श्मशान की दुर्दशा देख विचलित हुआ पूर्व सैनिक का मन, खर्च कर दी जीवन भर की जमा पूंजी

रविंद्र कौशिक का मानना है कि समाज में लोगों के लिए कुछ करने के लिए मन में निस्वार्थ का होना जरूरी है। इसलिए उन्होंने अपनी जमापूंजी खर्च करने में वक्त नहीं लगाया क्योंकि वह जानते थे कि इस कार्य से ग्रामीणों की परेशानी दूर होगी।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Wed, 28 Oct 2020 07:33 PM (IST) Updated:Wed, 28 Oct 2020 07:33 PM (IST)
श्मशान की दुर्दशा देख विचलित हुआ पूर्व सैनिक का मन, खर्च कर दी जीवन भर की जमा पूंजी
निजामपुर गांव में मौजूद श्मशान की तस्वीर

नई दिल्ली [शिप्रा सुमन]। सुविधाओं की आवश्यकता मनुष्य को उसकी अनंत यात्रा पर भी पड़ती है लेकिन निजामपुर गांव में मौजूद श्मशान की बदहाली वहां के लोगों को लंबे वक्त से परेशान कर रही थी। ऐसे में अपने गांव के लिए कुछ करने की इच्छा रखने वाले रविंद्र कौशिक जब श्मशान भूमि में पत्नि के अंतिम संस्कार के लिए वहां पहुंचे तो वहां की दुर्दशा को देखकर उनका मन विचलित हो गया। इसलिए उन्होंने उसी वक्त फैसला कर लिया कि वह इसका जीर्णोद्धार करेंगे।

रविंद्र के अनुसार हर किसी को एक दिन उस स्थान पर पहुंचना है जिसे मोक्ष का द्वार कहते हैं। इसलिए वहां सुविधाओं का विकास जरूरी है ताकि परिजनों को किसी प्रकार की मुश्किल न उठानी पड़े। इसी उद्देश्य के तहत उन्होंने इस कार्य का जिम्मा उठाया।

खर्च कर दी जमा पूंजी

भारतीय सेना में हवलदार पद से सेवानिवृत्त होने के बाद रविंद्र अपने परिवार के साथ नजफगढ़ में रहते हैं लेकिन उनका पैतृक गांव निजामपुर है। अपने गांव के प्रति उनका लगाव अक्सर उन्हें यहां खींच लाता है। एक दिन जब पत्नि का देहावसान हो गया तब वह अपने गांव अंतिम संस्कार के लिए पहुंचे। वहां की हालत देखकर उसे ठीक करने का फैसला लिया और जीवन भर की जमापूंजी का बड़ा हिस्सा इसमें खर्च कर दिया। उन्होंने श्मशान घाट की जमीन को जेसीबी मशीन द्वारा समतल कराया।

दाह संस्कार स्थल पर मेट्रो टिन के शेड लगवाए। लोगों के बैठने के लिए बेंच की व्यवस्था की और उसकी रंगाई करवाई। इसके अलावा श्मशान में प्रवेश के मुख्य द्वार का निर्माण कर बोर्ड लगाया। परिसर में पौधे लगाए। लोगों के पीने के लिए पानी के इंतजाम भी किए। इस कार्य में करीब तीन लाख रूपये खर्च कर दिए।

नि:स्वार्थ भाव जरूरी

57 वर्षीय रविंद्र कौशिक का मानना है कि समाज में लोगों के लिए कुछ करने के लिए मन में नि:स्वार्थ का होना जरूरी है। इसलिए उन्होंने अपनी जमापूंजी खर्च करने में वक्त नहीं लगाया क्योंकि वह जानते थे कि इस कार्य से ग्रामीणों की परेशानी दूर होगी और अंतिम पड़ाव बेहतर होगा। वह हमेशा गांव की परेशानियों और असुविधाओं को दूर करने का प्रयास करते हैं। इस कार्य में उनकी मदद गांव के रणवीर छिल्लर, तपन कौशिक व सत्यवान करते हैं और उनका मनोबल बढ़ाते हैं।

Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो

chat bot
आपका साथी