्य काफी अच्छा है। इसका अंदाजा वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह से देख सकते हैं। यह प्रति माह एक लाख करोड़ रुपये से अधिक पहुंच गया है। इस गति से हम कुछ दिन में ही कोरोना की पूर्व की स्थिति में पहुंच जाएंगे। इसका अंदाजा गाड़ियों की बुकिंग और रेस्तरां में लोगों की मौजूदगी से आंक सकते हैं। कई गाड़ियों की बुकिंग और डिलीवरी में चार से पांच माह का इंतजार है। हालांकि, आटो सेक्टर को सेमी कंडक्टर चिप की कमी है, जिसकी उपलब्धता बढ़ने के साथ आटो सेक्टर के और रफ्तार भरने का अनुमान है। इसी तरह रेस्तरां में बैठने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। यहां तक की दिल्ली के लोग घूमने के लिए पर्यटन स्थलों पर जा रहे हैं। इसके कारण हिमाचल प्रदेश, कश्मीर व राजस्थान जैसे पर्यटन राज्यों के होटलों का किराया कई गुना बढ़ गया है। हमने एक लाख से अधिक व्यापारियों और उद्यमियों से फीडबैक भी लिया है। सभी बेहतर भविष्य की उम्मीद जताई है।

सरकार का जोर मेक इन इंडिया व स्वदेशी पर है, उद्योग जगत का रुख क्या है?

-उद्योग जगत का रुख सकारात्मक है। हम चीन पर क्यों निर्भर रहें। वह हमारा दुश्मन है। वह सीमा पर आंखें दिखाता है। इसलिए हमें आत्मनिर्भर होना चाहिए। यह विश्व के लिए भी बेहतर है। इस दिशा में सरकार तमाम कदम उठा रही है। इस दिशा में और प्रयास की जरूरत है। इसके लिए उद्योग क्षेत्र को चीन जैसा माहौल मिलना चाहिए। वहां उद्योग के लिए ऋण बमुश्किल एक फीसद ब्याज पर मिलता है, जबकि अभी भी देश में यह सात से 10 फीसद की दर पर उपलब्ध है। इसी तरह वहां उद्योग के लिए न्यूनतम मूल्य पर जमीन उपलब्ध है। यही स्थिति विभागों से मंजूरी, बिजली और पेट्रो पदार्थों के मामले में भी है। उद्यमियों को पता है कि अभी सरकार का ध्यान स्वास्थ्य आधारभूत ढांचा खड़ा करने और टीकाकरण की उपलब्धता पर है। ऐसे में पेट्रो पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाकर इसका रास्ता निकाला जा सकता है।

दिल्ली में बाजारों की स्थिति में सुधार के लिए क्या होने चाहिए?

-जिस तरह से बवाना व नरेला समेत अन्य औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित किया गया, उसी तरह से बाजारों के लिए भी एकीकृत स्थान देना चाहिए। मास्टर प्लान में बात होती है। लेकिन अमल नहीं होता है। इसी तरह किसी उद्योग को लगाने की बारी आती है तो 35 से अधिक तरह की मंजूरी लेनी होती है। इसे एक या दो मंजूरी में तब्दील किया जा सकता है। इसमें सियासत को अलग रखकर सभी राजनीतिक दलों को साथ आना होगा।

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